ललई सिंह
यादव का जीवनकाल
ललई सिंह यादव (01 सितंबर 1921 - 07 फरवरी 1993) का जन्म 01 सितंबर 1921 को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले के कठारा ग्राम में एक सामान्य कृषक परिवार में हुआ था। ललई एक सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने सामाजिक न्याय के लिए आजीवन संघर्ष किया। ललई को उत्तर भारत का 'पेरियार' कहा जाता है। उनके पिता का नाम चौ. गुज्जू सिंह यादव था जो एक कर्मठ आर्य समाजी थे। इनकी माता श्रीमती मूलादेवी, उस क्षेत्र के जनप्रिय नेता चौ. साधौ सिंह यादव
निवासी ग्राम मकर दादुर रेलवे स्टेशन रूरा, जिला कानपुर की साध्वी पुत्री थी। पुराने धार्मिक
होने पर भी यह परिवार अंधविश्वास रूढि़यों के पीछे दौड़ने वाला नहीं था।
ललई सिंह यादव के जीवन का संघर्ष
ललई
ने सन् 1928 में हिंदी के साथ उर्दू लेकर
मिडिल पास किया। सन् 1929 से 1931 तक फ़ॉरेस्ट गार्ड रहे। 1931 में ही इनका
विवाह श्रीमती दुलारी देवी पुत्री चौ. सरदार सिंह
यादव ग्रा. जरैला निकट रेलवे स्टेशन रूरा जिला कानपुर के साथ हुआ। सन 1933 में सशस्त्र पुलिस कम्पनी जिला मुरैना (म.प्र.)
में कान्स्टेबिल पद पर भर्ती हुए। नौकरी से समय बचाकर विभिन्न शिक्षाएं प्राप्त
की। सन् 1946 ईस्वी में नान
गजेटेड मुलाजिमान पुलिस एण्ड आर्मी संघ ग्वालियर कायम करके उसके अध्यक्ष चुने गए। ‘सोल्जर
ऑफ दी वार’ की तर्ज पर हिन्दी में ‘सिपाही
की तबाही’ किताब लिखी, जिसने
कर्मचारियों को क्रांति के पथ पर विशेष अग्रसर किया। इन्होंने आजाद हिन्द फ़ौज की
तरह ग्वालियर राज्य की आजादी के लिए जनता तथा सरकारी मुलाजिमान को संगठित करके
पुलिस और फौज में हड़ताल कराई जवानों से कहा कि
बलिदान
न सिंह का होते सुना, बकरे बलि
बेदी पर लाए गये।
विषधारी
को दूध पिलाया गया, केंचुए कटिया में
फंसाए गये।
न
काटे टेढ़े पादप गये, सीधों पर
आरे चलाए गये।
बलवान
का बाल न बांका भया, बलहीन सदा
तड़पाये गये।
साहित्य प्रकाशन की ओर भी इनका विशेष ध्यान गया। दक्षिण भारत के
महान क्रान्तिकारी पेरियार
ई. व्ही. रामस्वामी नायकर के उस
समय उत्तर भारत में कई दौरे हुए। वह इनके सम्पर्क में आये। जब पेरियार रामास्वामी
नायकर से सम्पर्क हुआ तो इन्होंने उनके द्वारा लिखित ‘‘रामायण : ए
ट्रू रीडि़ंग’’ (अंग्रेजी में) में विशेष
अभिरूचि दिखाई। साथ ही दोनों में इस पुस्तक के प्रचार प्रसार की, सम्पूर्ण भारत विशेषकर उत्तर भारत में लाने पर भी विशेष चर्चा हुई। उत्तर
भारत में इस पुस्तक के हिन्दी में प्रकाशन की अनुमति पैरियार रामास्वामी नायकर ने
ललई को सन् 01-07-1968 को दे
दी। द्रविड़
आंदोलन के अग्रणी, सामाजिक क्रांतिकारी पेरियार ईवी रामास्वामी नायकर की किताब का हिंदी अनुवाद सन 1968 'सच्ची रामायण' को पहली बार हिंदी में लाने का श्रेय ललई सिंह
यादव को जाता है।
ललई सिंह यादव के जीवन के अंतिम दिन
उ.प्र. सरकार की 10 मार्च 1970 की स्पेशल आज्ञा द्वारा 'सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें' नामक पुस्तक
जिसमें डॉ. अम्बेडकर के कुछ भाषण थे तथा 'जाति भेद का उच्छेद' नामक पुस्तक 12 सितम्बर 1970 को चौधरी चरण सिंह की सरकार द्वारा जब्त कर ली गयी। मुकदमें की
जीत से ही 14 मई 1971 को उ.प्र. सरकार की इन पुस्तकों की जब्ती
की कार्यवाही निरस्त कराई गयी और तभी उपरोक्त पुस्तकें जनता को भी सुलभ हो सकी। इसी प्रकार ललई सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘आर्यो
का नैतिक पोल प्रकाश’ के विरूद्ध 1973 में मुकदमा चला दिया। यह मुकदमा उनके जीवन पर्यन्त चलता रहा। 07 फरवरी 1993 को ललई
की मृत्यु हुई थी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सच्ची
रामायण के पक्ष में मुकदमा जीतने के बाद पेरियार ललई सिंह यादव दलित-पिछड़ों के
नायक बन गए। ललई सिंह यादव ने 1967 में हिन्दू धर्म का
त्याग करके बौद्ध धर्म अपना लिया।
बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उन्होंने अपने नाम से यादव शब्द हटा दिया। यादव शब्द
हटाने के पीछे उनकी गहरी जाति विरोधी चेतना काम कर रही थी। वे जाति विहीन समाज के
लिए संघर्ष कर रहे थे।
ललई सिंह यादव की रचनाएँ
उन्होंने अपने जीवन काल में कुल पांच नाटक लिखे
जो निम्न हैं -
1. अंगुलीमाल नाटक
2. शम्बूक वध
3. सन्त माया बलिदान
4. एकलव्य
5. नाग
यज्ञ नाटक
संदर्भ :
- Periyar Lalai Singh Yadav (हिंदी) bspindia.org। अभिगमन तिथि: 01 सितम्बर, 2021।
- सच्ची रामायण छापने वाले ललई यादव क्यों बन गये बौद्ध? (हिंदी) hindi.theprint.in। अभिगमन तिथि: 01 सितम्बर, 2021।
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