डॉक्टर ग्रियर्सन ने
भोजपुरी को चार भागों में विभक्त किया है; यह विभाग हैं- उत्तरी, दक्षिणी, पश्चिमी
तथा नगपुरिया। मघेसी और थारू इसकी दो उपबोलियां हैं। उत्तरी भोजपुरी घाघरा
नदी के उत्तर में बोली जाती है; इसकी दो विभाषाएँ हैं- 1.
सरवरिया 2. गोरखपुरी। यदि गंडक नदी के साथ
एक रेखा नेपाल सीमा तक और वहां से गोरखपुर शहर के कुछ मील पूर्व से होते हुए बरहज
तक खींची जाए तो इसके पश्चिम सरवरिया तथा पूर्व गोरखपुरी भोजपुरी का क्षेत्र होगा।
सोनपुर नदी के दक्षिण
नागपुरिया भोजपुरी बोली जाती है। उत्तरी तथा नागपुरिया भोजपुरी के बीच में ही
दक्षिणी तथा पश्चिमी भोजपुरी का क्षेत्र है। यदि बरहज से गाजीपुर शहर तक और वहां से सोन नदी
तक रेखा खींची जाए तो इसके पूर्व दक्षिणी भोजपुरी तथा पश्चिम पश्चिमी भोजपुरी का
क्षेत्र होगा। दक्षिणी भोजपुरी ही वास्तव में आदर्श भोजपुरी है, इसका क्षेत्र
शाहाबाद, सारण, बलिया, पूर्वी देवरिया तथा पूर्वी गाजीपुर है। पश्चिमी गाजीपुर,
आजमगढ़, बनारस, मिर्जापुर तथा जौनपुर के कुछ भागों में पश्चिमी भोजपुरी बोली जाती
है। रांची और प्लामू जिले
में भोजपुरी बोली जाती है उसे नागपुरिया कहते हैं।
पलामू की उत्तरी सीमा
पर दक्षिणी आदर्श भोजपुरी ही प्रचलित है लेकिन पलामू के शेष हिस्सों में तथा समस्त
रांची जिले में यह विकृत रूप में बोली जाती है। मघेशी चंपारण जिले की
बोली है, जहां भोजपुरी मैथिली से मिलती है। वहां की भाषा में दोनों भाषाओं के प्रभाव मिलते
हैं। आज चंपारण के अधिकांश
भाग की भाषा भोजपुरी है। पलामू के उत्तरी पूर्वी हिस्सों में भोजपुरी गया और हजारीबाग की
मगही से मिलती है। नेपाल की तराई में रहने वाली थारू नामक जाति है वह जिस आर्य भाषा
को बोलते हैं उसे भोजपुरी का एक भेद बतलाया गया है। इस जाति के लोग हिमालय की तराई के
पूरा में जलपाईगुड़ी से लेकर पश्चिम में कुमाऊं भावर तक पाए जाते हैं।
संदर्भ :
- भोजपुरी भाषा और साहित्य - तिवारी उदयनारायण
- मानक भोजपुरी भाषा - डॉ. जयकांत सिंह
- आधुनिक भोजपुरी भाषा के विकास के कुछ पक्ष - रामबख्स मिश्र
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