Showing posts with label प्रेरणादायक कहानियां. Show all posts
Showing posts with label प्रेरणादायक कहानियां. Show all posts

Tuesday, January 24, 2023

परिवार क्यों जरूरी है (Why is important family)

 एक पार्क में दो बुजुर्ग बातें कर रहे थे....


पहला :- मेरी एक पोती है, शादी के लायक है... BA किया है, नौकरी करती है, कद - 5"2 इंच है.. सुंदर है

कोई लड़का नजर में हो तो बताइएगा।

दूसरा :- आपकी पोती को किस तरह का परिवार चाहिए...??

पहला :- कुछ खास नहीं.. बस लड़का ME /M.TECH किया हो, अपना घर हो, कार हो, घर में AC हो, अपना बाग बगीचा हो, अच्छा job, अच्छी सैलरी, कोई लाख रू. तक हो।

दूसरा :- और कुछ...

पहला :- हाँ सबसे जरूरी बात.. अकेला होना चाहिए..

मां-बाप,भाई-बहन नहीं होने चाहिए..

वो क्या है लड़ाई-झगड़े होते हैं।

दूसरे बुजुर्ग की आँखें भर आई फिर आँसू पोछते हुए बोला - मेरे एक दोस्त का पोता है उसके भाई-बहन नहीं हैं, मां बाप एक दुर्घटना में चल बसे, अच्छी नौकरी है, डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, नौकर-चाकर है।

पहला :- तो करवाओ ना रिश्ता पक्का।

दूसरा :- मगर उस लड़के की भी यही शर्त है कि लडकी के भी मां-बाप,भाई-बहन या कोई रिश्तेदार न हों।

कहते-कहते उनका गला भर आया..

फिर बोले :- अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है.. आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी।

पहला :- ये क्या बकवास है, हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या.. कल को उसकी खुशियों में, दुःख में कौन उसके साथ व उसके पास होगा।

दूसरा :- वाह मेरे दोस्त, खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नहीं... मेरे दोस्त अपने बच्चों को परिवार का महत्व समझाओ, घर के बड़े, घर के छोटे सभी अपनों के लिए जरूरी होते हैं... वरना इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा, जिंदगी नीरस बन जाएगी।

पहले वाले बुजुर्ग बेहद शर्मिंदगी के कारण 

कुछ नहीं बोल पाए...

दोस्तों परिवार है तो जीवन में हर खुशी, 

खुशी लगती है, अगर परिवार नहीं तो 

किससे अपनी खुशियाँ और गम बांटोगे.......


(यहां परिवार का संबंध खुद के परिवार के साथ-साथ पूरे इंसानों को आपस में मिलकर एक परिवार की तरह रहने से है)


Monday, January 23, 2023

धर्म क्या है (What is Religion)

 

धर्म क्या है

क्लास में आते ही नये टीचर ने बच्चों को अपना परिचय दिया. बातों ही बातों में उसने जान लिया कि लड़कियों की इस क्लास में सबसे तेज और सबसे आगे कौन सी लड़की है? उसने खामोश सी बैठी उस लड़की से पूछा-

बेटा, आपका नाम क्या है?

लड़की खड़ी हुई और बोली;

जी सर; मेरा नाम है जूही

टीचर ने फिर पूछा; पूरा नाम बताओ बेटा।

लड़की ने फिर कहा; 

जी सर मेरा पूरा नाम जूही ही है।

टीचर ने सवाल बदल दिया। अच्छा, तुम्हारे पापा का नाम बताओ।

लड़की ने जवाब दिया; 

जी सर; मेरे पापा का नाम है शमशेर

टीचर ने फिर पूछा; अपने पापा का पूरा नाम बताओ।

लड़की ने जवाब दिया,

मेरे पापा का पूरा नाम शमशेर ही है सर जी।

अब टीचर कुछ सोचकर बोले;

अच्छा अपनी माँ का पूरा नाम बताओ।

लड़की ने जवाब दिया; 

सर जी; मेरी माँ का पूरा नाम निशा है।

टीचर के पसीने छूट चुके थे क्योंकि अब तक वो उस लड़की की फैमिली के पूरे बायोडाटा में जो एक चीज ढूंढने की कोशिश कर रहा था, वो उसे नहीं मिली थी।

उसने आखिरी पैंतरा आजमाया और पूछा, अच्छा तुम कितने भाई बहन हो?

टीचर ने सोचा कि जो चीज वो ढूँढ रहा है। शायद इसके भाई बहनों के नाम में वो क्लू मिल जाये!

लड़की ने टीचर के इस सवाल का भी बड़ी मासूमियत से जवाब देते हुये बोली, सर जी मैं अकेली हूँ। मेरे कोई भाई बहन नहीं है।

अब टीचरने सीधा और निर्णायक सवाल पूछा; बेटे, तुम्हारा धर्म और जाति क्या है?

लड़की ने इस सीधे सवाल का जवाब भी सीधा-सीधा दिया

बोली-

सर जी मैं एक विद्यार्थी हूँ यही मेरी जाति है और ज्ञान प्राप्त करना मेरा धर्म है। मैं जानती हूँ कि अब आप मेरे पेरेंट्स की जाति और धर्म पूछोगे तो मैं आपको बता दूँ कि मेरे पापा का धर्म है मुझे पढ़ाना और मेरी मम्मी की जरूरतों को पूरा करना तथा मेरी मम्मी का धर्म है, मेरी देखभाल करना और मेरे पापा की जरूरतों को पूरा करना।

लड़की का जवाब सुनकर टीचर के होश उड़ गये। उसने टेबल पर रखे पानी के गिलास की ओर देखा, लेकिन उसे उठाकर पानी भी भूल गया। तभी लड़की की आवाज आयी, इस बार फिर उसके कानों में किसी धमाके की तरह गूँजी।

सर, मैं विज्ञान पढती हूँ और एक साइंटिस्ट बनना चाहती हूँ।

जब अपनी पढ़ाई पूरी कर लूँगी और अपने माँ-बाप के सपनों को पूरा कर लूँगी तब मैं फुरसत से सभी धर्मों का अध्ययन करूंगी और जो धर्म विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरेगा, उसे मैं अपना लूँगी। लेकिन अगर किसी धर्म ग्रंथ में एक भी बात विज्ञान के विरुद्ध मिली त़ो मैं उस पवित्र किताब को अपवित्र समझूँगी क्योंकि विज्ञान कहता है एक गिलास दूध में अगर एक बूंद भी केरोसिन मिला हो, तो पूरा का पूरा दूध ही बेकार हो जाता है।

लड़की की बात खत्म होते ही पूरा क्लास तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। तालियों की गूंज टीचर के कानों में गोलियों की गड़गड़ाहट की तरह सुनाई दे रही थी। उसने आँंखों पर लगे धर्म और जाति के मोटे चश्में को कुछ देर के लिए उतार दिया था।

थोड़ी हिम्मत जुटाकर लड़की से बिना नजर मिलाये टीचर बोला- बेटा Proud of you.




Saturday, January 21, 2023

हथनी और कुतिया की कहानी

 एक ही समय में एक हथनी और एक कुतिया गर्भवती हो गईं। तीन महीने बाद, कुतिया ने छह पिल्लों को जन्म दिया। छह महीने बाद, कुतिया फिर से गर्भवती हुई और नौ महीने बाद उसने एक और दर्जन पिल्लों को जन्म दिया। पैटर्न जारी रहा। 



अठारहवें महीने में कुतिया हथनी के पास पहुंची और सवाल किया, "क्या तुम्हें यकीन है कि तुम गर्भवती हो? हम एक ही तारीख को गर्भवती हुई। मैंने एक दर्जन पिल्लों को तीन बार जन्म दिया है और वे अब बड़े कुत्ते बन गए हैं, फिर भी तुम अभी भी गर्भवती हो। क्या चल रहा है?" 

हथिनी ने उत्तर दिया, "कुछ बात है जो मैं चाहता हूं कि आप समझें। मैं जो ले जा रहा हूं वह एक पिल्ला नहीं बल्कि एक हाथी है। मैं केवल दो साल में एक को जन्म देती हूं। जब मेरा बच्चा जमीन से टकराता है, तो पृथ्वी उसे महसूस करती है। जब मेरा बच्चा सड़क पार करता है, मनुष्य रुकते हैं और प्रशंसा में देखते हैं, जो मैं ले जाता हूं वह ध्यान आकर्षित करता है। इसलिए मैं जो ले जा रहा हूं वह शक्तिशाली और महान है।

जब आप देखते हैं कि दूसरों को उनके संघर्षों के उत्तर रिकॉर्ड समय में मिलते हैं, तो विश्वास मत खोइए। दूसरों की उपलब्धि से ईर्ष्या न करें। अगर आपको अपने संघर्षों का परिणाम नहीं मिला है, तो निराश न हों। 

अपने आप से कहो "मेरा समय आ रहा है, और जब यह पृथ्वी की सतह पर आ जाएगा, तो लोग प्रशंसा में झुकेंगे।" अपनी यात्रा की तुलना किसी और से न करें, आजीवन संघर्ष करते रहें और संघर्ष करने के लिए दूसरों को भी प्रेरित करें क्योंकि संघर्ष जितना कठिन और देर तक होता है उसका परिणाम उतना की टिकाऊ और मजबूत होता है 🙏🙏

(संघर्ष ही जीवन है)

Sunday, January 15, 2023

स्पर्म की रेस/दौड़ (sperm race)

 एक तंदुरुस्त मर्द के किसी औरत के साथ सेक्स करने के बाद जो वीर्य निकलता है उसमें 40 मिलियन तक स्पर्म मौजूद होते हैं, आसान शब्दों में कहें तो अगर सबको सही जगह (गर्भाशय) मिल जाए तो 40 मिलियन बच्चे पैदा हो जायें।



जबकि ये सारे के सारे स्पर्म माँ की बच्चेदानी (गर्भाशय) की तरफ पागलों की तरह भागते हैं और इस दौड़ में सिर्फ 300 से 500 तक स्पर्म ही बच जाते हैं और बाकी रास्ते में ही थकन और हारकर मर जाते हैं।

ये 300 से 500 वही स्पर्म हैं जो गर्भाशय तक पहुंचने में कामयाब हो पाते हैं।

इनमें से भी सिर्फ एक बहुत मजबूत स्पर्म होता है जो गर्भाशय में पहुँचकर फर्टिलाइज होता है।

क्या आप जानते हैं वो खुशनसीब, मजबूत और जीतने वाला स्पर्म कौन है? वो खुशनसीब स्पर्म आप, मैं, या हम सब हैं!

आप सोच भी नहीं सकते कि जब आप पहली बार भागे थे तब आंख, हाथ-पैर, चेहरा कुछ भी नहीं था फिर भी आप जीत गये

जब आप भागे तब आपके पास सर्टिफिकेट्स नहीं थे, आपके पास दिमाग़ नहीं था, लेकिन आप फिर भी जीत गये।

बहुत से बच्चे माँ के पेट में ही खो गए लेकिन आप मौजूद रहे और आपने अपने 9 महीने पूरे किए।

और आज..................

आज आप घबराये हैं, जब कुछ होता है तो आप मायूस हो जाते हैं मगर क्यूँ?

आपको क्यूँ लगता है कि आप हार गए हैं? आपने भरोसा क्यूँ खो दिया है? अब तो आपके पास दोस्त हैं, बहन भाई, सर्टिफिकेट्स सब कुछ है फिर आप मायूस क्यूँ हो गए?

आप सबसे पहले जीते, आखिर में जीते, बीच में जीत जाते हैं.(प्रकृति )पर यकीन और सच्ची लगन से मकसद को हासिल करने के लिए पूरी जद्दोजहद करें, वो आपको हारने नहीं देगी।

जैसे मिलियन स्पर्म में से आपको जीतने का मौका दिया वैसे ही वो अब भी आपको कामयाब जरूर बनाएगी!


Drx Shiwangee Nigam


Sunday, January 1, 2023

भीमा कोरेगांव और सारागढ़ी युद्ध (Battle of Bhima Koregaon and Saragarhi)

 इतिहास की इन दो घटनाओं के बीच 80 साल और 1700 किलोमीटर का फासला है. इन दोनों घटनाओं में अद्भुत समानताएं हैं. बात हो रही है भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी, 1818 को और सारागढ़ी में 12 सितंबर 1897 में हुए युद्धों की. दोनों मानवीय साहस और वीरता की कहानी हैं.

लेकिन दोनों घटनाओं को लेकर इतिहासकारों, टेक्स्ट बुक बनाने वालों, गीत लिखने वालों, फिल्मकारों ने बिल्कुल अलग तरह का व्यवहार किया है. इस लेख को अभी लिखने की वजह ये है कि सारागढ़ी की घटना पर हाल में अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म केसरी आई है और उसने 100 करोड़ रुपए से ज़्यादा का बिज़नेस कर लिया है.


आगे बढ़ने से पहले दोनों घटनाओं के बारे में संक्षेप में जान लेते हैं. चूंकि इतिहास लेखन एक निरपेक्ष, पक्षपातरहित कार्य नहीं है, इसलिए दोनों घटनाओं के बारे में अलग अलग तरह के तथ्य मौजूद हैं. इतिहास का लिखा जाना अक्सर इस बात से भी तय होता है कि इतिहास लिख कौन रहा है और उसे जिस समय लिखा जा रहा है, उस समय प्रभुत्व किसका है. इसलिए भारत और पाकिस्तान के टेक्स्ट बुक स्वतंत्रता आंदोलन की बिल्कुल उन्हीं घटनाओं को अलग अलग तरीके से पढ़ाते हैं.

हम कोशिश करते हैं कि भीमा कोरेगांव और सारागढ़ी की घटनाओं के बारे में उतना ही लिखें, जिस पर आम तौर पर तमाम पक्षों में सहमति है.


एक, कोरेगांव पुणे के पास भीमा नदी के किनारे का एक गांव है. यहां 1 जनवरी, 1818 को पेशवा और अंग्रेजों की फौजों के बीच एक युद्ध हुआ. इसका अंग्रेजों ने जो लेखा-जोखा लिखा है उसके हिसाब से ब्रिटिश फौज में 900 और पेशवा की फौज में 28,000 सैनिक थे. ब्रिटिश फौज में बड़ी संख्या में महार सैनिक थे, जिन्हें पेशवा अछूत मानते थे और इसलिए पेशवा की सेना में महार नहीं थे. ये युद्ध शाम होने से पहले खत्म हो गया. अंग्रेजों ने इस युद्ध को सबसे महत्वपूर्ण युद्धों में शामिल किया और उन्होंने ये बात यहां बनाए गए विजय स्तंभ पर भी लिख दी थी. विजय स्तंभ पर युद्ध में मारे गए सैनिकों के नाम लिखे हैं. इस युद्ध के साथ ही अंग्रेजों के राज को पेशवा से मिल रही चुनौती का अंत हो गया और पूरे महाद्वीप पर अंग्रेजों के शासन का रास्ता खुल गया.


दो, सारागढ़ी वर्तमान पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा की पहाड़ियों पर है, जहां अंग्रेजों की एक संचार चौकी हुआ करती थी, जिसके ज़रिए वे दो फौजी कैंप के बीच में मैसेज का लेन-देन करते थे. यहां 12 सिंतबर, 1897 में स्थानीय पश्तून बागियों ने हजारों की संख्या में हमला कर दिया. अंग्रेजों की इस चौकी पर सिख रेजिमेंट की 36वीं बटालियन के 21 सैनिक तैनात थे. ये युद्ध सुबह शुरू हुआ और शाम होने से पहले खत्म हो गया. सभी सिख सैनिक इस युद्ध में मारे गये, लेकिन उन्होंने पश्तून बागियों को काफी देर तक रोके रखा, जिसकी वजह से वे बाकी दो बड़े ब्रिटिश किलों पर हमला नहीं कर पाए. सारागढ़ी को बाद में ब्रिटिश फौज ने पश्तून बागियों को खदेड़कर छीन लिया.


सिख और महार सैनिकों ने इन युद्धों में अपने साहस की दास्तान लिख दी. सिख और महार दोनों ही ब्रिटिश फौज के सैनिक थे और ब्रिटिश सैन्य इतिहासकारों ने इस शौर्य की जमकर तारीफ की. भीमा कोरेगांव में ब्रिटिश सेना द्वारा बनाए गए विजय स्तंभ में इसे पूर्व दिशा (ब्रिटिन से पूर्व) की सबसे गौरवशाली सैन्य विजय के तौर पर दर्शाया गया है. वहीं ब्रिटेन की सरकार ने सारागढ़ी में मारे गए सभी 21 सिख सैनिकों को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट से नवाज़ा, जो ब्रिटिश फौज के भारतीय सैनिकों को दिया जाना वाला सबसे बड़ा सम्मान था. अंग्रेजों के लिए भीमा कोरेगांव और सारागढ़ी दोनों ही गौरव का क्षण था. दोनों ही जीत उन्होंने भारतीय लोगों की मदद से हासिल की.

ये सच है कि न तो सिख और न ही महार भारत की ओर से लड़ रहे थे. भारतीय गणराज्य की इस समय तक सिर्फ कल्पना में ही मौजूद था. भारत के लिए वहां कोई नहीं लड़ रहा था. इसलिए किसी को इस युद्ध में हिस्सा लेने के लिए ‘देश का दुश्मन’ नहीं कहा जा सकता. युद्ध में दूसरी तरफ मौजूद पेशवा और पश्तून भी कोई आज़ादी की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे. वे अपने स्थानीय वर्चस्व की लडाई लड़ रहे थे और इससे पहले और बाद में भी वे कई बार अंग्रेजों से हाथ मिला चुके थे.

मिसाल के तौर पर, चौथे ब्रिटिश-मैसूर युद्ध में पेशवा और निजाम ने अंग्रेज़ों का साथ दिया, सैन्य अभियान में ब्रिटिश पक्ष की ओर से हिस्सा लिया और इस तरह टीपू सुल्तान के साम्राज्य का खात्मा करने में हिस्सेदार बने. टीपू वह आखिरी शासक था, जिसकी वजह से अंग्रेजों को भारतीय उपमहाद्वीप में अपना शासन स्थिर नहीं लग रहा था. टीपू सुल्तान उस युद्ध में मारा गया.

तो उस समय के ब्यौरों से यही पता चलता है कि सारागढ़ी और भीमा कोरेगांव में एकमात्र गौरवशाली बात सिख और महार सैनिकों का निजी और सामूहिक शौर्य था और उसका देशभक्ति से कोई लेना-देना नहीं था.

लेकिन भारत में सरकार, इतिहासकारों, पुस्तक लेखकों और फिल्मकारों ने दोनों घटनाओं के साथ बिल्कुल अलग तरह का बर्ताव किया.

सारागढ़ी को लेकर एक फिल्म तो बन ही चुकी है, कुछ और फिल्में भी कतार में हैं. इसे लेकर कम से कम आठ किताबें लिखी जा चुकी हैं. पंजाब सरकार ने 12 सितंबर को सारागढ़ी डे मनाने का फैसला किया और इस दिन सार्वजनिक छुट्टी होती है. भारतीय फौज की सिख रेजिमेंट की सभी बटालियन इस दिन को बैटल ऑनर्स डे के तौर पर मनाती हैं. भारत में सारागढ़ी युद्ध की याद में दो गुरुद्वारे हैं, जहां हर साल इस दिन को याद किया जाता है.

लेकिन इतिहास पर सारागढ़ी से कहीं ज़्यादा असर डालने वाले और साहस की उस जैसी ही मिसाल कायम करने वाले भीमा-कोरेगांव युद्ध के बारे में ऐसा कुछ नहीं है. इस पर कोई ढंग की किताब आज भी उपलब्ध नहीं है. इस पर बॉलीवुड कोई फिल्म नहीं बना रहा है. दो स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं ने इस पर फिल्म बनाने की घोषणा की है. लेकिन स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के लिए इतने बड़े प्रोजेक्ट पर काम करना आसान नहीं है. भीमा कोरेगांव दिवस जैसा कोई कार्यक्रम सरकार नहीं करती.

भीमा कोरेगांव का जश्न सिर्फ दलित और कुछ पिछड़े मनाते हैं. लेकिन पिछले साल जब लोग भीमा-कोरेगांव दिवस मनाने जुटे तो उन पर हमला कर दिया गया और सरकार हमला करने वालों को पकड़ने की जगह दलितों को ही पकड़ने लगी. भीमा-कोरेगांव का जश्न मनाने वालों से ये पूछा जाता है कि अंग्रेजों की तरफ से लड़ने वालों को महान क्यों बताया जा रहा है. लेकिन यही सवाल सारागढ़ी के मामले में नहीं पूछा जाता.

एक, सारागढ़ी में ब्रिटिश आर्मी के सिख सैनिकों के मुकाबले में पश्तून विद्रोही थे, जिनका धर्म इस्लाम था. सिखों के मुकाबले इस्लाम एक ऐसा वृतांत या नैरिटिव है, जो भारत के राष्ट्रवादी इतिहासकारों को पसंद है. बल्कि अभी जो सरकार देश में है, उसके लिए ये बहुत शानदार बात है कि सारागढ़ी की लड़ाई में एक पक्ष मुसलमान था और वीरता गैर-मुसलमानों के हिस्से आई. इसके बाद बाकी बातें निरर्थक हो जाती हैं कि सिख किसके लिए लड़ रहे थे. सारागढ़ी पर बनी फिल्म का नाम केशरी रखने के पीछे यही इतिहास दृष्टि है.

दो, भीमा कोरेगांव के लोक विमर्श में कहानी ये बनी कि चितपावन ब्राह्मण पेशवा की सेना को हराने वाले अछूत महार थे. पेशवा महारों को अपनी फौज में तो ले नहीं सकता था. इसलिए महारों के पास फौज में जाने के नाम पर एकमात्र विकल्प अंग्रेज ही थे. अंग्रेज़ों को छूत-अछूत का पता नहीं था, तो ब्रिटिश फौज में महारों को इंसानों वाला सम्मान भी मिल गया. दलित भीमा कोरेगांव के युद्ध का जश्न इसलिए मनाते हैं क्योंकि उनके लिए ये मानवीय गरिमा और मानवाधिकारों को क्लेम करने का संघर्ष था.


इसी वजह से 1 जनवरी, 1927 को डॉ. बी.आर. आंबेडकर भीमा कोरेगांव विजय स्तंभ पर पहुंचे थे. लेकिन अछूत बनाम चितपावन पेशवा का ये संघर्ष राष्ट्रवादी इतिहासकारों को पसंद नहीं है. यहां तक कि वामपंथी और लिबरल इतिहासकारों को भी ये लड़ाई नापसंद है.

Sunday, December 25, 2022

जीसस कौन थे (Who was Jesus)

 


जीसस ने बचपन से बहुत आकर्षित किया 

चरवाहे के घर पैदा हुआ 

भेंडे चराता रहा

एक  निर्दोष जीवन जिया।



महिला को सजा देने के लिए पत्थर मारने वाली भीड़ से कहा, पहला पत्थर वो मारे जिसने पाप ना किया हो।


कितने साहस की बात ?

जीसस का जन्म का धर्म यहूदी था। 

पुराना धर्म कहता था दांत के बदले दांत और आँख के बदले आँख ही धर्म है। 

जीसस ने पहली बार कहा कि नहीं यह धर्म नहीं है,

बल्कि धर्म तो यह है कि कोई तुम्हारे एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो,

और कोई तुमसे तुम्हारी कमीज़ मांगे तो तुम उसे अपना कोट भी दे दो,


जीसस ने कहा सूईं के छेद से ऊँट का निकलना संभव है लेकिन किसी अमीर का स्वर्ग में प्रवेश असम्भव है।

मंदिर/मस्जिद के परिसर में बैठकर गरीबों को ब्याज़ पर पैसा देने वाले साहूकारों पर जीसस कोड़े लेकर टूट पड़ा था,

और उन्हें मार-मारकर वहाँ से भगा दिया और उनकी मेजें उलट दी थी।


बाद में ईसा के नाम पर बनाए गये इसाई धर्म के चर्च के पादरियों और राजाओं ने मिलकर गरीब किसानों का वैसा ही शोषण किया जैसा भारत में पुरोहितों और राजाओं के गठजोड़ ने किया।


गैलीलियो को विज्ञान की बात कहने के अपराध में चर्च द्वारा उम्र कैद दे दी गई,

क्योंकि विज्ञान की सच्चाई का बाइबिल की बात से मेल नहीं खाता था,

ब्रूनो को भी सच कहने के कारण चर्च ने जिन्दा जला दिया,

इसाइयों ने कई सौ साल तक चलने वाले युद्ध लड़े ,


दुनिया को लूटने वाले और सारे संसार पर युद्ध थोपने वाले अमरीका और यूरोप के पूंजीवादी राष्ट्र खुद को जीसस का अनुयायी कहते हैं। 

जबकि जीसस गरीब की तरह पैदा हुआ 

गरीब की तरह जिया 

गरीबों के लिए जिया 

और गरीब की तरह मारा गया।  

यही संस्थागत धर्म की त्रासदी है। 

जीसस को दो चोरों के साथ अपना सलीब खुद अपने कन्धों पर ढोने के लिए मजबूर किया गया .......

काँटों की टहनी उसके सर के चारों तरफ पहना दी गई 

अंत में जीसस को लकड़ी के सलीब पर कीलों से ठोक दिया गया....

जीसस मुझे एक धार्मिक नेता नहीं, अपना साथी लगता है ।


कामरेड जीसस को लाल सलाम।


Thursday, December 22, 2022

संघर्ष ही जीवन है (Struggle is Life)


बहुत पहले कहीं पढ़ा था। एक बार एक जंतु विज्ञान के प्रोफेसर अपने क्लास में आए । सभी छात्रों को मेज के पास बुला लिए । मेज पर एक अंडा रखा। अंडा किसी कीट का था। matured अंडा। प्रोफेसर ने छात्रों से कहा इसे ध्यान से देखना, ये अंडा टूटने वाला है, कह कर चले गए । 




कुछ ही समय के बाद अंडा में हरकत होनी शुरू हो गयी। अंडा टूटना शुरू हुआ। कीट बाहर आने के लिए संघर्ष करने लगा। संघर्ष इतना पीड़ा दायक था की छात्रों से देखा नहीं गया उन्होंने कीट की मदद कर दी, उसे अंडे से बाहर आने में। कीट बाहर तो आया लेकिन चल बसा अर्थात मर गया। 


कुछ देर बाद जब प्रोफेसर आए तो उन्होंने कीट को मरा पाया, समझते देर नहीं लगी की क्या हुआ होगा। उन्होंने छात्रों से कहा की ये कीट सौ वर्ष जीता है, और वो जो अंडा से बाहर आने की पीड़ा है वही इसे शक्ति देता है सौ वर्ष जीने के लिए। तुम लोगों ने इसे संघर्ष नहीं करने दिया और परिणाम ये हुआ कि वह सौ मिनट भी नहीं जी पाया। 


संघर्ष जरुरी है ! 


जिंदगी में संघर्ष न हो तो जिंदगी का मजा ही नहीं । पता ही नहीं चलेगा कि जीवित हैं भी या नहीं । घर्षण चलती गाड़ी ही महसूस करती है, रुकी हुई नहीं । संघर्ष जीवित इंसान के हिस्से आता है, मुर्दों के नहीं ।


Tuesday, December 13, 2022

5 रुपए की रोटी


एक व्यापारी था। जो 5_रुपए_की_रोटी बेचता था। उसे रोटी की कीमत बढ़ानी थी लेकिन बिना राजा की अनुमति कोई भी अपने दाम नहीं बढ़ा सकता था। लिहाज़ा राजा के पास व्यापारी पहुंचा, बोला राजा जी मुझे रोटी का दाम 10 करना है।


राजा बोला तुम 10 नहीं 30 रुपए करो।


व्यापारी बोला महाराज इससे तो हाहाकार मच जाएगा।

राजा बोला इसकी चिंता तुम मत करो, तुम 10 रुपए दाम कर दोगे तो मेरे राजा होने का क्या फायदा, तुम अपना फायदा देखो और 30 रुपए दाम कर दो।..........

अगले दिन व्यापारी ने रोटी का दाम बढ़ाकर 30 रुपए कर दिया, शहर में हाहाकार मच गया, सभी राजा के पास पहुंचे, बोले महाराज यह व्यापारी अत्याचार कर रहा है, 5 की रोटी 30 में बेच रहा है।..........

राजा ने अपने सिपाहियों को बोला उस गुस्ताख व्यापारी को मेरे दरबार में पेश करो।.........

व्यापारी जैसे ही दरबार में पहुंचा, राजा ने गुस्से में कहा गुस्ताख तेरी यह मजाल तूने बिना मुझसे पूछे कैसे दाम बढ़ा दिया, यह जनता मेरी है तू इन्हें भूखा मारना चाहता है। राजा ने व्यापारी को आदेश दिया कि तुम रोटी कल से आधे दाम में बेचोगे, नहीं तो तुम्हारा सर कलम कर दिया जाएगा।.........

राजा का आदेश सुनते ही पूरी जनता जोर-जोर से जयकारा लगाने लगी... महाराज की जय हो, महाराज की जय हो, महाराज की जय हो।........

नतीजा ये हुआ कि अगले दिन से 5 की रोटी 15 में बिकने लगी।

जनता खुश... व्यापारी खुश... और राजा भी खुश।

नोट: भारत के ज़रूरत से ज़्यादा होशियार और अक्लमंद लोगों से गुज़ारिश है कि इस कहानी को यदि आपलोग समझने की समझ विकसित कर लें तो देशहित में बेहतर हो सकता है।


Saturday, November 5, 2022

फूलन देवी का जीवनकाल और संघर्ष (Life and Struggle of Phoolan Devi)

 एक दस साल की लड़की, जो अपने बाप की जमीन के लिए लड़ गई थी. या एक बालिका-वधू, जिसका पहले उसके बूढ़े 'पति' ने रेप किया, फिर श्रीराम ठाकुर के गैंग ने. या एक खतरनाक डाकू, जिसने बेहमई गांव के 22 लोगों को लाइन में खड़ा कर मार दिया था. या फिर उस 'चालाक' औरत के रूप में, जो शुरू से ही डाकुओं के गैंग में शामिल होना चाहती थी. वो औरत, जिसकी जिंदगी पर फिल्म बनाकर उसका बलात्कार दिखाने वाले शेखर कपूर ने उससे पूछा भी नहीं था. या शायद एक पॉलिटिशियन के तौर पर, जिसने दो बार चुनाव जीता. या फिर एक औरत, जो खुद से मिलने आये 'फैन' शेर सिंह राणा को नागपंचमी के दिन खीर खिला रही थी, बिना ये जाने कि कुछ देर बाद यही आदमी उसे मार देगा.


फूलन

दस साल की उम्र में भी फूलन के तेवर वही थे। 10 अगस्त 1963 को यूपी में जालौन के घूरा का पुरवा में फूलन का जन्म हुआ था. गरीब और 'छोटी जाति' में जन्मी फूलन में पैतृक दब्बूपन नहीं था. उसने अपनी मां से सुना था कि चाचा ने उनकी जमीन हड़प ली थी. दस साल की उम्र में अपने चाचा से भिड़ गई. जमीन के लिए. धरना दे दिया. चचेरे भाई ने सर पे ईंट मार दी. इस गुस्से की सजा फूलन को उसके घरवालों ने भी दी. उसकी शादी कर दी गई. 10 की ही उम्र में. अपने से 30-40 साल बड़े आदमी से. उस आदमी ने फूलन से बलात्कार किया. कुछ साल किसी तरह से निकले. धीरे-धीरे फूलन की हेल्थ इतनी खराब हो गई कि उसे मायके आना पड़ गया. पर कुछ दिन बाद उसके भाई ने उसे वापस ससुराल भेज दिया. वहां जा के पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है. पति और उसकी बीवी ने फूलन की बड़ी बेइज्जती की. फूलन को घर छोड़कर आना पड़ा.

दो डाकुओं को हुआ फूलन से प्रेम, एक की जान गई। अब फूलन का उठना-बैठना कुछ नए लोगों के साथ होने लगा. ये लोग डाकुओं के गैंग से जुड़े हुए थे. धीरे-धीरे फूलन उनके साथ घूमने लगी. फूलन ने ये कभी क्लियर नहीं किया कि अपनी मर्जी से उनके साथ गई या फिर उन लोगों ने उन्हें उठा लिया. फूलन ने अपनी आत्मकथा में कहा: शायद किस्मत को यही मंजूर था. गैंग में फूलन के आने के बाद झंझट हो गई. सरदार बाबू गुज्जर फूलन पर आसक्त था. इस बात को लेकर विक्रम मल्लाह ने उसकी हत्या कर दी और सरदार बन बैठा. अब फूलन विक्रम के साथ रहने लगी. एक दिन फूलन अपने गैंग के साथ अपने पति के गांव गई. वहां उसे और उसकी बीवी दोनों को बहुत कूटा।


फूलन अपने गैंग के साथ

3 सप्ताह तक गैंगरेप और फिर 22 की हत्या ने बदला पूरा किया, अब इस गैंग की भिड़ंत हुई ठाकुरों के एक गैंग से. श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर का गैंग था ये. जो बाबू गुज्जर की हत्या से नाराज था और इसका जिम्मेदार फूलन को ही मानता था. दोनों गुटों में लड़ाई हुई. विक्रम मल्लाह को मार दिया गया. ये कहानी चलती है कि ठाकुरों के गैंग ने फूलन को किडनैप कर बेहमई में 3 हफ्ते तक बलात्कार किया. ये फिल्म 'बैंडिट क्वीन' में दिखाया गया है. पर माला सेन की फूलन के ऊपर लिखी किताब में फूलन ने इस बात को कभी खुल के नहीं कहा है. फूलन ने हमेशा यही कहा कि ठाकुरों ने मेरे साथ बहुत मजाक किया. इसका ये भी नजरिया है कि बलात्कार एक ऐसा शब्द है, जिसे कोई औरत कभी स्वीकार नहीं करना चाहती.

यहां से छूटने के बाद फूलन डाकुओं के गैंग में शामिल हो गई. 1981 में फूलन बेहमई गांव लौटी. उसने दो लोगों को पहचान लिया, जिन्होंने उसका रेप किया था. बाकी के बारे में पूछा, तो किसी ने कुछ नहीं बताया. फूलन ने गांव से 22 ठाकुरों को निकालकर गोली मार दी।


फूलन का गैंग

नया नाम मिला: बैंडिट क्वीन, जेल से छूटकर हुई राजनीति में एंट्री। यही वो हत्याकांड था, जिसने फूलन की छवि एक खूंखार डकैत की बना दी. चारों ओर बवाल कट गया. कहने वाले कहते हैं कि ठाकुरों की मौत थी इसीलिए राजनीतिक तंत्र फूलन के पीछे पड़ गया. मतलब अपराधियों से निबटने में भी पहले जाति देखी गई. पुलिस फूलन के पीछे पड़ी. उसके सर पर इनाम रखा गया. मीडिया ने फूलन को नया नाम दिया: बैंडिट क्वीन. उस वक़्त देश में एक दूसरी क्वीन भी थीं: प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी. यूपी में एक राजा थे: मुख्यमंत्री वी. पी. सिंह. बेहमई कांड के बाद रिजाइन करना पड़ा था इनको.

भिंड के एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी इस बीच फूलन के गैंग से बात करते रहे. इस बात की कम कहानियां हैं. पर एसपी की व्यवहार-कुशलता का ही ये कमाल था कि दो साल बाद फूलन आत्मसमर्पण करने के लिए राजी हो गईं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने. उन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के चार्जेज लगे. 11 साल रहना पड़ा जेल में. मुलायम सिंह की सरकार ने 1993 में उन पर लगे सारे आरोप वापस लेने का फैसला किया. राजनीतिक रूप से ये बड़ा फैसला था. सब लोग बुक्का फाड़कर देखते रहे. 1994 में फूलन जेल से छूट गईं. उम्मेद सिंह से उनकी शादी हो गई।


फूलन का सरेंडर

अरुंधती रॉय ने लिखा है: जेल में फूलन से बिना पूछे ऑपरेशन कर उनका यूटरस निकाल दिया गया. डॉक्टर ने पूछने पर कहा- अब ये दूसरी फूलन नहीं पैदा कर पायेगी. एक औरत से उसके शरीर का एक अंग बीमारी में ही सही, पर बाहर कर दिया जाता है और उससे पूछा भी नहीं जाता. ये है समाज की प्रॉब्लम. जिंदगी बदली, पर मौत आ गई, 1996 में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत गईं. मिर्जापुर से सांसद बनीं. चम्बल में घूमने वाली अब दिल्ली के अशोका रोड के शानदार बंगले में रहने लगी।


फूलन पार्लियामेंट में

1998 में हार गईं, पर फिर 1999 में वहीं से जीत गईं. 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा फूलन से मिलने आया. इच्छा जाहिर की कि फूलन के संगठन 'एकलव्य सेना' से जुड़ेगा. खीर खाई. और फिर घर के गेट पर फूलन को गोली मार दी. कहा कि मैंने बेहमई हत्याकांड का बदला लिया है. 14 अगस्त 2014 को दिल्ली की एक अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

अपने कुल 38 साल के जीवन में फूलन की कहानी भारतीय समाज की हर बुराई को समेटे हुए है. कहीं ऐसा लग सकता है कि ये एक बलात्कार का नतीजा था. पर अरुंधती रॉय कहती हैं कि अगर बलात्कार फूलन देवी बनाता तो देश में हजारों फूलन देवियां घूम रही होतीं. ये पूरी 'मर्दवादी संस्कृति' की पैदाइश है. जाति, जमीन, औरत, मर्द सब कुछ समेटे हुए है ये कहानी।

Saturday, October 15, 2022

जीवन क्या है इसे कैसे जिएं (What is Life & How to live it)

 

आप जानते हैं कि आपके अंतिम संस्कार के बाद आम तौर पर क्या होता होगा?

देहावसान के कुछ ही घंटों में रोने की आवाज पूरी तरह से बंद हो जाएगी।

रिश्तेदारों के लिए होटल से खाना मंगवाने में जुटेगा परिवार..

पोते दौड़ने और खेलने लगेंगे।

कुछ पुरुष सोने से पहले चाय की दुकान पर टहलने जाएंगे।

आपका पड़ोसी यह सोचकर क्रोधित होगा कि लोगों ने अनुष्ठान के पत्तों को उनके द्वार के पास फेंक दिया हो।

कोई रिश्तेदार फोन पर बात कर, आपात स्थिति के कारण व्यक्तिगत रूप से न आने का कारण बताएगा।

अगले दिन रात के खाने में, कुछ रिश्तेदार कम हो जाएंगे और कुछ लोग सब्जी में पर्याप्त नमक नहीं होने की शिकायत करेंगे।

विदेशी संबंधी गुप्त रूप से पर्यटन की योजना बना लेंगे, जैसे कि उन्होंने वहां के रास्ते पर इतनी दूर कभी नहीं देखा था।

क रिश्तेदार अंतिम संस्कार के बारे में शिकायत कर सकता है कि उसने अपने हिस्से पर कुछ सौ रुपये अधिक खर्च किए हैं।

भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगेगी..

आने वाले दिनों में ....

कुछ कॉल आपके फोन पर बिना यह जाने आ सकते हैं कि आप मर चुके हैं।

आपका कार्यालय, बिजनेस आदि आपकी जगह लेने के लिए किसी को ढूंढने में जल्दबाजी करेगा।

एक हफ्ते बाद तुम्हारी मौत की खबर सुनकर,

आपकी पिछली पोस्ट क्या थी, यह जानने के लिए कुछ फेसबुक मित्र उत्सुकता से खोज कर सकते हैं।

दो सप्ताह में बेटा और बेटी अपनी आपातकालीन छुट्टी खत्म होने के बाद काम पर लौट आएंगे।

महीने के अंत तक आपका जीवनसाथी कोई कॉमेडी शो देखकर हंसने लगेगा।

आने वाले महीनों में आपके करीबी रिश्ते सिनेमा और समुद्र तट पर लौट आएंगे।

सबका जीवन सामान्य हो जाएगा, जिस तरह एक बड़े पेड़ के सूखे पत्ते में और जिसके लिए आप जीते और मरते हैं, उसमें कोई अंतर नहीं है, यह सब इतनी आसानी से, इतनी तेजी से, बिना किसी हलचल के होता है।

आपको इस दुनिया में आश्चर्यजनक गति से भुला दिया जाएगा।

इस बीच आपकी प्रथम वर्ष पुण्यतिथि भव्य तरीके से मनाई जाएगी।

पलक झपकते ही.......

साल बीत गए और तुम्हारे बारे में बात करने वाला कोई नहीं है।

एक दिन बस पुरानी तस्वीरों को देखकर आपका कोई करीबी आपको याद कर सकता है,

आपके गृहनगर में, आप जिन हजारों लोगों से मिले हैं, उनमें से केवल एक ही व्यक्ति कभी-कभी याद कर सकता है और उसके बारे में बात कर सकता है।

आप शायद कहीं और रह रहे हैं, किसी और के रूप में, अगर पुनर्जन्म सच है।

अन्यथा, आप कुछ भी नहीं होंगे और दशकों तक अंधेरे में डूबे रहेंगे।

मुझे अभी बताओ...

लोग आपको आसानी से भूलने का इंतजार कर रहे हैं

फिर आप किसके लिए दौड़ रहे हो?

और आप किसके लिए चिंतित हैं?

अपने जीवन के अधिकांश भाग के लिए, मान लीजिए कि 80%, आप इस बारे में सोचते हैं कि आपके रिश्तेदार और पड़ोसी आपके बारे में क्या सोचते हैं.. क्या आप उन्हें संतुष्ट करने के लिए जीवन जी रहे हैं? किसी काम का नहीं ऐसा जीवन .....

जिंदगी एक बार ही होती है, बस इसे जी भर के जी लो….

और जिस उद्देश्य के लिए जन्म लिया है उस उद्देश्य को पूरा करो। कर्म ही सबकुछ है जीवन का संबंध इस इस शरीर से है और शरीर का संबंध भोज्य पदार्थों से है और ये भोज्य पदार्थ बिना कर्म के नहीं मिलते। इसलिए इस मानव रूपी जीवन में मानव को सबकुछ मानते हुए जात-पात और धर्म रूपी पाखंड को छोड़कर मनुष्य बनकर एक समाज उपयोगी जीवन जीने का प्रयास करें, यही वास्तविकता है।

Saturday, July 30, 2022

एक था राधेश्याम

 

राधेश्याम दो शब्दों से मिलकर बना है ‘राधे + श्याम’। राधेश्याम का अर्थ राधिका का श्याम अर्थात कृष्ण होता है। कृष्ण हिंदुओं के एक देवता हैं जिसे हिन्दू समाज पूजता है। मैंने 5 वीं पास करके 6 वीं में जब बगल के गांव में दाखिला लिया तो उसी स्कूल में मुझे इसी नाम का एक सहपाठी मिला। चुंकि वह मेरे ही गांव का निवासी था। उसी उम्र में वह काफी चंचल स्वभाव का था। जैसे- सबसे बोलना, मजाक करना, गाना गाना, सार्वभौमिक गुण थे उसमें। धीरे-धीरे हम दोनों दोस्त बने और हम दोनों साथ-साथ B. A.(स्तानक) तक सहपाठी ही रहे। 12वीं पास करने के बाद मेरे पास 8-9 मित्रों का एक समूह था। राधेश्याम उनमें से एक था। हमारे समूह में किसी का भी कैसा भी कार्य करना होता था तो हम सभी मिलकर उसे कर देते थे। हम सब समूह के बाहर भी बहुत से ग्रामवासियों की सहायता करते थे। उसके बाद राधेश्याम भर्ती की तैयारी करने लगा, कुछ दिन बाद उसकी शादी भी हो गई और मैं महाराष्ट्र आ गया और यहां पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से एम. ए. किया और फिलहाल पी-एच.डी. चल रही है। राधेश्याम हमारे ग्रुप में सबसे होनहार और बुलंद शरीर का था। हजारों में एक था  एक चित्र के माध्यम से उसे देखा जा सकता है....



जब भी मैं वर्धा से गांव पर जाता था। हम सभी मित्र इकठ्ठे होकर बहुत खुशी महसूस करते थे। पूरा दिन हंसी-माजक में कट जाता था पता भी नहीं चलता। एक दो लोगों को छोड़ दें तो मेरे ग्रुप में मेरे अपेक्षा सभी मित्र अमीर थे। मैं बहुत निम्न परिवार से था। साल 2018 में मेरे परिवार को रहने के लिए एक पक्का घर बना । कहानी लिखने तक उसी एक घर में मेरे पूरे परिवार का भरण-पोषण होता है। पुरुषों को रहने के लिए एक मड़ई है। मेरे परिवार में कुल 5 सदस्य हैं।

मेरे पिता जी के नाम से मात्र 3 मंडा (120 धुर) खेत है। जिसके हम दो भाई हिस्सेदार हैं अर्थात प्रत्येक भाई को 1.5 मंडा अर्थात  60 धुर मिलेगा। एक तरह से मेरा परिवार बंजारा परिवार की तरह है, रोज कामना और उसे खा जाना। मैं आर्थिक रूप से भले ही गरीब हैं मगर मित्रवत रूप से बहुत ही अमीर हूँ। मित्रों की वजह से आज तक मेरा कोई काम रुका नहीं। इसलिए मैं अपने मित्रों को भगवान स्वरूप मानता हूं। 

इन्हीं मित्रों के सहयोग से मैं साल 2021 में ग्रामप्रधान का चुनाव लगा। मेरे मित्रों को विपक्षियों ने तोड़ने का भरपूर प्रयास किया। यहां तक कि एक दूसरे के परिवार में झगड़ा तक करा दिया। चुनाव में सबसे ज्यादा पारिवारिक उलझन राधेश्याम ने झेला क्योंकि उसका परिवार मेरे विपक्षी को सपोर्ट करता था। मैंने उसे बहुत बार परिवार के साथ रहने का विचार दिया मगर वह नहीं माना। मैंने उसका मात्र एक बार सहयोग किया था वो भी मैंने अकेले नहीं किया था। वह उस सहयोग को एहसान मान बैठा था एक दूसरा कारण यह भी था कि वह सही के साथ खुलकर खड़ा रहता था। उस एक सहयोग के बदले उसने मुझ पर और मेरे अन्य दोस्तों पर अनगिनत एहसान किया। जहां कोई खड़ा न हो सके वहां अकेले खड़ा होने की क्षमता रखता था वह। हम लोगों के ग्रुप का मुखिया था वह। ग्रामप्रधान के चुनाव में मैंने उसे ही खड़ा होने को कहा था मगर वह मुझे चुना, इतना त्यागी था वह। किसी भी विपत्ति में कोई भी पुकार से एक पैर पर खड़ा रहता था वह। परिवार के विरोध में रहकर मुझे चुनाव लड़ाकर मेरे जैसे निम्न वर्ग के लड़के को चुनाव में दूसरा स्थान हासिल करवाया। 34 वोट से मैं चुनाव हारा। मुझे प्रधान बनाकर वह गांव में अपने माध्यम से अच्छे-अच्छे कार्य कराने का सपना देखता था। वह एक कुशल वक्ता था। गाँव के किसी भी प्रोग्राम में उसे मंच संचालन के लिए रखा जाता था। उसने खुद के बल पर इतनी पहचान बना रखी थी कि धीरे-धीरे पूरा क्षेत्र उसे जानने लगा था। वह अपने बोलने की स्टाइल से किसी के भी मन को मोह लेता था। एक तरह से मनमोहन था वह। मैंने भी उसके लिए कुछ कर गुजरने का स्वप्न संजो रखा था मगर...?। चुनाव में हारने के कुछ महीने बाद वह जॉब के लिए हरियाणा चला गया और उसके जाने के ठीक 9 दिन बाद मैंने फिर पढ़ाई के लिए वर्धा जाने के लिए ट्रेन पकड़ा। 10 मार्च का दिन था सुबह हो रहा था मेरी ट्रैन कुछ देर में नागपुर पहुंचने वाली थी। मेरे एक मित्र का अचानक फ़ोन आया और उसने राधेश्याम का एक्सिडेंट होने की खबर बताई। मुझे विश्वास नहीं हुआ फिर मैंने एकाध मित्रों को फ़ोन लगाया उन्होंने भी एक्सीडेंट की बात सही कही। फिर मैं उसके यहां जाने की योजना बनाने लगा तब तक मित्रों ने सूचना दी की जाने से कोई फायदा नहीं है क्योंकि अब राधेश्याम इस दुनिया में नहीं रहा। मुझे उस समय इस बात पर विश्वास नहीं हुआ और आज भी नहीं होता है। क्योंकि हमेशा ऐसा महसूस होता है वह कहीं गया है और जल्द ही आएगा फिर हम लोग साथ बैठेंगे, पार्टियां करेंगे और वह हम सबको डाँटेगा और समझाएगा। मगर बहुत दिन हो गया न वह फ़ोन करता है और न ही आने की बात करता है। जब भी उसकी यादें आती हैं तो बहुत रुलाती हैं। मगर जब तक हम जीवित हैं उसके आने का इंतजार करते रहेंगे। अब तो उसकी यादें मुझे मेरे दुखों में उर्जा देती हैं मैं जब कभी अकेले या किसी दुःख में रहता हूँ तो उसको याद करके रो लेता हूँ जिससे कि मुझे जीवन जीने के लिए उर्जा मिलती है मैं नागपुर से फिर बस पकड़कर गाँव के लिए रवाना हुआ मगर मैं उसके अंतिम यात्रा के अंतिम घड़ी में पहुंचा उसने हम सब पर इतना एहसान किया मगर हमें एहसान चुकाने का क्षण भर के लिए भी मौका नहीं दिया हम लोगों को जीवनभर के लिए कर्जदार करके चला गया मुझे तो उसने अपना जनाजा भी उठाने का मौका नहीं दिया सुना था मैं कि उसके जनाजे में जितनी भीड़ इकठ्ठी हुई थी उतनी भीड़ मेरे ग्रामसभा के किसी भी व्यक्ति के जनाजे में आज तक इकठ्ठी नहीं हुई थी उसकी उम्र मात्र अभी 26 वर्ष थी। मैंने सुना था ऐसी कोई आँख नहीं थी जो उस दिन रोई नहीं। जो उसको नहीं देखे थे वे उसकी तस्वीर देखकर रोए थे । हफ़्तों तक गाँव में शोक का माहौल रहा... इस हस्ती का नाम था राधेश्याम ! हरेक के बहुत मित्र होंगे और मिलेगें भी मगर मित्रता केवल होने और मिलने वाली चीज नहीं है इसे जीना पड़ता है और वह भी निःस्वार्थ भाव से।

कहा गया है कि यह दुनिया परिवर्तनशील है यहाँ पर कुछ भी स्थिर नहीं रहता है । सबको एक-न-एक दिन इसको छोड़कर जाना है क्योंकि जिंदगी जन्म और मृत्यु के बीच की यात्रा है। इसलिए जाने वाला चला जाता है और बचने वालों को जीना पड़ता है । जैसे....“राधेश्याम और मैं”

आज मित्रता दिवस पर राधेश्याम के लिए दो लाइन...........

तू हम सबका अभिमान, चेहरे की मुस्कान, और मेरे लिए भगवान था !

तेरे बिना न हम सबका न सुबह था, न शाम था !

तू हीं तो हम सबकी जान था, तू हीं तो जहान था !

उसके अग्निदाह के वक्त की एक तस्वीर.......


Miss you राधे....................

तुम्हारा कर्जदार मित्र .......मन्नू     

Saturday, July 23, 2022

ड्राइंग रूम में कबीर

 

यह कहानी नहीं अपितु 'दैनिक प्रजातंत्र' में 25 जून 2022 को छपा दो दोस्तों के बीच का वार्तालाप है मगर इस वार्तालाप में बहुत ही गहन चिंतन है अतः शांत चित से इसे पढ़े और कबीर के महत्व को समझने का प्रयास करें



वार्तालाप शुरू ****************
आइये बैठिये, ... और .. हाँ, इनसे मिलिए, ग्रेट पोएट कबीर, ‘आवर फॅमिली मेंबर नाव(Now)’
सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए उन्होंने किताब के बारे में बताया

          गौर से देखा, वाकई कबीर ही हैं
सोफे पर खुले हुए, कुछ बिखरे हुए से एसी(AC) में पड़े हैं वे समझ गए, सफाई देते हुए बोले, - “बच्चे बड़े शैतान हैं, खेल रहे थे इनके लिए कबीर की पिक्चर बुक भी है लेकिन फाड़-फ़ूड दी होगी

               “हुसैन नहीं दिख रहे !?” मैंने पूछा
पिछली बार आया था तो उस दीवार पर टंगे थे तब भी उन्होंने कहा था किदिस इस हुसैन ... द ग्रेट आर्टिस्टअवर फॅमिली मेंबर नाव(now) ‘यू नो(you know)’ हमारे पास काफी सारे विडिओ और फोटोग्राफ्स भी हैं इनके'

             इस वक्त अपना कहा शायद वे भूल गए थे, बोले – “हुसैन !! वो क्या है अभी जरा माहौल ठीक नहीं है . ... यू नो(you know) ... सोसाइटी है ... सब देखना समझना पड़ता है
  स्टोर रूम में हैं  ... अभी तो कबीर हैं ना, ... नो ऑब्जेक्शन के साथ

             “लेकिन कबीर में तो बहुत डांट फटकार और कान खिंचाई है ?! ... आप बड़े बिजनेसमेन ! आपको कैसे सूट कर गए ?”

                “देखिये दो बातें हैं, एक तो आजकल पढ़ता ही कौन है ? ऐसे में किसको पता कि कबीर ने फटकारा भी है
ब्राण्ड वेल्यू होती है हर चीज की यू नो ब्राण्ड का जमाना है, सोसायटी अब चड्डी बनियान भी ब्रांडेड पसंद करती है दूसरी बात खुद कबीर ने भी कहा है कि निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छबाय तो हमने ड्राइंगरूम शोकेस में सजायलिया है” .

               “फिर भी आपको लगता तो होगा कि आपका कामकाज और कबीर में टकराहट हो रही है
वे संत हैं, कहते हैं कबीर इस संसार का झूठा माया मोह’ कैसे बचाते हैं इस टकराहट से अपने आप को ?”

              “टकराहट कैसी ? हमने तो अपने दफ्तर में लिखवा रखा है, काल करे सो आज कर, आज करे सो अब; पल में परलय होयेगा, बहुरि करेगा कब
इससे मेसेज जाता है कि कबीर ने फेक्ट्री वर्कर्स को फटाफट काम करने के लिए कहा है इसके आलावा एक और बढ़िया बिजनेस टिप है उनकी ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय; औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होए इस फार्मूले से क्लाइंट को डील करो तो बिजनेस बढ़ता है आदमी कोई बुरा नहीं होता  है

              “फिर भी धंधे में देना-लेना, ऊँच-नीच, अच्छा-बुरा सब करना पड़ता है
कबीर इनके पक्ष में नहीं हैं इसलिए कहीं न कहीं चुभते होंगे

             “जी नहीं, ... उन्होंने कहा है दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ; जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय’
इसका मतलब है कि फंसने पर तो सब मुट्ठी गरम करते हैं, बिना फंसे जो मुट्ठी नरम करता रहे तो मुट्ठी गरम करने की नौबत ही नहीं आये दरअसल आप जैसे कच्चे पक्के लोगों ने कबीर को किताबों से बाहर निकलने ही नहीं दिया उन्हें तो बाज़ार में होना चाहिए था सुना होगा, कबीर खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर; न कहू से दोस्ती न कहू से बैर व्यापारी का न कोई दोस्त होता है न बैरी बस  वो होता है और ग्राहक होता  जब गुन को गाहक मिले, तब गुन लाख बिकाई ; जब गुन को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई’ यानी ग्राहक पटाना सबसे बड़ी बात है, वे बोले

               “बाज़ार में कुछ वसूली वाले भी तो होते हैं, उनका क्या ? भाइयों को हप्ता देना पड़ता होगा, पुलिस को महीना, किसी को सालाना ! पार्टियों को भी चंदा-वंदा देना पड़ता होगा


                 “हाँ देते है, ... चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय; दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय’
यहाँ क़ानूनी और गैर क़ानूनी दोनों तरह के पाट हैं सब देते हैं, सबको देते हैं, कोई साबुत नहीं बचता है

               “लगता है कबीर को आपने अपना वकील बना लिया है !

               “ऐसा नहीं हैकबीर में सब हमारे काम का तो है नहीं
उन्होंने ही कहा है सार सार को गहि लेय, थोथा देय उड़ाय तो इसमें बुरे क्या है ?”

                “ईश्वर से डर तो लगता ही होगा उठते हुए हमने सवाल किया


                 “ईश्वर से किसी का आमना-सामना कहाँ होता है
सब भ्रम है वे कह गए हैं जब मैं था हरि नहीं, अब हरि है मैं नहीं आप अपना बनाओगे तभी कबीर अपने लगेंगे सैन बैन समझे नहीं, तासों कछु न कैन’, यानी आदमी को इशारा समझना चाहिए, जो नहीं समझे उससे कुछ नहीं कहना

Thursday, January 27, 2022

गुरुदेव के भगवान और मेरे भगवान गुरुदेव

 

मेरे गुरुदेव में एक बुरी आदत थी वे बहुत ज्यादा गुस्सा करते थे और बातों-बातों में रो देते थे। मगर जबसे मुझसे उनसे बातें होने लगी थी उनका गुस्सा धीरे-धीरे कम होने लगा था क्योंकि मैं जब भी उनको गुस्सा छोड़ने को कहता थावे कहते थे नहीं छूट पाएगा। फिर मैं उनको दो पंक्तियां सुनाता था... “लहरों से डरक नौका पार नहीं होतीकोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

मेरे और गुरुदेव में अक्सर भगवान को लेकर झगड़ा होता रहता था क्योंकि वे भगवान को मानते थे और मैं उनको ही भगवान मानता था। वे जिस दिन किसी मंदिर से अपने भगवान का दर्शन करके आते थे तो मुझे बताते थेमैं बोलता था मेरे भगवान का तो रोज दर्शन हो जाता है तो वे पूछते थेकैसेमैं पूछता था कि आप भी दर्शन करोगेतो वे कहते... हां... फिर मैं उनका फोटो भेजकर कहता था लीजिए मेरे भगवान का दर्शन कर लीजिए। बस यहीं से झगड़ा शुरू हो जाता था। वे बोलते थे कि यह तो मेरी फोटो है तो मैं बोलता थानहीं यह मेरे भगवान की फोटो है फिर वे कहते थे.. आप किसी व्यक्ति को भगवान कैसे मान सकते हैं?
चूंकि मैं समाजसेवी विचारधारा का व्यक्ति थामेरे लिए मेरा सबकुछ समाज ही था। एक बार मेरे मन में एक सवाल उठा था कि लोग भगवान को भगवान क्यों मानते हैंउनके लिए इतना समर्पित क्यों रहते हैं और प्रत्येक धर्म के लोग ऐसा करते हैं (हिन्दूमुस्लिमसिखईसाई आदि)प्रतिउत्तर में मुझे यह मिला कि लोगों की मान्यता है कि भगवान उनके सुख-दुःख में साथ देते हैं। मगर आज तक किसी ने किसी की सहायता करते भगवान को नहीं देखा है यह केवल विश्वास मात्र ही है।
भगवान की मान्यता के प्रति क्रांतिकारी भगत सिंह का विचार -

पेरियार ई वी स्वामी के विचार- ईश्वर को धूर्तों ने बनाया, गुंडों ने चलाया और मुर्ख उसे पूजते हैं

ओशो के विचार - परमात्मा मंदिर में नहीं, तुम्हारे में है मंदिर तो तुम्हारे अपाहिज होने का प्रमाण है

लोगों के द्वारा प्राप्त उत्तर जो वे भगवान को भगवान मानने के लिए देते हैं। उसी आधार पर मैं समाज को अपना भगवान और समाजसेवा को अपना धर्म मानता हूं क्योंकि जब भी हमारे ऊपर कोई दुःख आता है तो हमारे समाज का कोई व्यक्ति (जैसे- मेरा कोई मित्रमेरा कोई हितैसी आदि) आकर मेरी सहायता करता है न कि भगवान! जिससे कि हमें अपने दुख से बाहर निकलने में सहायता मिलती हैऐसा प्रत्येक व्यक्ति के साथ होता है ऐसा नहीं है कि केवल मेरे साथ ही होता है। फ़र्क बस इतना है कि इसके बावजूद भी लोग अपने मित्रों और हितैषियों को भगवान नहीं मानते अर्थात वे लोग भगवान को मानने के लिए दिए गए खुद के तर्क को भी नहीं मानते।

मेरे गुरुदेव का भी भगवान को मानने का जो तर्क था वह आमलोगों की तरह ही था इसलिए उनसे अक्सर तर्क-वितर्क होता रहता था। वे अपने ही तर्कों में फंस जाते थेबाद में मैं उनको चिढ़ाने के लिए कह देता था कि मैं जीत गया। फिर वे कहते.. हां भाई.. आप महान हो मैं आपसे कहां जीत सकता हूं। मगर असल में मुझे कभी उनकी हार देखना पसंद नहीं था अब मैं फिर उस रात उनको जिताने के लिए बातचीत आगे जारी रखा। मेरे गुरुदेव के सबसे प्रिय भगवान हनुमान जी व श्री कृष्ण के अलावा भी उनके एक और प्रिय भगवान थे जिनका नाम मुजून बाबा(काल्पनिक नाम) था। मैं उन्हें चिढ़ाने के लिए कभी-कभी पूछ देता थाआपके मजनू बाबा का क्या हाल हैफिर तो वे मुझ पर आग बबूला हो जाते थेकहते थे कि आज के बाद मैं आपसे बात नहीं करूंगा क्योंकि आप मेरे भगवान का मजाक उड़ा रहे हैं क्योंकि भोजपुरी भाषा में ‘मजनू’ काअर्थ "किसी प्रेमिका के प्यार में पागल प्रेमी" होता हैमैं पुनः उन्हें मनाने के लिए प्यारी-प्यारी बातें करने लगा मगर उनका गुस्सा शांत नहीं हो रहा था। फिर गुरुदेव ने मेरे सामने एक अद्भुत प्रश्न पेस कर दिया। प्रश्न यह था कि यदि आप किसी के भी भगवान का आज के बाद मजाक उड़ाएंगे तो मैं आपसे बात नहीं करूंगा। फिर क्या मुझे उन्हें जिताने का सुनहरा मौका मिल गया और मैं उनकी बातों को मान लियाअंततः उनकी विजय हुई "जीतना किसी के लिए उतना कठिन नहीं होता क्योंकि जीतना तो हर कोई चाहता हैकिसी को जिताना काफी कठिन होता है। आप लोगों को भी कभी किसी को जिताने का मौका मिले तो अवश्य प्रयास कीजिएगा"। जो पाठक गुरुदेव से भ्रमित होंगे वे जान लें कि वे मेरी एक महिला मित्र थीं जिनका मैंने नाम गुरुदेव रखा था। वे काफी चतुरचालाक व मेहनती महिला थींउनका परिश्रम मुझे बहुत पसंद था।
उनके द्वारा लिखी गई एक कविता नीचे दी जा रही है जो निम्न है-
                                              कविता का शीर्षक – “बदलाव
मौसम की एक खासियत होती है बदलाव वह कभी भी बदल सकता है,
और इंसान इन सब बातों से भली-भांति परिचित होता है इसलिए,
वह मौसम को कुछ नहीं कहता पर इंसान में हुए बदलाव को इंसान देखकर हैरान क्यों हो जाता है. 
क्यों नहीं मान लेता कि इंसान भी उसी मौसम की तरह है जो अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में सामंजस स्थापित करने के लिए अपने आप में बदलाव करता है।
किसी भी चीज में बदलाव बेहद जरूरी है बिना बदलाव के लोगों का विकास असंभव है इसलिए हरेक इंसान को अपने में समय के साथ परिवर्तन करना आवश्यक है।
न कि दूसरों के बदलने पर उनके परिवर्तन को गलत साबित करना,
इसलिए यदि किसी व्यक्ति में बदलाव हो रहा है तो होने देंउसके बदलाव की प्रक्रिया में बांधा न बनें।

लेखक - मन्नू सिंह यादव (PhD शोधार्थी)