Thursday, January 27, 2022

गुरुदेव के भगवान और मेरे भगवान गुरुदेव

 

मेरे गुरुदेव में एक बुरी आदत थी वे बहुत ज्यादा गुस्सा करते थे और बातों-बातों में रो देते थे। मगर जबसे मुझसे उनसे बातें होने लगी थी उनका गुस्सा धीरे-धीरे कम होने लगा था क्योंकि मैं जब भी उनको गुस्सा छोड़ने को कहता थावे कहते थे नहीं छूट पाएगा। फिर मैं उनको दो पंक्तियां सुनाता था... “लहरों से डरक नौका पार नहीं होतीकोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

मेरे और गुरुदेव में अक्सर भगवान को लेकर झगड़ा होता रहता था क्योंकि वे भगवान को मानते थे और मैं उनको ही भगवान मानता था। वे जिस दिन किसी मंदिर से अपने भगवान का दर्शन करके आते थे तो मुझे बताते थेमैं बोलता था मेरे भगवान का तो रोज दर्शन हो जाता है तो वे पूछते थेकैसेमैं पूछता था कि आप भी दर्शन करोगेतो वे कहते... हां... फिर मैं उनका फोटो भेजकर कहता था लीजिए मेरे भगवान का दर्शन कर लीजिए। बस यहीं से झगड़ा शुरू हो जाता था। वे बोलते थे कि यह तो मेरी फोटो है तो मैं बोलता थानहीं यह मेरे भगवान की फोटो है फिर वे कहते थे.. आप किसी व्यक्ति को भगवान कैसे मान सकते हैं?
चूंकि मैं समाजसेवी विचारधारा का व्यक्ति थामेरे लिए मेरा सबकुछ समाज ही था। एक बार मेरे मन में एक सवाल उठा था कि लोग भगवान को भगवान क्यों मानते हैंउनके लिए इतना समर्पित क्यों रहते हैं और प्रत्येक धर्म के लोग ऐसा करते हैं (हिन्दूमुस्लिमसिखईसाई आदि)प्रतिउत्तर में मुझे यह मिला कि लोगों की मान्यता है कि भगवान उनके सुख-दुःख में साथ देते हैं। मगर आज तक किसी ने किसी की सहायता करते भगवान को नहीं देखा है यह केवल विश्वास मात्र ही है।
भगवान की मान्यता के प्रति क्रांतिकारी भगत सिंह का विचार -

पेरियार ई वी स्वामी के विचार- ईश्वर को धूर्तों ने बनाया, गुंडों ने चलाया और मुर्ख उसे पूजते हैं

ओशो के विचार - परमात्मा मंदिर में नहीं, तुम्हारे में है मंदिर तो तुम्हारे अपाहिज होने का प्रमाण है

लोगों के द्वारा प्राप्त उत्तर जो वे भगवान को भगवान मानने के लिए देते हैं। उसी आधार पर मैं समाज को अपना भगवान और समाजसेवा को अपना धर्म मानता हूं क्योंकि जब भी हमारे ऊपर कोई दुःख आता है तो हमारे समाज का कोई व्यक्ति (जैसे- मेरा कोई मित्रमेरा कोई हितैसी आदि) आकर मेरी सहायता करता है न कि भगवान! जिससे कि हमें अपने दुख से बाहर निकलने में सहायता मिलती हैऐसा प्रत्येक व्यक्ति के साथ होता है ऐसा नहीं है कि केवल मेरे साथ ही होता है। फ़र्क बस इतना है कि इसके बावजूद भी लोग अपने मित्रों और हितैषियों को भगवान नहीं मानते अर्थात वे लोग भगवान को मानने के लिए दिए गए खुद के तर्क को भी नहीं मानते।

मेरे गुरुदेव का भी भगवान को मानने का जो तर्क था वह आमलोगों की तरह ही था इसलिए उनसे अक्सर तर्क-वितर्क होता रहता था। वे अपने ही तर्कों में फंस जाते थेबाद में मैं उनको चिढ़ाने के लिए कह देता था कि मैं जीत गया। फिर वे कहते.. हां भाई.. आप महान हो मैं आपसे कहां जीत सकता हूं। मगर असल में मुझे कभी उनकी हार देखना पसंद नहीं था अब मैं फिर उस रात उनको जिताने के लिए बातचीत आगे जारी रखा। मेरे गुरुदेव के सबसे प्रिय भगवान हनुमान जी व श्री कृष्ण के अलावा भी उनके एक और प्रिय भगवान थे जिनका नाम मुजून बाबा(काल्पनिक नाम) था। मैं उन्हें चिढ़ाने के लिए कभी-कभी पूछ देता थाआपके मजनू बाबा का क्या हाल हैफिर तो वे मुझ पर आग बबूला हो जाते थेकहते थे कि आज के बाद मैं आपसे बात नहीं करूंगा क्योंकि आप मेरे भगवान का मजाक उड़ा रहे हैं क्योंकि भोजपुरी भाषा में ‘मजनू’ काअर्थ "किसी प्रेमिका के प्यार में पागल प्रेमी" होता हैमैं पुनः उन्हें मनाने के लिए प्यारी-प्यारी बातें करने लगा मगर उनका गुस्सा शांत नहीं हो रहा था। फिर गुरुदेव ने मेरे सामने एक अद्भुत प्रश्न पेस कर दिया। प्रश्न यह था कि यदि आप किसी के भी भगवान का आज के बाद मजाक उड़ाएंगे तो मैं आपसे बात नहीं करूंगा। फिर क्या मुझे उन्हें जिताने का सुनहरा मौका मिल गया और मैं उनकी बातों को मान लियाअंततः उनकी विजय हुई "जीतना किसी के लिए उतना कठिन नहीं होता क्योंकि जीतना तो हर कोई चाहता हैकिसी को जिताना काफी कठिन होता है। आप लोगों को भी कभी किसी को जिताने का मौका मिले तो अवश्य प्रयास कीजिएगा"। जो पाठक गुरुदेव से भ्रमित होंगे वे जान लें कि वे मेरी एक महिला मित्र थीं जिनका मैंने नाम गुरुदेव रखा था। वे काफी चतुरचालाक व मेहनती महिला थींउनका परिश्रम मुझे बहुत पसंद था।
उनके द्वारा लिखी गई एक कविता नीचे दी जा रही है जो निम्न है-
                                              कविता का शीर्षक – “बदलाव
मौसम की एक खासियत होती है बदलाव वह कभी भी बदल सकता है,
और इंसान इन सब बातों से भली-भांति परिचित होता है इसलिए,
वह मौसम को कुछ नहीं कहता पर इंसान में हुए बदलाव को इंसान देखकर हैरान क्यों हो जाता है. 
क्यों नहीं मान लेता कि इंसान भी उसी मौसम की तरह है जो अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में सामंजस स्थापित करने के लिए अपने आप में बदलाव करता है।
किसी भी चीज में बदलाव बेहद जरूरी है बिना बदलाव के लोगों का विकास असंभव है इसलिए हरेक इंसान को अपने में समय के साथ परिवर्तन करना आवश्यक है।
न कि दूसरों के बदलने पर उनके परिवर्तन को गलत साबित करना,
इसलिए यदि किसी व्यक्ति में बदलाव हो रहा है तो होने देंउसके बदलाव की प्रक्रिया में बांधा न बनें।

लेखक - मन्नू सिंह यादव (PhD शोधार्थी)

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