Monday, January 24, 2022

हमारे कृषक

 

जेठ हो कि हो पूसहमारे कृषकों को आराम नहीं है।

छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है।।

मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है।

वसन कहाँसूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है।।

 

बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं?

बंधी जीभआँखें विषम गम खाशायद आँसू पीते हैं।।


पर शिशु का क्या? सीख न पाया अभी जो आँसू पीना।

चूस-चूस सूखा स्तन माँ कासो जाता रो-विलप नगीना।।

विवश देखती माँ आँचल से नन्ही तड़प उड़ जाती।

अपना रक्त पिला देती यदि फटती आज वज्र की छाती।।


कब्र-कब्र में अबोध बालकों की भूखी हड्डी रोती है।

दूध-दूध की कदम-कदम पर सारी रात होती है।।

दूध-दूध औ वत्स मंदिरों में बहरे पाषान यहाँ है।

दूध-दूध तारे बोलो इन बच्चों के भगवान कहाँ हैं।।


दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे।

दूध-दूध उफ कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे।।

दूध-दूध दुनिया सोती है लाऊँ दूध कहाँ किस घर से

दूध-दूध हे देव गगन के कुछ बूँदें टपका अम्बर से ।।

हटो व्योम केमेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं

दूध-दूध हे वत्स! तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं।।

 

लेखक- रामधारी सिंह 'दिनकर'

No comments:

Post a Comment