Thursday, January 13, 2022

चाँद का कुर्ता

 

हठ कर बैठा चाँद एक दिनमाता से यह बोला,

सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला

सनसन चलती हवा रात-भरजाड़े से मरता हूँ,

ठिठुर-ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।

 

आसमान का सफ़र और यह मौसम है जाड़े का,

न हो अगर तो ला दो मुझको कुर्ता ही भाड़े का।

 

बच्चे की सुन बात कहा माता ने, ‘‘अरे सलोने!

कुशल करे भगवानलगें मत तुझको जादू-टोने।

जाड़े की तो बात ठीक हैपर मैं तो डरती हूँ,

एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ।

 

कभी एक अंगुल भर चौड़ाकभी एक फुट मोटा,

बड़ा किसी दिन हो जाता हैऔर किसी दिन छोटा।


घटता-बढ़ता रोज किसी दिन ऐसा भी करता है,

नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है।

 

अब तू यही बतानाप तेरा किस रोज़ लिवाएँ,

सील दें एक झिंगोलाजो हर रोज बदन में आए’’

                                                                 लेखकरामधारी सिंह 'दिनकर'

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