Saturday, January 22, 2022

रेलवे प्लेटफोर्म पर फेरी वालों के लिए नहीं होते दिन-रात

 


फ़रवरी का महीना थादिन शुक्रवार और दिनांक 07/02/2020 था। मैं हर बार की तरह रामेश्वरम एक्सप्रेस से वर्धा से अपने घर के लिए जा रहा था। उस समय मैं महाराष्ट्र राज्य के वर्धा जिले में स्थित ‘महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय’ (MGAHV) में पी-एच. डी. की पढ़ाई कर रहा था। मेरे घर पर अचानक एक अप्रिय घटना घट गई थी जिसके कारण मुझे घर जाना पड़ा था। मैं सुबह के 6 बजे रेलगाड़ी में बैठा था। दिनभर के चहलकदमी और तमाम स्टेशनों को पार करने के बाद धीरे-धीरे रात हुई और खाना खाकर सभी लोग सोने लगेमैं भी सो गया क्योंकि हम सभी के लिए रात सोने के लिए और दिन काम करने के लिए होता है। अचानक 2 बजे रेलगाड़ी किसी स्टेशन पर पहुंची और रूकी, फिर बहुत सारे लोगों की आवाज सुनाई देने लगी मैं जग गया और उठ बैठादेखा तो कुछ लोग सब अपने-अपने सामान बेच रहे थे। कोई पेठाकोई बेल्टकोई चायआदि बेच रहा था। इतनी रात को जब सारी दुनिया सो रही हो और वे अपने सामान बेचने में इतने गम्भीर थे कि उनकी आवाज और फुर्ती को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि उनके लिए रात हुई हो उनके चेहरे पर उतनी ही चमक और आवाज में उतनी ही तेज थी, जितनी की दिन के समय में थी। ऐसा नहीं था कि मैं जीवन में पहली बार यात्रा कर रहा था और ऐसा भी नहीं था कि मैं पहली बार ऐसी घटना को देख रहा था बल्कि सच ये था कि मैं पहली बार इस पर गौर किया और इस घटना ने मुझे बहुत ही प्रभावित किया, जिससे कि मुझे इसे कहानी का रूप देना पड़ा उस रात मैं अब सो नहीं पाया, बाकी की पूरी रात मैं उनके बारे में ही सोचता रहा। मेरे जेहन में यही सवाल उठता रहा कि क्या उन लोगों को नींद नहीं आती, यदि आती है तो फिर रेलगाड़ी आते ही उनकी नींद कैसे खुल जाती है उनके शरीर और आवाज में इतनी फुर्ती और तेज कहाँ से आती हैक्या उनके पास उनका परिवार नहीं होता है यदि होता है तो फिर वे अपने परिवार के साथ कब रहते हैंक्या दिन में वे अपना सामान नहीं बेचते या हप्ते के कुछ ही दिन परिवार के साथ रहते हैंइन सभी सवालों के उत्तर मुझे नहीं मिले। मैं उनसे कुछ खरीद भी नहीं पाया क्योंकि महंगाई चरम सीमा पर थी मैं एक शोधार्थी था मेरे पास भी उस समय कुछ खास पैसे नहीं थे। अंत में 300 रुपए बचे थे, जिनमें से 150 रुपए अभी मुझे अपने घर पहुंचने में खर्च होने थे। हाल ही में कांग्रेस ने 70 साल देश लूटकर बीजेपी को सौपीं थी। नरेंद्र मोदी PM थे उस समयरेलवे के भाड़ा कुछ ही वर्षों में दर्जनों बार बढ़ चुके थेतमाम कंपनियों और संस्थाओं में कर्मचारियों की छटनी जोरों पर थी कांग्रेस ने सत्तर सालों में कुछ नहीं किए थे फिर भी संस्थाओं की बिक्री और रेलवे का निजीकरण जोरों पर था। रोजगारों की भरमार थी फिर भी लोग बेरोजगार थे सब कुछ ठीक था, बस उस साल बेरोजगारों ने किसानों से ज्यादा आत्महत्याएं की थी। नेताओं की संपत्ति तेजी से बढ़ रही थी, चाहे वह पक्ष का हो या विपक्ष का। चारों तरफ पूंजीवाद जोर पकड़ रहा थाकोई बोलने को तैयार नहीं था जो बोलता था वह देशद्रोही हो जाता था। घोटाले भी हो रहे थे मगर टाले जा रहे थे, क्योंकि जांच एजेंसियों के पास अभी समय नहीं था

 हाल ही में CAA लागू हुआ था, NRC लागू होने वाली थी। देश में जगह-जगह धरने हो रहे थे। कोई उन्हें राजनीति तो कोई हक की लड़ाई से नवाज रहा था।

हाल ही में सरकार ने देश में TV भी ला दिया था, उसमें चैनल भी थे। उन चैनलों में News Channel भी थेचूंकि अब चैनलों के दाम 250 से बढ़कर 450 हो गए थे इसलिए चैनल देश की खबर छोड़कर पाकिस्तान की खबर दिखाने में व्यस्त रहते थे। देश में बेरोजगारी अब तक की सबसे उच्चत्त स्तर पर पहुंच गई थी और विकास दर सबसे न्यूनतम स्तर पर था। सब कुछ ठीक था क्योंकि इन समस्याओं से केवल अम्बानीअडानी जैसे परिवार प्रभावित थे, बाकी आमजनता सबसे मस्त थी। उन्हीं मस्त लोगों में से वे लोग भी थे जो 3 बजे रात में अपने जीवन यापन के लिए सामान बेचते हुए मुझसे मिले थे........धन्यवाद

लेखक : मन्नू सिंह यादव (पी-एच. डी. शोधार्थी)

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