Sunday, January 9, 2022

स्वनिमिक विश्लेषण के प्रमुख सिद्धांत (Main principles of phonemic analysis)

स्वनिमिक विश्लेषण के प्रमुख सिद्धांत (Main principles of phonemic analysis) :

स्वनिमिक विश्लेषण किसी भाषा में पाए जाने वाले स्वनिमों और उनके उपस्वनों के निर्धारण की प्रक्रिया है, जिसके द्वारा उस भाषा की स्वनिमिक व्यवस्था का निरूपण किया जाता है। इसके लिए भाषा वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रमुख सिद्धांतों को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत समझा जा सकता है।

@ सूचक (Pointer)

@ भाषा की आधारभूत शब्दावली

@ IPA सीखना : (International Phonetic Alphabet $ अंतरराष्ट्रीय ध्वनिक वर्णमाला) – किसी भी भाषा के ध्वन्यात्मक और ध्वन्यात्मक प्रतिलेखन (Transcription) (प्रतिलेखन- भाषण या संकेत लिपि में अंकित तथ्यों या टिप्पणियों के आधार पर पढ़ने योग्य लिखित प्रति तैयार करना) के लिए प्रयुक्त।

विश्लेषण करके पूरे स्वनों को छांटना एवं उच्चारणात्मक विवरण प्रकाशित करना।

(1) स्वनिक सादृश्यता (Phonetic Similarity): स्वनिक सादृश्यता का अर्थ है, एक से अधिक स्वनिमों का एक जैसा प्रतीत होना। या मिलते-जुलते स्वनिमों का निर्धारण (संदिग्धयुग्म)।

जैसे- इसे हिंदी के तथा ड़ स्वनों में देखा जा सकता है -

, ड़ (उच्चारण स्थान समान मुर्धा’, जिह्वा की स्थिति समान, दोनों सघोष) अतः ये उपस्वन हैं।

, ट (इन दोनों स्वनों में कुछ भी समान नहीं मिलता है अर्थात ये दोनों भिन्न स्वनिम हैं)।

(2) परिपूरक वितरण (Complimentary Distribution): किसी भाषिक सामग्री में प्राप्त स्वनों के आपस संबंध का विश्लेषण वितरणविधि से किया जाता है। दो भिन्न भिन्न स्वनिम आपस में व्यतिरेकी वितरण में होते हैं, जैसे : पल-फल। यदि दो समरूप स्वनिम एक साथ कहीं आ गए तो वे स्वतंत्र स्वनिम हैं यदि एक साथ कभी नहीं आते हैं, तो वे एक स्वनिम के दो रूप हैं और वे परिपूरक वितरण में होते हैं। जैसे: डाल - लड़ा लड़, इन तीनों शब्दों में देखा जाए तो किसी भी परिस्थति में की जगह नहीं आता है। परिपूरक वितरण का एक पराक्र मुक्त वितरणहै- जब दो स्वनिम इस प्रकार से प्रयुक्त होते हैं कि दोनों एक दूसरे के स्थान पर आ सकते हैं, और एक के स्थान पर दूसरे स्वनिम के आने पर कोई अर्थभेद नहीं होता, तो दोनों मुक्त वितरण में होते हैं, जैसे: कानून - क़ानून।

@ अल्प प्राण और महाप्राण (जैसे- पल, फल)।

@ स्वनिमों की सूची तैयार करना।
(3) अभिरचना अन्विति (Pattern Congruity): स्वनिमों की व्यवस्था में निहित सहसंबंध के अनुरूप स्वनिमों का व्यवस्थित समूह निर्माण तथा उनके वितरण का निर्धारण अभिरचना अन्विति है। जैसे, हृस्व स्वर - अ,, उ हैं तथा सात दीर्घ स्वर - आ,,,,,, औ हैं। इन हृस्व और दीर्घ स्वरों में आपस में संबंध है। अतः यहां पर अभिरचना अन्विति है। उदाहरण के लिए का संबंध ’ ‘’ ‘से है तो उ का संबंध ’ ‘’ ‘से है। अतः दीर्घ स्वरों की व्याख्या में ह्रस्व स्वरों का उपयोग किया जाता है यह स्थिति स्वर व्यवस्था में अभिरचना अन्विति को दर्शाती है।

(4) लाघव (Economy): (अर्धमात्रा लाघवेन, पुत्र उत्सव मन्यते व्याकरणेन) लाघव का अर्थ है - कम से कम रखना। किसी भाषा की स्वनिमिक व्यवस्था पर कार्य करते हुए यह सदैव प्रयास किया जाता है कि स्वनिमों की संख्या न्यूनतम हो। जैसे- हिंदी में पांच नासिक्य व्यंजन हैं- ड़, , , , म। इनमें से ’ ‘और का ही स्वतंत्र रूप से प्रयोग होता है।

@ व्यावर्तक अभिलक्षण/परिच्छेदक (Distinctive features): पारंपरिक रूप से स्वनिमों का वर्गीकरण उनके उच्चारण स्थान (Place of articulation) और उच्चारण प्रयत्न (Manner of articulation) आदि आधारों पर किया जाता है। आधुनिक भाषाविज्ञान में वर्गीकरण के मुख्य आधार व्यावर्तक अभिलक्षणहैं।

# रोमन याकोब्सन ने 12 अभिलक्षण की बात की है।

# Sound Pattern of English में 18 अभिलक्षण दिए हैं।

संदर्भ : प्रो. उमाशंकर उपाध्याय (व्याख्यान)


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