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Friday, March 8, 2024

दिन पुरानका आई ना, बचपन फेर भेटाई ना

दिन पुरानका आई ना,

बचपन फेर भेटाई ना.


बीत गइल उ सोना रहे,

ये चाँदी से बदलाई ना.


सर संघतीया सभे छुटल,

होई कबो भरपाई ना.


बात बात में डीह बाबा के,

किरिया केहु खाई ना.


सोहर,झूमर,झारी,चइता,

नवका लोगवा गाई ना.


होई बीयाह बस नामे के,

केहू लोढ़ा से परीछाई ना.


आपन गावँ, आपन लोग,

इ टीस हिया से जाई ना.


शहर में केतनो रह लीं,

मन बाकिर अघाई ना.


-नूरैन अन्सारी

Friday, January 27, 2023

समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई (Socialism Babua, came slowly)

 समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई

समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई


हाथी से आई, घोड़ा से आई

अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...



नोटवा से आई, बोटवा से आई

बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...


गाँधी से आई, आँधी से आई

टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...


काँगरेस से आई, जनता से आई

झंडा से बदली हो आई, समाजवाद...


डालर से आई, रूबल से आई

देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद...


वादा से आई, लबादा से आई

जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद...


लाठी से आई, गोली से आई

लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद...


महंगी ले आई, ग़रीबी ले आई

केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद...


छोटका का छोटहन, बड़का का बड़हन

बखरा बराबर लगाई, समाजवाद...


परसों ले आई, बरसों ले आई

हरदम अकासे तकाई, समाजवाद...


धीरे-धीरे आई, चुपे-चुपे आई

अँखियन पर परदा लगाई


समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई

समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई


------   गोरख पांडेय


Wednesday, December 28, 2022

इहां जतिए पहिचान बा

 

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जात में जात इहां जतिए प्रधान बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


जात में जात जइसे केला के पतिया

छिलका पियाज के जस मोथा के घसिया

जात के मान इहां जतिए अभिमान बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


पानी के जात इहां मटका के जतिया

भात के जात इहां रोटियो के जतिया

जात से बड़ा-छोट जतिए भगवान बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


पीड़ित भयल इहां जतिए से मानव

जतिए से मानव कहाइल दनुज-दानव

चरित-गुनहीन देखा तबो सम्मान बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


नेह-मानवता के जाति गइल खाई

हक-अधिकार गयल जाति से लुटाई

जतिए से हमनीं के मिटल पहिचान बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


मिलल अजादी बाकी के के अजाद भयल

बंधुआ अजादी अ बंधुआ अधिकार भयल

जतिए अजाद भइल जतिए गुलाम बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


     कवि  -- राम बचन यादव


Tuesday, December 6, 2022

ना चाही हमनीं के धरम-करम


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ना चाही हमनीं के धरम-करम 

ना मंदिर-मसजिद चाही रे 

हक मानवता प्यार अ इज्जत 

अब जनता के चाही रे! 


ना अच्छा लागें राम-लखन  

ना अच्छा किसन-मुरारी रे 

पेट के भूख बड़ी होखेले 

अल्लाह-ईसा से  प्यारी रे !


झूठ-मूठ सब वेद-पुरान 

गीता-कुरान-बाइबिल रे 

तोहनीं ई सब पैदा कइके 

भइला बड़का काबिल रे! 


एक तवा कै रोटी तोहनीं 

का मोटी का छोटी रे 

जनता के भरमा के तोहनीं 

काटत बाड़ा बोटी रे! 


जनता के मूरख बनवला 

रचला काबा - कासी रे 

अपने चपला दूध -भात

हमनीं के सब बासी रे! 


अब त जनता बूझ गइल बा 

बाड़ा बजर कसाई रे 

एक दिन होई जरूर इहां से

तोहनीं के विदाई रे!


कविRambachan Yadav (रामबचन यादव)

Sunday, October 2, 2022

मानक/आदर्श भोजपुरी के रूप (Form Standard Bhojpuri)

 



डॉ॰ ग्रियर्सन ने स्टैंडर्ड भोजपुरी कहा है वह प्रधानतया बिहार राज्य के आरा जिला और उत्तर प्रदेश के देवरिया, बलियागाजीपुर जिले के पूर्वी भाग और घाघरा (सरयू) एवं गंडक के दोआब में बोली जाती है। यह एक लंबें भूभाग में फैली हुई है। इसमें अनेक स्थानीय विशेताएँ पाई जाती हैं। जहाँ शाहाबादबलिया और गाजीपुर आदि दक्षिणी जिलों में "ड़" का प्रयोग किया जाता है वहाँ उत्तरी जिलों में "ट" का प्रयोग होता है। इस प्रकार उत्तरी आदर्श भोजपुरी में जहाँ "बाटे" का प्रयोग किया जाता है वहाँ दक्षिणी आदर्श भोजपुरी में "बाड़े" प्रयुक्त होता है। गोरखपुर की भोजपुरी में "मोहन घर में बाटें" कहते हैं परंतु बलिया में "मोहन घर में बाड़ें" बोला जाता है।

डॉ. लक्ष्मण प्रसाद सिन्हा ने –  मानक भोजपुरी के दो रूप माने हैं ।

क.  उत्तरी भोजपुरी देवरियागोरखपुर तथा बस्ती जिले में भोजपुरी का जो रूप प्रचलित है उसे उत्तरी भोजपुरी की संज्ञा दी गयी है। इसके दो रूप हैं। सम्पूर्ण देवरिया एवं गोरखपुर जिले के पूर्वी भाग में प्रचलित बोली को ‘गोरखपुरी’ कहा जाता है। उत्तरी भोजपुरी में ‘बा’ के ‘’ के योग से वर्तमानकालिक सहायक क्रिया की रूप रचना होती है ।

 

ख.  दक्षिणी भोजपुरी बिहार के भोजपुररोहताससारणसीवान एवं गोपालगंज तथा उत्तर-प्रदेश के बलिया तथा गाजीपुर (पूर्वी भाग) जिले में प्रचलित बोली को दक्षिणी भोजपुरी कहा गया है। दक्षिणी भोजपुरी में ‘बा’ के ‘’ के योग से वर्तमानकालिक सहायक क्रिया की रूपरचना होती है।


जौनपुरआजमगढ़बनारसगाजीपुर के पश्चिमी भाग और मिर्जापुर में बोली जाती है। आदर्श भोजपुरी और पश्चिमी भोजपुरी में बहुत अधिक अन्तर है। पश्चिमी भोजपुरी में आदर सूचक के लिए "तुँह" का प्रयोग दीख पड़ता है परंतु आदर्श भोजपुरी में इसके लिए "रउरा" प्रयुक्त होता है। संप्रदान कारक का परसर्ग (प्रत्यय) इन दोनों बोलियों में भिन्न-भिन्न पाया जाता है। आदर्श भोजपुरी में संप्रदान कारक का प्रत्यय "लागि" है परंतु वाराणसी की पश्चिमी भोजपुरी में इसके लिए "बदे" या "वास्ते" का प्रयोग होता है। 



Friday, September 23, 2022

तोर जाति कहिआ ले जाई (Tor jati kahiya le jai)

 

तोर जाति कहिआ ले जाई

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गइले मानुसता के खाई

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

करम नीच कइले

पर बड़का कहइले

बरन जाति धरम बनाई

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

भरम फइलइले

बड़ा भोग कइले

पुरखा तोर कटलैं मलाई

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

कइले गद्दारी 

खइले हिस्सेदारी

गरदन अंगूठा कटाई 

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

हत्या करवले

उतसव मनवले

दिहले दानव राक्षस बनाई

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

पोथी रचवले

बिधान बनवले

गइले सब अधिकार खाई

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

झूठ-मूठ बोलले

बड़ा खेल खेलले

अब तोर कलई खोलाई

तोर जाति कहिआ ले जाई।

 

        --©राम बचन यादव

Tuesday, September 20, 2022

बिसुरे वतनवां

 

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जरे न पावे अरमनवां हो भाई

बिसुरे वतनवां।

 

देसवा के हाल देखि जियरा डेराला

नफरत के बयार बहे मन अकुलाला

बेरहम भयल बा ससनवां हो भाई

बिसुरे वतनवां।

 

चोर अ डकुअवन के आइल बहरिया

पूंजीपतिअन से लुटाइल नगरिया

रोवेला देस के किसनवां हो भाई

बिसुरे वतनवां।

 

ठगवन-लुटेरवन के करजा मेटाइल

हमनीं के निवाला पे लगान लगाइल

गरीब इहां भयल बेइमनवां हो भाई

बिसुरे वतनवां।

 

हिन्दू-मुसलमान, सिक्ख अ ईसाई हो

मिलि-जुलि रहा हमरे हिंद के भाई हो

साझी बिरासत बा सपनवां हो भाई

बिसुरे वतनवां।

 

जात-पात, ऊंच-नीच के भेदवा मिटावा

हउवा मानुस मन में मानवता जगावा

नेह हउवे गले के गहनवां हो भाई

बिसुरे वतनवां।

 

    --©राम बचन यादव

           12/08/2022

Saturday, September 10, 2022

भोजपुरी भाषा का साहित्य (Bhojpuri language literature)

 

भोजपुरी साहित्य का प्रबंध इतिहास प्रस्तुत करना सरल कार्य नहीं है इस संबंध में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि इसका लिखित रूप बहुत कम उपलब्ध है भोजपुरी साहित्य की मौखिक परंपरा लोकगीतों तथा लोक कथाओं के रूप में आज भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और इसका संकलन करके इसके साहित्य के विशाल भवन का निर्माण किया जा सकता है किंतु यह तो भविष्य का कार्य है। इधर भोजपुरी भाषा के क्षेत्र में शोध कार्य करने वाले सभी विद्वानों विम्स, ग्रियर्सन, हॉर्नले, सुनीति कुमार ने यह स्वीकार किया है कि भोजपुरी में साहित्य का अभाव है

लेकिन वर्तमान समय में भोजपुरी में बहुत सारी पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हुई हैं भोजपुरी भाषा क्षेत्र में काम करने वाले सभी विद्वानों ने एक स्वर में यह स्वीकार किया है कि भोजपुरी में शिष्ट तथा लिखित साहित्य का अभाव है, परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं कि इसकी कोई स्वतंत्र साहित्यिक परंपरा ही नहीं रही है

केवल लिखित साहित्य ही किसी भाषा या बोली की साहित्यिक परंपरा का मानदंड नहीं हो सकता भोजपुरी जैसे विशाल भू-भाग की भाषा है वैसे ही इसका लोक साहित्य विशाल है जिसकी मौखिक परंपरा लोकगीतों तथा लोक-कथाओं के रूप में आज भी प्रचुर मात्रा में विद्दमान है। सर्वप्रथम भोजपुरी में बगसर समाचार नाम से पत्रिका प्रकाशित हुई

वर्तमान समय में भोजपुरी की पत्रिकाएं अंजोर, भिनसहरा भोजपुर संवाद, भोजपुरी संवाद पत्रिका, भोजपुरी चबूतरा, भोजपुरी जनपद, भोजपुरी कहानियां, भोजपुरी माटी, भोजपुरी संसार, भोजपुरी वार्ता, भोजपुरी विश्व, वीर भोजपुरिया, भोजपुरिया अमन, भोजपुरी संसद, भोर भिनसार, भोरहरी, बिपना, भोजपुरी पंचायत गांव जवार, हमार बोल, विभोर, पाती, टटका राह, द संडे इंडियन, हेलो भोजपुरी, समकालीन भोजपुरी साहित्य, भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका, परीछन, निर्भीक संदेश, ललकार, कविता, पनघट, सनेस, झंकोर, बिगुल, भोजपुरी सिटी, हालचाल, भोजपुरी जीनगी, कृषक, गांव-घर, पुरवइया, भोजपुरी साहित्य, लुकार, भोजपुरी लोक, खोईछा, उड़ान, हमार इंडिया, भोजपुरी वानी, भोजपुरी दर्शन, भोजपुरी संस्कार, भोर, दुलारी बहीन, लाल माटी, माई, महाभोजपुर, समाचार बिंदु, स्वतंत्र दस्तक, पूर्वाकुर, आंखर, मैना, उरेह, भोजपुरी मंथन, शब्दिता आदि प्रमुख हैं।

Wednesday, September 7, 2022

भोजपुरी की बोलियां या विभाषाएं (Dialect or Sub-Dialect of Bhojpuri language )

 

डॉक्टर ग्रियर्सन ने भोजपुरी को चार भागों में विभक्त किया है; यह विभाग हैं- उत्तरी, दक्षिणी, पश्चिमी तथा नगपुरिया मघेसी और थारू इसकी दो उपबोलियां हैं उत्तरी भोजपुरी घाघरा नदी के उत्तर में बोली जाती है; इसकी दो विभाषाएँ हैं- 1. सरवरिया 2. गोरखपुरी यदि गंडक नदी के साथ एक रेखा नेपाल सीमा तक और वहां से गोरखपुर शहर के कुछ मील पूर्व से होते हुए बरहज तक खींची जाए तो इसके पश्चिम सरवरिया तथा पूर्व गोरखपुरी भोजपुरी का क्षेत्र होगा

सोनपुर नदी के दक्षिण नागपुरिया भोजपुरी बोली जाती है उत्तरी तथा नागपुरिया भोजपुरी के बीच में ही दक्षिणी तथा पश्चिमी भोजपुरी का क्षेत्र है यदि बरहज से गाजीपुर शहर तक और वहां से सोन नदी तक रेखा खींची जाए तो इसके पूर्व दक्षिणी भोजपुरी तथा पश्चिम पश्चिमी भोजपुरी का क्षेत्र होगा दक्षिणी भोजपुरी ही वास्तव में आदर्श भोजपुरी है, इसका क्षेत्र शाहाबाद, सारण, बलिया, पूर्वी देवरिया तथा पूर्वी गाजीपुर है पश्चिमी गाजीपुर, आजमगढ़, बनारस, मिर्जापुर तथा जौनपुर के कुछ भागों में पश्चिमी भोजपुरी बोली जाती है रांची और प्लामू जिले में भोजपुरी बोली जाती है उसे नागपुरिया कहते हैं

पलामू की उत्तरी सीमा पर दक्षिणी आदर्श भोजपुरी ही प्रचलित है लेकिन पलामू के शेष हिस्सों में तथा समस्त रांची जिले में यह विकृत रूप में बोली जाती है मघेशी चंपारण जिले की बोली है, जहां भोजपुरी मैथिली से मिलती है वहां की भाषा में दोनों भाषाओं के प्रभाव मिलते हैं आज चंपारण के अधिकांश भाग की भाषा भोजपुरी है पलामू के उत्तरी पूर्वी हिस्सों में भोजपुरी गया और हजारीबाग की मगही से मिलती है नेपाल की तराई में रहने वाली थारू नामक जाति है वह जिस आर्य भाषा को बोलते हैं उसे भोजपुरी का एक भेद बतलाया गया है इस जाति के लोग हिमालय की तराई के पूरा में जलपाईगुड़ी से लेकर पश्चिम में कुमाऊं भावर तक पाए जाते हैं

संदर्भ : 

  • भोजपुरी भाषा और साहित्य - तिवारी उदयनारायण 
  • मानक भोजपुरी भाषा - डॉ. जयकांत सिंह 
  • आधुनिक भोजपुरी भाषा के विकास के कुछ पक्ष - रामबख्स मिश्र

Saturday, September 3, 2022

भोजपुरी भाषा का क्षेत्र विस्तार (Expansion/Area of Bhojpuri language)

 

भोजपुरी भाषा के क्षेत्र विस्तार की बात की जाए तो यह देखा जा सकता है कि वर्तमान समय में भोजपुरी भाषा का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है। भोजपुरी भाषा केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में भी प्रसिद्ध हो रही है। दिन-प्रतिदिन भोजपुरी बोलने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। यदि अपने देश से इतर बात करें तो यह नेपाल, मॉरीशस, फिजी, टिनीडाड, गुयाना, जमैका, वर्मा आदि देशों में बहुतायत में बोली जाती है। इनके अलावा जिन भी देशों में भोजपुरी भाषी बसे हुए हैं, वे आपसी व्यवहारिक प्रयोग में भोजपुरी का ही प्रयोग करते हैं जिससे भोजपुरी का विकास सतत हो रहा है 

शिक्षा की दुनिया से लेकर लोक सांस्कृतिक, लोकनृत्य, भोजपुरी सिनेमा जगत, नौटंकी आदि क्षेत्रों में भोजपुरी की प्रसिद्धि बढ़ती जा रही है। हिंदी फिल्मों के साथ-साथ दक्षिण भारत के फिल्मों के हिंदी अनुवाद में भी भोजपुरी भाषा के प्रयोग का उदहारण आपको सरलता से देखने को मिल सकता है 

भोजपुरी भाषा की भौगोलिक क्षेत्र को देखा जाए तो भोजपुरी भाषा भारत के पांच राज्यों की मुख्य भाषा के रूप में बोली जाती है। जहां संवैधानिक रूप से राज्यों का कार्य भोजपुरी भाषा में नहीं होता है लेकिन व्यावहारिक रूप में भोजपुरी भाषा का प्रयोग इन मुख्य पांच राज्यों द्वारा किया जाता है। वे पांच राज्य निम्न हैं- बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्य प्रदेश। इन राज्यों के अलावा देश के प्रत्येक राज्यों में जहाँ भी भोजपुरी भाषी बसे हुए हैं। वे आपसी व्यवहार में भोजपुरी का ही प्रयोग करते रहते हैं। देखा जाए तो इन पांच राज्यों में सबसे ज्यादा बिहार और उत्तर प्रदेश दो राज्यों में बहुतायत मात्रा में भोजपुरी बोली जाती है। 

बिहार में भोजपुरी बोले जाने वाले जिलों का मानचित्र  –


भारत के बिहार राज्य के भोजपुर, बक्सर, भभुआ, रोहतास, सारण, सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चम्पारन, पश्चिमी चम्पारन, मुजफ्फरपुर के पश्चिमी क्षेत्र तथा राँची और पलामू के अधिकांश क्षेत्र के अंतर्गत भोजपुरी भाषा का प्रचलन है अर्थात् बोली जाती है। 

उत्तर प्रदेश में भोजपुरी बोले जाने वाले जिलों का मानचित्र  –



उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर, देवरिया, गोरखपुर, बस्ती, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र आदि जिले में भोजपुरी भाषा बोली जाती है। छत्तीसगढ़ के जसपुर, विलासपुर, सरगुजा आदि क्षेत्रों में भोजपुरी भाषा बोली जाती है।

भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर देखें तो भोजपुरी भाषा का क्षेत्र इतने बड़े भू-भाग में प्रचलित है। इतने बड़े भू-भाग में बोले जाने कारण क्षेत्रगत रूप स्तर पर विभिन्नताएं देखने को मिलती हैं।

डॉ. ग्रियसन ने भोजपुरी के कुछ भाषाई क्षेत्र “बिहार राज्य के आरा तथा उत्तर प्रदेश के बलिया, देवरिया तथा गाजीपुर के पूर्वी क्षेत्र तथा घाघरा एवं गंडक के दोवाब” को मानक भाषा माना है।


संदर्भ सूची :

  • भोजपुरी भाषा और साहित्य - तिवारी उदयनारायण 
  • मानक भोजपुरी भाषा - डॉ. जयकांत सिंह 
  • आधुनिक भोजपुरी भाषा के विकास के कुछ पक्ष - रामबख्स मिश्र