भोजपुरी साहित्य का
प्रबंध इतिहास प्रस्तुत करना सरल कार्य नहीं है। इस संबंध में सबसे
बड़ी कठिनाई यह है कि इसका लिखित रूप बहुत कम उपलब्ध है। भोजपुरी साहित्य की
मौखिक परंपरा लोकगीतों तथा लोक कथाओं के रूप में आज भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध
है और इसका संकलन करके इसके साहित्य के विशाल भवन का निर्माण किया जा सकता है। किंतु यह तो भविष्य का
कार्य है।
इधर भोजपुरी भाषा के
क्षेत्र में शोध कार्य करने वाले सभी विद्वानों विम्स, ग्रियर्सन, हॉर्नले, सुनीति
कुमार ने यह स्वीकार किया है कि भोजपुरी में साहित्य का अभाव है।
लेकिन वर्तमान समय में
भोजपुरी में बहुत सारी पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हुई हैं। भोजपुरी भाषा क्षेत्र
में काम करने वाले सभी विद्वानों ने एक स्वर में यह स्वीकार किया है कि भोजपुरी
में शिष्ट तथा लिखित साहित्य का अभाव है, परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं कि इसकी कोई
स्वतंत्र साहित्यिक परंपरा ही नहीं रही है।
केवल लिखित साहित्य ही
किसी भाषा या बोली की साहित्यिक परंपरा का मानदंड नहीं हो सकता। भोजपुरी जैसे विशाल भू-भाग
की भाषा है वैसे ही इसका लोक साहित्य विशाल है। जिसकी मौखिक परंपरा
लोकगीतों तथा लोक-कथाओं के रूप में आज भी प्रचुर मात्रा में विद्दमान है। सर्वप्रथम भोजपुरी में
बगसर समाचार नाम से पत्रिका प्रकाशित हुई।
वर्तमान समय में
भोजपुरी की पत्रिकाएं अंजोर, भिनसहरा भोजपुर संवाद, भोजपुरी संवाद पत्रिका,
भोजपुरी चबूतरा, भोजपुरी जनपद, भोजपुरी कहानियां, भोजपुरी माटी, भोजपुरी संसार,
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दस्तक, पूर्वाकुर, आंखर, मैना, उरेह, भोजपुरी मंथन, शब्दिता आदि प्रमुख हैं।
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