Tuesday, December 6, 2022

ना चाही हमनीं के धरम-करम


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ना चाही हमनीं के धरम-करम 

ना मंदिर-मसजिद चाही रे 

हक मानवता प्यार अ इज्जत 

अब जनता के चाही रे! 


ना अच्छा लागें राम-लखन  

ना अच्छा किसन-मुरारी रे 

पेट के भूख बड़ी होखेले 

अल्लाह-ईसा से  प्यारी रे !


झूठ-मूठ सब वेद-पुरान 

गीता-कुरान-बाइबिल रे 

तोहनीं ई सब पैदा कइके 

भइला बड़का काबिल रे! 


एक तवा कै रोटी तोहनीं 

का मोटी का छोटी रे 

जनता के भरमा के तोहनीं 

काटत बाड़ा बोटी रे! 


जनता के मूरख बनवला 

रचला काबा - कासी रे 

अपने चपला दूध -भात

हमनीं के सब बासी रे! 


अब त जनता बूझ गइल बा 

बाड़ा बजर कसाई रे 

एक दिन होई जरूर इहां से

तोहनीं के विदाई रे!


कविRambachan Yadav (रामबचन यादव)

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