अब मोमबत्तियां जलाने से
नहीं बचेंगी बेटियाँ
अब अफ़सोस करने से
नहीं बचेंगी बेटियाँ
अब नारी देह पर
प्रलाप करने से
नहीं बचेंगी बेटियाँ
अब खुद को कोसने से
नहीं बचेंगी बेटियाँ
अब नारा लगाने से
नहीं बचेंगी बेटियाँ
अब विक्षिप्त मनोवृति के
ग़ोश्तपिशाच नराधम
कामुक पिपासुओं के
लिंगध्वज को चौराहों पर
सरेआम काटकर लटकाने से
बचेंगी बेटियाँ !
कवि- मंजुल भारद्वाज
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