बहुत पहले कहीं पढ़ा था। एक बार एक जंतु विज्ञान के प्रोफेसर अपने क्लास में आए । सभी छात्रों को मेज के पास बुला लिए । मेज पर एक अंडा रखा। अंडा किसी कीट का था। matured अंडा। प्रोफेसर ने छात्रों से कहा इसे ध्यान से देखना, ये अंडा टूटने वाला है, कह कर चले गए ।
कुछ ही समय के बाद अंडा में हरकत होनी शुरू हो गयी। अंडा टूटना शुरू हुआ। कीट बाहर आने के लिए संघर्ष करने लगा। संघर्ष इतना पीड़ा दायक था की छात्रों से देखा नहीं गया उन्होंने कीट की मदद कर दी, उसे अंडे से बाहर आने में। कीट बाहर तो आया लेकिन चल बसा अर्थात मर गया।
कुछ देर बाद जब प्रोफेसर आए तो उन्होंने कीट को मरा पाया, समझते देर नहीं लगी की क्या हुआ होगा। उन्होंने छात्रों से कहा की ये कीट सौ वर्ष जीता है, और वो जो अंडा से बाहर आने की पीड़ा है वही इसे शक्ति देता है सौ वर्ष जीने के लिए। तुम लोगों ने इसे संघर्ष नहीं करने दिया और परिणाम ये हुआ कि वह सौ मिनट भी नहीं जी पाया।
संघर्ष जरुरी है !
जिंदगी में संघर्ष न हो तो जिंदगी का मजा ही नहीं । पता ही नहीं चलेगा कि जीवित हैं भी या नहीं । घर्षण चलती गाड़ी ही महसूस करती है, रुकी हुई नहीं । संघर्ष जीवित इंसान के हिस्से आता है, मुर्दों के नहीं ।
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