Tuesday, January 18, 2022

अरुण यह मधुमय देश हमारा

 अरुण यह मधुमय देश हमारा

जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।

सरल तामरस गर्भ विभा परनाच रही तरुशिखा मनोहर

छिटका जीवन हरियाली परमंगल कुमकुम सारा।।

लघु सुरधनु से पंख पसारेशीतल मलय समीर सहारे

उड़ते खग जिस ओर मुँह किएसमझ नीड़ निज प्यारा।।

बरसाती आँखों के बादलबनते जहाँ भरे करुणा जल।

लहरें टकरातीं अनन्त कीपाकर जहाँ किनारा।।

हेम कुम्भ ले उषा सवेरेभरती ढुलकाती सुख मेरे।

मंदिर ऊँघते रहते जबजगकर रजनी भर तारा

अरुण यह मधुमय देश हमारा    

  

लेखकजयशंकर प्रसाद           


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