Saturday, July 23, 2022

ड्राइंग रूम में कबीर

 

यह कहानी नहीं अपितु 'दैनिक प्रजातंत्र' में 25 जून 2022 को छपा दो दोस्तों के बीच का वार्तालाप है मगर इस वार्तालाप में बहुत ही गहन चिंतन है अतः शांत चित से इसे पढ़े और कबीर के महत्व को समझने का प्रयास करें



वार्तालाप शुरू ****************
आइये बैठिये, ... और .. हाँ, इनसे मिलिए, ग्रेट पोएट कबीर, ‘आवर फॅमिली मेंबर नाव(Now)’
सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए उन्होंने किताब के बारे में बताया

          गौर से देखा, वाकई कबीर ही हैं
सोफे पर खुले हुए, कुछ बिखरे हुए से एसी(AC) में पड़े हैं वे समझ गए, सफाई देते हुए बोले, - “बच्चे बड़े शैतान हैं, खेल रहे थे इनके लिए कबीर की पिक्चर बुक भी है लेकिन फाड़-फ़ूड दी होगी

               “हुसैन नहीं दिख रहे !?” मैंने पूछा
पिछली बार आया था तो उस दीवार पर टंगे थे तब भी उन्होंने कहा था किदिस इस हुसैन ... द ग्रेट आर्टिस्टअवर फॅमिली मेंबर नाव(now) ‘यू नो(you know)’ हमारे पास काफी सारे विडिओ और फोटोग्राफ्स भी हैं इनके'

             इस वक्त अपना कहा शायद वे भूल गए थे, बोले – “हुसैन !! वो क्या है अभी जरा माहौल ठीक नहीं है . ... यू नो(you know) ... सोसाइटी है ... सब देखना समझना पड़ता है
  स्टोर रूम में हैं  ... अभी तो कबीर हैं ना, ... नो ऑब्जेक्शन के साथ

             “लेकिन कबीर में तो बहुत डांट फटकार और कान खिंचाई है ?! ... आप बड़े बिजनेसमेन ! आपको कैसे सूट कर गए ?”

                “देखिये दो बातें हैं, एक तो आजकल पढ़ता ही कौन है ? ऐसे में किसको पता कि कबीर ने फटकारा भी है
ब्राण्ड वेल्यू होती है हर चीज की यू नो ब्राण्ड का जमाना है, सोसायटी अब चड्डी बनियान भी ब्रांडेड पसंद करती है दूसरी बात खुद कबीर ने भी कहा है कि निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छबाय तो हमने ड्राइंगरूम शोकेस में सजायलिया है” .

               “फिर भी आपको लगता तो होगा कि आपका कामकाज और कबीर में टकराहट हो रही है
वे संत हैं, कहते हैं कबीर इस संसार का झूठा माया मोह’ कैसे बचाते हैं इस टकराहट से अपने आप को ?”

              “टकराहट कैसी ? हमने तो अपने दफ्तर में लिखवा रखा है, काल करे सो आज कर, आज करे सो अब; पल में परलय होयेगा, बहुरि करेगा कब
इससे मेसेज जाता है कि कबीर ने फेक्ट्री वर्कर्स को फटाफट काम करने के लिए कहा है इसके आलावा एक और बढ़िया बिजनेस टिप है उनकी ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय; औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होए इस फार्मूले से क्लाइंट को डील करो तो बिजनेस बढ़ता है आदमी कोई बुरा नहीं होता  है

              “फिर भी धंधे में देना-लेना, ऊँच-नीच, अच्छा-बुरा सब करना पड़ता है
कबीर इनके पक्ष में नहीं हैं इसलिए कहीं न कहीं चुभते होंगे

             “जी नहीं, ... उन्होंने कहा है दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ; जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय’
इसका मतलब है कि फंसने पर तो सब मुट्ठी गरम करते हैं, बिना फंसे जो मुट्ठी नरम करता रहे तो मुट्ठी गरम करने की नौबत ही नहीं आये दरअसल आप जैसे कच्चे पक्के लोगों ने कबीर को किताबों से बाहर निकलने ही नहीं दिया उन्हें तो बाज़ार में होना चाहिए था सुना होगा, कबीर खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर; न कहू से दोस्ती न कहू से बैर व्यापारी का न कोई दोस्त होता है न बैरी बस  वो होता है और ग्राहक होता  जब गुन को गाहक मिले, तब गुन लाख बिकाई ; जब गुन को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई’ यानी ग्राहक पटाना सबसे बड़ी बात है, वे बोले

               “बाज़ार में कुछ वसूली वाले भी तो होते हैं, उनका क्या ? भाइयों को हप्ता देना पड़ता होगा, पुलिस को महीना, किसी को सालाना ! पार्टियों को भी चंदा-वंदा देना पड़ता होगा


                 “हाँ देते है, ... चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय; दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय’
यहाँ क़ानूनी और गैर क़ानूनी दोनों तरह के पाट हैं सब देते हैं, सबको देते हैं, कोई साबुत नहीं बचता है

               “लगता है कबीर को आपने अपना वकील बना लिया है !

               “ऐसा नहीं हैकबीर में सब हमारे काम का तो है नहीं
उन्होंने ही कहा है सार सार को गहि लेय, थोथा देय उड़ाय तो इसमें बुरे क्या है ?”

                “ईश्वर से डर तो लगता ही होगा उठते हुए हमने सवाल किया


                 “ईश्वर से किसी का आमना-सामना कहाँ होता है
सब भ्रम है वे कह गए हैं जब मैं था हरि नहीं, अब हरि है मैं नहीं आप अपना बनाओगे तभी कबीर अपने लगेंगे सैन बैन समझे नहीं, तासों कछु न कैन’, यानी आदमी को इशारा समझना चाहिए, जो नहीं समझे उससे कुछ नहीं कहना

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