डॉ.
बाबा साहब अंबेडकर की जीवनी (Biography: Profile of Dr.
Bhimrao Ambedkar in Hindi)
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का मूल नाम भीमराव था। डॉ. आंबेडकर नगर, जिसका भूतपूर्व नाम महूँ था, भारत के मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर ज़िले में स्थित एक नगर है। यहाँ डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म हुआ था और यह एक ऐतिहासिक छावनी भी है। उनके पिताश्री रामजी मालोजी सकपाल महूँ में ही मेजर सूबेदार के पद पर एक सैनिक अधिकारी थे। अपनी सेवा के अंतिम वर्ष उन्होंने और उनकी धर्मपत्नी भीमाबाई ने काली पलटन स्थित जन्मस्थली स्मारक की जगह पर विद्यमान एक बैरेक में गुजारे। सन् 1891 में 14 अप्रैल के दिन जब रामजी सूबेदार अपनी ड्यूटी पर थे, 12 बजे यहीं भीमराव का जन्म हुआ।
शिक्षा
भीमराव का प्राथमिक शिक्षण ‘दापोली’ और ‘सतारा’ में हुआ। बंबई
के ‘एलफिन्स्टोन’ स्कूल से वह 1907 में ‘मैट्रिक’ की परीक्षा पास की। इस अवसर
पर एक अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया और उसमें भेंट स्वरूप उनके शिक्षक ‘श्री
कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर’ ने स्वलिखित पुस्तक 'बुद्ध चरित्र'
उन्हें प्रदान की। बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड की फेलोशिप पाकर
भीमराव ने 1912 में मुंबई विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा
पास की। संस्कृत पढ़ने पर मनाही होने से वह फारसी लेकर उत्तीर्ण हुये।
बी.ए. के बाद एम.ए. के अध्ययन हेतु बड़ौदा
नरेश सयाजी गायकवाड़ की पुनः फेलोशिप पाकर वह अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय
में दाखिल हुये। सन 1915 में
उन्होंने स्नातकोत्तर उपाधि की परीक्षा पास की। इस हेतु उन्होंने अपना शोध 'प्राचीन भारत का वाणिज्य' लिखा था। उसके बाद 1916
में ‘कोलंबिया विश्वविद्यालय’ अमेरिका से ही उन्होंने पी-एच.डी. की
उपाधि प्राप्त की, उनके पी-एच.डी. शोध का विषय था 'ब्रिटिश भारत में प्रातीय वित्त का विकेन्द्रीकरण'।
फेलोशिप समाप्त होने पर उन्हें भारत लौटना
था अतः वे ब्रिटेन होते हुये लौट रहे थे। उन्होंने वहां ‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स
एण्ड पोलिटिकल सांइस’ में एम.एस सी. और डी. एस सी. और विधि संस्थान में बार-एट-लॉ
की उपाधि हेतु स्वयं को पंजीकृत किया और भारत लौटे।
बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर को ‘कोलंबिया विश्वविद्यालय’ ने एल.एलडी और ‘उस्मानिया विश्वविद्यालय’ ने डी. लिट्. की मानद उपाधियों से सम्मानित किया था। इस प्रकार डॉ. अम्बेडकर वैश्विक युवाओं के लिये प्रेरणा बन गये क्योंकि उनके नाम के साथ बी.ए., एम.ए, एम.एससी, पीएच.डी, बैरिस्टर, डी.एससी, डी.लिट्. आदि कुल 26 उपाधियां जुड़ी हैं।
योगदान
भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने जीवन के 65 वर्षों में देश को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक,
ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक,
औद्योगिक, संवैधानिक इत्यादि विभिन्न
क्षेत्रों में अनगिनत कार्य करके राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया,
उनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-
सामाजिक एवं धार्मिक योगदान
(1) मानवाधिकार जैसे दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर
प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊँच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए मनुस्मृति दहन (1927),
महाड सत्याग्रह (वर्ष 1928), नासिक सत्याग्रह
(वर्ष 1930), येवला की गर्जना (वर्ष 1935) जैसे आंदोलन चलाये।
(2) बेजुबान, शोषित और अशिक्षित लोगों को जगाने के लिए वर्ष 1927
से 1956 के दौरान मूक-नायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और
प्रबुद्ध भारत नामक पांच साप्ताहिक एवं पाक्षिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।
(3) कमजोर वर्गों के छात्रों को छात्रावासों, रात्रि स्कूलों, ग्रंथालयों
तथा शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से अपने दलित वर्ग शिक्षा समाज (स्था. 1924)
के जरिये अध्ययन करने और साथ ही आय अर्जित करने के लिए उनको सक्षम
बनाया।
(4) सन् 1945 में उन्होंने अपनी पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी के जरिए मुम्बई में सिद्वार्थ महाविद्यालय तथा औरंगाबाद में मिलिन्द महाविद्यालय की स्थापना की। बौद्धिक, वैज्ञानिक, प्रतिष्ठा, भारतीय संस्कृति वाले बौद्ध धर्म की 14 अक्टूबर 1956 को 5 लाख लोगों के साथ नागपुर में दीक्षा ली तथा भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्स्थापित कर अपने अंतिम ग्रंथ ''द बुद्धा एण्ड हिज धम्मा'' के द्वारा निरंतर वृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया।
आर्थिक, वित्तीय और प्रशासनिक योगदान
(1) भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की स्थापना डॉ. अंबेडकर द्वारा लिखित शोध-ग्रंथ 'रूपये की समस्या-उसका उदभव तथा उपाय' और 'भारतीय
चलन व बैकिंग का इतिहास' ग्रन्थों और हिल्टन यंग कमीशन के
समक्ष उनकी साक्ष्य के आधार पर 1935 से हुई। उनके दूसरे शोध-ग्रंथ 'ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का
विकास' के आधार पर देश में वित्त आयोग की स्थापना हुई।
(2) कृषि में सहकारी खेती के द्वारा पैदावार बढ़ाना, सतत विद्युत और जल
आपूर्ति करने का उपाय बताया।
औद्योगिक विकास, जलसंचय, सिंचाई,
श्रमिक और कृषक की उत्पादकता और आय बढ़ाना, सामूहिक
तथा सहकारिता से प्रगत खेती करना, जमीन के राज्य स्वामित्व
तथा राष्ट्रीयकरण से सर्वप्रभुत्व संपन्न समाजवादी गणराज्य की स्थापना करना।
(3) सन 1945
में उन्होंने महानदी का प्रबंधन की बहुउददे्शीय उपयुक्तता को परख कर
देश के लिए जलनीति तथा औद्योगिकरण की बहुउद्देशीय आर्थिक नीतियां जैसे नदी एवं
नालों को जोड़ना, हीराकुण्ड बांध, दामोदर
घाटी बांध, सोन नदी घाटी परियोजना, राष्ट्रीय
जलमार्ग, केन्द्रीय जल एवं विद्युत प्राधिकरण बनाने के मार्ग
प्रशस्त किये।
(4) सन 1944
में प्रस्तावित केंद्रीय जल मार्ग तथा सिंचाई आयोग के प्रस्ताव को 4
अप्रैल 1945 को वायसराय द्वारा अनुमोदित किया
गया तथा बड़े बांधोंवाली तकनीकों को भारत में लागू करने हेतु प्रस्तावित किया।
उन्होंने भारत के विकास हेतु मजबूत तकनीकी
संगठन का नेटवर्क ढांचा प्रस्तुत किया।
उन्होंने जल प्रबंधन तथा विकास और नैसर्गिक
संसाधनों को देश की सेवा में सार्थक रुप से प्रयुक्त करने का मार्ग प्रशस्त किया।
(5) वर्ष 1951 में महिला सशक्तिकरण का हिन्दू संहिता विधेयक पारित
करवाने में प्रयास किया और पारित न होने पर स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री
के पद से इस्तीफा दिया। वर्ष 1955 में अपना ग्रंथ 'भाषाई
राज्यों पर विचार' प्रकाशित कर आन्ध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश,
बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को
छोटे-छोटे और प्रबंधन योग्य राज्यों में पुनर्गठित करने का प्रस्ताव दिया था,
जो उसके 45 वर्षों बाद कुछ प्रदशों में साकार
हुआ।
निर्वाचन आयोग, योजना आयोग, वित्त
आयोग, महिला पुरुष के लिये समान नागरिक हिन्दू संहिता,
राज्य पुनर्गठन, बड़े आकार के राज्यों को छोटे
आकार में संगठित करना, राज्य के नीति निर्देशक तत्व, मौलिक अधिकार, मानवाधिकार, काम्पट्रोलर
व ऑडीटर जनरल, निर्वाचन आयुक्त तथा राजनीतिक ढांचे को मजबूत
बनाने वाली सशक्त, सामाजिक, आर्थिक,
शैक्षणिक एवं विदेश नीति बनाई।
(6) प्रजातंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए
राज्य के तीनों अंगों न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं विधायिका को स्वतंत्र और पृथक बनाया तथा समान नागरिक
अधिकार के अनुरूप एक व्यक्ति, एक मत और एक मूल्य के तत्व को
प्रस्थापित किया। विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में अनुसूचित जाति एवं जनजाति
के लोगों की सहभागिता संविधान द्वारा सुनिश्चित की तथा भविष्य में किसी भी प्रकार
की विधायिकता जैसे ग्राम पंचायत, जिला पंचायत, पंचायत राज इत्यादि में सहभागिता का मार्ग प्रशस्त किया।
(7) सहकारी और सामूहिक खेती के साथ-साथ उपलब्ध
जमीन का राष्ट्रीयकरण कर भूमि पर राज्य का स्वामित्व स्थापित करने तथा सार्वजनिक
प्राथमिक उद्यमों यथा बैकिंग, बीमा आदि उपक्रमों को राज्य नियंत्रण में रखने की पुरजोर सिफारिश की तथा
कृषि की छोटी जोतों पर निर्भर बेरोजगार श्रमिकों को रोजगार के अधिक अवसर प्रदान
करने के लिए उन्होंने औद्योगीकरण की सिफारिश की।
शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा एवं श्रम कल्याण में योगदान
(1) वायसराय
की कौंसिल में श्रम मंत्री की हैसियत से श्रम कल्याण के लिए श्रमिकों की 12 घण्टे से
घटाकर 8 घण्टे कार्य-समय, समान कार्य
समान वेतन, प्रसूति अवकाश, संवैतनिक
अवकाश, कर्मचारी राज्य बीमा योजना, स्वास्थ्य
सुरक्षा, कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम 1952 बनाना, मजदूरों एवं कमजोर वर्ग के हितों के लिए तथा
सीधे सत्ता में भागीदारी के लिए स्वतंत्र मजदूर पार्टी का गठन कर 1937 के मुम्बई प्रेसिडेंसी चुनाव में 17 में से उन्होंने
15 सीटें जीतीं।
(2) कर्मचारी राज्य बीमा के तहत स्वास्थ्य, अवकाश, अपंग-सहायता,
कार्य करते समय आकस्मिक घटना से हुये नुकसान की भरपाई करने और अन्य
अनेक सुरक्षात्मक सुविधाओं को श्रम कल्याण में शामिल किया।
कर्मचारियों को दैनिक भत्ता, अनियमित कर्मचारियों को अवकाश की सुविधा,
कर्मचारियों के वेतन श्रेणी की समीक्षा, भविष्य
निधि, कोयला खदान तथा माईका खनन में कार्यरत कर्मियों को
सुरक्षा संशोधन विधेयक सन 1944 में पारित करने में उन्होंने
महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
(3) सन 1946
में उन्होंने निवास, जल आपूर्ति, शिक्षा, मनोरंजन, सहकारी
प्रबंधन आदि से श्रम कल्याण नीति की नींव डाली तथा भारतीय श्रम सम्मेलन की शुरूआत
की जो अभी निरंतर जारी है, जिसमें प्रतिवर्ष मजदूरों के
ज्वलंत मुद्दों पर प्रधानमंत्री की उपस्थिति में चर्चा होती है और उसके निराकरण के
प्रयास किये जाते है।
(4) श्रम कल्याण निधि के क्रियान्वयन हेतु
सलाहकार समिति बनाकर उसे जनवरी 1944 में अंजाम दिया। भारतीय सांख्यिकी अधिनियम पारित कराया ताकि श्रम की दशा,
दैनिक मजदूरी, आय के अन्य स्रोत, मुद्रस्फीति, ऋण, आवास,
रोजगार, जमापूंजी तथा अन्य निधि व श्रम विवाद
से संबंधित नियम सम्भव कर दिया।
(5) नवंबर 8, 1943 को उन्होंने 1926 से लंबित
भारतीय श्रमिक अधिनियम को सक्रिय बनाकर उसके तहत भारतीय श्रमिक संघ संशोधन विधेयक
प्रस्तावित किया और श्रमिक संघ को सख्ती से लागू कर दिया। स्वास्थ्य बीमा योजना,
भविष्य निधि अधिनियम, कारखाना संशोधन अधिनियम,
श्रमिक विवाद अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम
और विधिक हड़ताल के अधिनियमों को श्रमिकों के कल्याणार्थ निर्माण कराया।
संविधान तथा राष्ट्र निर्माण में योगदान
उन्होंने समता, समानता, बन्धुता एवं मानवता आधारित भारतीय संविधान को 02 वर्ष 11 महीने और 17 दिन के कठिन परिश्रम से तैयार कर 26 नवंबर 1949 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंप कर देश के समस्त नागरिकों को राष्ट्रीय एकता, अखंडता और व्यक्ति की गरिमा की जीवन पध्दति से भारतीय संस्कृति को अभिभूत किया।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर की किताबें
डॉ. भीमराव अंबेडकर के निजी पुस्तकालय “राजगृह” में 50,000 से भी पुस्तकें थी और यह दुनिया की सबसे बड़ी निजी लाइब्रेरी थी। डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, फ्रेंच, पाली, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती जैसी 9 भाषाओँ के ज्ञाता थे। वे कुल 64 विषयों के अध्यापक थे। इसके अलावा उन्होंने लगभग 21 साल तक विश्व के सभी धर्मों की तुलनात्मक रूप से पढ़ाई की थी।
पुस्तक का नाम |
प्रकाशन का वर्ष |
भारत का राष्ट्रीय अंश |
1916 |
भारत में जातियां और उनका मशीनीकरण |
1916 |
भारत में लघु कृषि और उनके उपचार |
1917 |
मूल नायक (साप्ताहिक) |
1920 |
ब्रिटिश भारत में साम्राज्यवादी वित्त का
विकेंद्रीकरण |
1921 |
रुपये की समस्या: उद्भव और समाधान |
1923 |
ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का
अभ्युदय |
1925 |
बहिष्कृत भारत (साप्ताहिक) |
1927 |
जनता (साप्ताहिक) |
1930 |
जाति विच्छेद |
1937 |
संघ बनाम स्वतंत्रता |
1939 |
पाकिस्तान पर विचार |
1940 |
श्री गाँधी एवं अछूतों की विमुक्ति |
1942 |
रानाडे, गाँधी और जिन्ना |
1943 |
कांग्रेस और गाँधी ने अछूतों के लिए क्या
किया |
1945 |
शूद्र कौन और कैसे |
1948 |
महाराष्ट्र भाषाई प्रान्त |
1948 |
भगवान बुद्ध और उनका धर्म |
1957 |
डॉ. भीमराव अंबेडकर की मृत्यु
भीमराव अंबेडकर की मृत्यु 6 दिसंबर 1956 को हुई थी। बताया जाता है कि भीमराव अंबेडकर की मृत्यु मधुमेह रोग के कारण हुई थी।
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