Monday, July 11, 2022

उठो लाल अब आँखें खोलो

 

उठो लाल, अब आँखें खोलो

पानी लायी हूँ, मुँह धो लो


बीती रात कमल-दल फूले  

उनके ऊपर भौंरे झूले  

चिड़ियाँ चहक उठी पेड़ों पर   

बहने लगी हवा अति सुंदर  


नभ में न्यारी लाली छायी

धरती ने प्यारी छबि पायी   

भोर हुआ सूरज उठ आया  

जल में पड़ी सुनहरी छाया  


ऐसा सुंदर समय न खोओ  

मेरे प्यारे अब मत सोओ

                           कवि - अयोध्यासिंह ‘हरिऔध’

2 comments: