Sunday, July 17, 2022

शहर बसाकर गाँव ढूंढते हैं

 


शहर घूमता है काले चश्मे लगा के,

गाँव अब भी नजर मिला लेता है


शहर बीमार होता है दवाओं से,

गाँव बीमारी में भी खुद को जिला लेता है


शहर के घर से लोग खाली हाथ लौट जाते हैं,

गाँव में लोग बर्तन भी खाली नहीं लौटाते हैं


नकली चेहरे गाँव में भी हैं मगर उनकी आंखें सच्ची हैं,

शहर की इतनी शोर से आटा-चक्की की फुक-फुक अच्छी है


गाँव में देखो मुस्कुराती हैं फूलगोभीयां,

शहर ने पहले बाल रंगें फिर हरी सब्जियां


पर देखा है मैंने थोड़ा-सा शहर घुस रहा है गाँव में,

कोई कर रहा है चुपके से छेद नाव में,

एसी(AC) की कमी गिना रहा है पीपल की छांव में,

पहिया पलायन का बांध लिया है पाँव में


मेरी दुआ है खूब तरक्की करें यह जमाना,

मगर गाँव की लाश पर शहर मत उगाना

 


कार बनाने वाले चल के, पाँव से आये थे ।

ये शहर बसाने वाले भी चल के, गाँव से आये थे ।।

 

शहर बसाकर गाँव ढूंढते हैं,

अजीब पागल हैं,

हाथ में कुल्हाड़ी लेकर छाँव ढूंढते हैं

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