व्यतिरेकी विश्लेषण की उपयोगिता (Utility of Contrastive Anaylesis) :
व्यतिरेकी विश्लेषण
का उपयोग मुख्यतः निम्न क्षेत्रों में होता है जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है –
Ø अन्य
भाषा शिक्षण के लिए पाठ्य सामग्री निर्माण में उपयोगी ।
Ø शिक्षार्थी
की शिक्षण समस्याओं के निदान में उपयोगी ।
Ø श्रोत
भाषा और लक्ष्य भाषा में निहित समानताओं और असमानताओं की तुलना करके पाठ्य
बिन्दुओं का चयन करने में उपयोगी ।
Ø एक
भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद करने में उपयोगी ।
Ø शिक्षण
विधियों का आविष्कार करने में उपयोगी ।
Ø त्रुटियों
का निदान करने में उपयोगी ।
व्यतिरेकी विश्लेषण का उद्देश्य (Utility of Contrastive Anaylesis) :
व्यतिरेकी
विश्लेषण के मुख्य उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए डॉ. सूरजभान सिंह ने अपनी पुस्तक
‘अंग्रेजी हिंदी अनुवाद व्याकरण’ में निम्नलिखित तथ्यों को स्पष्ट किया है –
Ø दो
भाषाओं के बीच असमान और अर्धसमान तत्वों का पता लगाना, जिससे भाषा सीखने या अनुवाद
करने में उन स्थलों पर खास ध्यान दिया जा सकता है जहाँ असमान संरचनाओं के कारण
त्रुटि या मातृभाषा व्याघात की संभावना अधिक होती है।
Ø व्यतिरेकी
विश्लेषण के परिणामों से अनुवादक श्रोत और लक्ष्य भाषा के उन संवेदनशील स्थलों का
पहले से अनुमान कर सकता है जहाँ असमान संरचनाओं तथा नियमों के कारण अनुवादक
मातृभाषा व्याघात या अन्य कारणों से गलती कर सकता है। इस प्रकार वह लक्ष्य भाषा की
संरचना और शैली की स्वाभाविक प्रकृति को पहचान कर कृत्रिम और असहज अनुवाद से बच
सकता है ।
Ø एम.
जी. चतुर्वेदी के अनुसार मातृभाषा अथवा लक्ष्य भाषा व्याघात के विश्लेषण के लिए, दो
भाषाओं की तथा उनकी संरचनाओं के सभी स्तरों पर तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए,
दोनों भाषाओं के समान, अर्धसमान तथा असमान प्रयोगों को पहचानने के लिए पाठ्यक्रम
निर्माण के लिए, त्रुटि विश्लेषण के लिए और लक्ष्य भाषा शिक्षण के लिए व्यतिरेकी
विश्लेषण का प्रयोग होता है।
व्यतिरेकी विश्लेषण के फलस्वरूप उसे एक से अधिक समानार्थी अभिव्यक्तियाँ उपलब्ध होती है, जिससे वह संदर्भ के अनुसार उपर्युक्त विकल्प का चयन कर सकता है और अनुवाद में मूल पाठ की सूक्ष्म अर्थ छटाओं को सुरक्षित रख सकता है।
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