व्यतिरेकी विश्लेषण (Contrastive Anaylesis) :
व्यतिरेकी विश्लेषण अंग्रेजी के ‘Contrastive Anaylesis’ शब्द का हिंदी पर्याय है। सर्वप्रथम वूर्फ़ नामक विद्वान ने भाषाओँ की भिन्नताओं पर प्रकाश डालने वाले तुलनात्मक अध्ययन के लिए ‘व्यतिरेकी विश्लेषण’ शब्द का प्रयोग किया है । प्रत्येक भाषा किसी न किसी अन्य भाषा से जहाँ कुछ बिन्दुओं पर समानता रखती है वहीं उनमें कुछ संरचनात्मक असमानताएं भी अवश्य प्राप्त होती है। दो भाषाओं की संरचनात्मक व्यवस्था के मध्य प्राप्त असमान बिन्दुओं को उद्घाटित करने के लिए व्यतिरेकी विश्लेषण का प्रयोग किया जाता है। व्यतिरेकी विश्लेषण का अध्ययन व्यतिरेकी भाषाविज्ञान के अंतर्गत किया जाता है। भाषाविज्ञान की दो शाखाएं होती हैं- 1. सैद्धांतिक भाषाविज्ञान 2. अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान । व्यतिरेकी भाषाविज्ञान, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा है। व्यतिरेकी भाषाविज्ञान का उदय द्वितीय विश्व युद्ध के समय सैनिकों को उन देशों की भाषाएँ सिखाने के उद्देश्य से हुआ था। व्यतिरेकी भाषाविज्ञान भाषा शिक्षण की व्यावहारिक पद्धति है। इसमें किसी भाषा युग्म के समानताओं और व्यतिरेकी के बारे में विश्लेषण करके भाषा को सुगम बनाने पर जोर दिया जाता है । अन्य भाषा शिक्षण की बढ़ती मांग ने ही व्यतिरेकी भाषाविज्ञान को जन्म दिया ।
व्यतिरेकी विश्लेषण
की कुछ निम्न परिभाषाएं –
"ध्वनि,
लिपि, व्याकरण, शब्द, अर्थ, वाक्य और संस्कृत जैसे विभिन्न स्तरों पर दो भाषाओं की
संरचनाओं की परस्पर तुलना कर उसमें समान और असमान तत्वों का विश्लेषण करना व्यतिरेकी
विश्लेषण कहलाता है।" - प्रो. सूरजभान
सिंह
"दो
या दो से अधिक भाषाओं के सभी स्तरों पर तुलनात्मक अध्ययन द्वारा समानताओं और
असामनताओं के निकालने को व्यतिरेकी विश्लेषण कहते हैं।" - डॉ. भोलानाथ तिवारी
"भाषा
विश्लेषण की यह तकनीकी, जिसके द्वारा भाषाओं में व्यतिरेकी इंगित किया जाता है,
व्यक्तिरेकी विश्लेषण कहलाता है।" - डॉ.
ललित मोहन बहुगुणा
"भाषा विश्लेषण में जहाँ दो भाषाओं में व्यतिरेकी/असमानताएं सूचित की जाती हैं, यह व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाता है।" - शंकर बुंदेले
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