भोजपुरी भाषा की
उत्पत्ति मागधी अपभ्रंश से हुई है। यह बिहारी हिंदी के अंतर्गत आती है। अर्द्ध
मागधी अपभ्रंश से पूर्वी हिंदी, शौरसेनी अपभ्रंश से
पश्चिमी हिंदी की उत्पत्ति हुई है। बता दें कि भोजपुरी भाषा का इतिहास 7वीं सदी से शुरू होता है। यह भाषा 1000
से अधिक साल पुरानी है। गुरु गोरख नाथ ने 1100 वर्ष में गोरख बानी लिखा था। संत कबीरदास 1398 का जन्मदिवस भोजपुरी दिवस
के रूप में भारत में स्वीकार किया गया है और विश्व भोजपुरी दिवस के रूप में मनाया
जाता है। मध्य काल में ‘भोजपुर’ नामक एक स्थान में मध्य प्रदेश के उज्जैन से आए ‘भोजवंशी’
राजाओं ने एक गाँव बसाया था। इसे उन्होंने राजधानी बनाया और इसके ‘राजा भोज’ के
कारण इस स्थान का नाम ‘भोजपुर’ पड़ गया। इसी नाम के कारण यहाँ बोले जाने वाली भाषा
का नाम भी ‘भोजपुरी’ पड़ गया।
भोजपूरी को पहले ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न कैथी नामक एक
ऐतिहासिक लिपि में लिखा जाता था। इसे "कयथी" या "कायस्थी",
के नाम से भी जाना जाता है। यह देवनागरी लिपि से
मिलती-जुलती लिपि है। सोलहवीं सदी में इसका बहुत अधिक उपयोग किया जाता था। मुग़लों
के शासन काल के दौरान भी इसका काफी उपयोग किया जाता था। अंग्रेजों ने इस लिपि का
आधिकारिक रूप से बिहार के न्यायालयों में उपयोग किया। अंग्रेजों के समय से इसका
उपयोग धीरे-धीरे कम होने लगा था। बाद में इस लिपि के स्थान में देवनागरी लिपि का
उपयोग होने लगा।
एक यह भी मान्यता है कि भोजपुरी की उत्पत्ति संस्कृत से हुई, आचार्य हवलदार त्रिपाठी ‘सह्यदय’ लंबे शोध कार्य करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भोजपुरी की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। उन्होंने अपने कोश-ग्रंथ “व्युत्पत्ति मूलक भोजपुरी की धातु और क्रियाएं” में केवल सात सौ इकसठ (761) धातुओं की खोज की है, जो ‘ढ़’ वर्ण तक विस्तारित हैं। इस ग्रंथ के अध्ययन से ज्ञात होता है कि सात सौ इकसठ (761) पदों की मूल धातु की वैज्ञानिक निर्माण प्रक्रिया में पाणिनि सूत्र का अक्षरशः पालन किया गया है। इस कोश-ग्रंथ में वर्णित विषय पर दृष्टिपात करने पर भोजपुरी और संस्कृत भाषा के बीच समानता स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। दरअसल, भोजपुरी भाषा संस्कृत भाषा और संस्कृत की तरह वैज्ञानिक भाषा के काफी करीब है। भोजपुरी भाषा के मुहावरों और क्रियाओं का प्रयोग विषय को और स्पष्ट करता है। प्रामाणिकता की दृष्टि से संस्कृत व्याकरण को भी साथ-साथ प्रस्तुत किया गया। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि भोजपुरी भाषा की धातुओं और क्रियाओं की व्युत्पत्ति का स्रोत संस्कृत भाषा और इसके मानक व्याकरण से लिया गया है। देखा जाए तो हिंदी भाषा की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है और हिंदी भाषा, भोजपुरी भाषा से काफी मिलती-जुलती है इसलिए यह मान्यता सही हो सकती है।
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