Wednesday, December 28, 2022

इहां जतिए पहिचान बा

 

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जात में जात इहां जतिए प्रधान बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


जात में जात जइसे केला के पतिया

छिलका पियाज के जस मोथा के घसिया

जात के मान इहां जतिए अभिमान बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


पानी के जात इहां मटका के जतिया

भात के जात इहां रोटियो के जतिया

जात से बड़ा-छोट जतिए भगवान बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


पीड़ित भयल इहां जतिए से मानव

जतिए से मानव कहाइल दनुज-दानव

चरित-गुनहीन देखा तबो सम्मान बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


नेह-मानवता के जाति गइल खाई

हक-अधिकार गयल जाति से लुटाई

जतिए से हमनीं के मिटल पहिचान बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


मिलल अजादी बाकी के के अजाद भयल

बंधुआ अजादी अ बंधुआ अधिकार भयल

जतिए अजाद भइल जतिए गुलाम बा

इ ह भारत इहां जतिए पहिचान बा।


     कवि  -- राम बचन यादव


Sunday, December 25, 2022

जीसस कौन थे (Who was Jesus)

 


जीसस ने बचपन से बहुत आकर्षित किया 

चरवाहे के घर पैदा हुआ 

भेंडे चराता रहा

एक  निर्दोष जीवन जिया।



महिला को सजा देने के लिए पत्थर मारने वाली भीड़ से कहा, पहला पत्थर वो मारे जिसने पाप ना किया हो।


कितने साहस की बात ?

जीसस का जन्म का धर्म यहूदी था। 

पुराना धर्म कहता था दांत के बदले दांत और आँख के बदले आँख ही धर्म है। 

जीसस ने पहली बार कहा कि नहीं यह धर्म नहीं है,

बल्कि धर्म तो यह है कि कोई तुम्हारे एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो,

और कोई तुमसे तुम्हारी कमीज़ मांगे तो तुम उसे अपना कोट भी दे दो,


जीसस ने कहा सूईं के छेद से ऊँट का निकलना संभव है लेकिन किसी अमीर का स्वर्ग में प्रवेश असम्भव है।

मंदिर/मस्जिद के परिसर में बैठकर गरीबों को ब्याज़ पर पैसा देने वाले साहूकारों पर जीसस कोड़े लेकर टूट पड़ा था,

और उन्हें मार-मारकर वहाँ से भगा दिया और उनकी मेजें उलट दी थी।


बाद में ईसा के नाम पर बनाए गये इसाई धर्म के चर्च के पादरियों और राजाओं ने मिलकर गरीब किसानों का वैसा ही शोषण किया जैसा भारत में पुरोहितों और राजाओं के गठजोड़ ने किया।


गैलीलियो को विज्ञान की बात कहने के अपराध में चर्च द्वारा उम्र कैद दे दी गई,

क्योंकि विज्ञान की सच्चाई का बाइबिल की बात से मेल नहीं खाता था,

ब्रूनो को भी सच कहने के कारण चर्च ने जिन्दा जला दिया,

इसाइयों ने कई सौ साल तक चलने वाले युद्ध लड़े ,


दुनिया को लूटने वाले और सारे संसार पर युद्ध थोपने वाले अमरीका और यूरोप के पूंजीवादी राष्ट्र खुद को जीसस का अनुयायी कहते हैं। 

जबकि जीसस गरीब की तरह पैदा हुआ 

गरीब की तरह जिया 

गरीबों के लिए जिया 

और गरीब की तरह मारा गया।  

यही संस्थागत धर्म की त्रासदी है। 

जीसस को दो चोरों के साथ अपना सलीब खुद अपने कन्धों पर ढोने के लिए मजबूर किया गया .......

काँटों की टहनी उसके सर के चारों तरफ पहना दी गई 

अंत में जीसस को लकड़ी के सलीब पर कीलों से ठोक दिया गया....

जीसस मुझे एक धार्मिक नेता नहीं, अपना साथी लगता है ।


कामरेड जीसस को लाल सलाम।


Saturday, December 24, 2022

ईश्वर की सत्ता, सत्ता का ईश्वर

 

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ईश्वर वो कर्जा है

जिसे ग़रीब आजीवन भरता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर वो परदा है

जो बेबस को नंगा करता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर वो बरधा है

जो हाड़ चबाया करता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर वो गरदा है

जो सपने धूमिल करता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर वो मरदा है

जो स्त्रियों पर ज़ुल्म करता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर कोरा परचा है

जिसे नाहक़ भरना पड़ता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर ईजाद किया वो सत्ता है

जो मज़लूमों का शोषण करता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर झूठा दरजा है

जो तर्क से हमेशा डरता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर चंद लोगों का भत्ता है

जो कामचोरी करता है और बेगारी में मरता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर भगवा कत्था है

जो हरे को ख़ूनी करता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर वो ठर्रा है

जो ज़ेब को ढ़ीली करता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर वो पत्ता है

जो डाली से बग़ावत करता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर इतना सस्ता है

जिसे ज़ेब में पंडा रखता है

सत्ता की तरह!


ईश्वर ऐसा धंधा है

जिस पर ग्राहक मरता है 

सत्ता की तरह!


~बच्चा लाल 'उन्मेष'

('कौन जात हो भाई' कविता संग्रह से...) 

"ईश्वर यदि होता तो वो अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले नास्तिकों को पैदा नहीं करता।"

पेरियार रामास्वामी नायकर

Thursday, December 22, 2022

संघर्ष ही जीवन है (Struggle is Life)


बहुत पहले कहीं पढ़ा था। एक बार एक जंतु विज्ञान के प्रोफेसर अपने क्लास में आए । सभी छात्रों को मेज के पास बुला लिए । मेज पर एक अंडा रखा। अंडा किसी कीट का था। matured अंडा। प्रोफेसर ने छात्रों से कहा इसे ध्यान से देखना, ये अंडा टूटने वाला है, कह कर चले गए । 




कुछ ही समय के बाद अंडा में हरकत होनी शुरू हो गयी। अंडा टूटना शुरू हुआ। कीट बाहर आने के लिए संघर्ष करने लगा। संघर्ष इतना पीड़ा दायक था की छात्रों से देखा नहीं गया उन्होंने कीट की मदद कर दी, उसे अंडे से बाहर आने में। कीट बाहर तो आया लेकिन चल बसा अर्थात मर गया। 


कुछ देर बाद जब प्रोफेसर आए तो उन्होंने कीट को मरा पाया, समझते देर नहीं लगी की क्या हुआ होगा। उन्होंने छात्रों से कहा की ये कीट सौ वर्ष जीता है, और वो जो अंडा से बाहर आने की पीड़ा है वही इसे शक्ति देता है सौ वर्ष जीने के लिए। तुम लोगों ने इसे संघर्ष नहीं करने दिया और परिणाम ये हुआ कि वह सौ मिनट भी नहीं जी पाया। 


संघर्ष जरुरी है ! 


जिंदगी में संघर्ष न हो तो जिंदगी का मजा ही नहीं । पता ही नहीं चलेगा कि जीवित हैं भी या नहीं । घर्षण चलती गाड़ी ही महसूस करती है, रुकी हुई नहीं । संघर्ष जीवित इंसान के हिस्से आता है, मुर्दों के नहीं ।


Tuesday, December 13, 2022

5 रुपए की रोटी


एक व्यापारी था। जो 5_रुपए_की_रोटी बेचता था। उसे रोटी की कीमत बढ़ानी थी लेकिन बिना राजा की अनुमति कोई भी अपने दाम नहीं बढ़ा सकता था। लिहाज़ा राजा के पास व्यापारी पहुंचा, बोला राजा जी मुझे रोटी का दाम 10 करना है।


राजा बोला तुम 10 नहीं 30 रुपए करो।


व्यापारी बोला महाराज इससे तो हाहाकार मच जाएगा।

राजा बोला इसकी चिंता तुम मत करो, तुम 10 रुपए दाम कर दोगे तो मेरे राजा होने का क्या फायदा, तुम अपना फायदा देखो और 30 रुपए दाम कर दो।..........

अगले दिन व्यापारी ने रोटी का दाम बढ़ाकर 30 रुपए कर दिया, शहर में हाहाकार मच गया, सभी राजा के पास पहुंचे, बोले महाराज यह व्यापारी अत्याचार कर रहा है, 5 की रोटी 30 में बेच रहा है।..........

राजा ने अपने सिपाहियों को बोला उस गुस्ताख व्यापारी को मेरे दरबार में पेश करो।.........

व्यापारी जैसे ही दरबार में पहुंचा, राजा ने गुस्से में कहा गुस्ताख तेरी यह मजाल तूने बिना मुझसे पूछे कैसे दाम बढ़ा दिया, यह जनता मेरी है तू इन्हें भूखा मारना चाहता है। राजा ने व्यापारी को आदेश दिया कि तुम रोटी कल से आधे दाम में बेचोगे, नहीं तो तुम्हारा सर कलम कर दिया जाएगा।.........

राजा का आदेश सुनते ही पूरी जनता जोर-जोर से जयकारा लगाने लगी... महाराज की जय हो, महाराज की जय हो, महाराज की जय हो।........

नतीजा ये हुआ कि अगले दिन से 5 की रोटी 15 में बिकने लगी।

जनता खुश... व्यापारी खुश... और राजा भी खुश।

नोट: भारत के ज़रूरत से ज़्यादा होशियार और अक्लमंद लोगों से गुज़ारिश है कि इस कहानी को यदि आपलोग समझने की समझ विकसित कर लें तो देशहित में बेहतर हो सकता है।


Tuesday, December 6, 2022

ना चाही हमनीं के धरम-करम


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ना चाही हमनीं के धरम-करम 

ना मंदिर-मसजिद चाही रे 

हक मानवता प्यार अ इज्जत 

अब जनता के चाही रे! 


ना अच्छा लागें राम-लखन  

ना अच्छा किसन-मुरारी रे 

पेट के भूख बड़ी होखेले 

अल्लाह-ईसा से  प्यारी रे !


झूठ-मूठ सब वेद-पुरान 

गीता-कुरान-बाइबिल रे 

तोहनीं ई सब पैदा कइके 

भइला बड़का काबिल रे! 


एक तवा कै रोटी तोहनीं 

का मोटी का छोटी रे 

जनता के भरमा के तोहनीं 

काटत बाड़ा बोटी रे! 


जनता के मूरख बनवला 

रचला काबा - कासी रे 

अपने चपला दूध -भात

हमनीं के सब बासी रे! 


अब त जनता बूझ गइल बा 

बाड़ा बजर कसाई रे 

एक दिन होई जरूर इहां से

तोहनीं के विदाई रे!


कविRambachan Yadav (रामबचन यादव)

Tuesday, November 29, 2022

नहीं बचेंगी बेटियां


अब मोमबत्तियां जलाने से 

नहीं बचेंगी बेटियाँ

अब अफ़सोस करने से

नहीं बचेंगी बेटियाँ

अब नारी देह पर  

प्रलाप करने से 

नहीं बचेंगी बेटियाँ

अब खुद को कोसने से 

नहीं बचेंगी बेटियाँ

अब नारा लगाने से 

नहीं बचेंगी बेटियाँ

अब विक्षिप्त मनोवृति के 

ग़ोश्तपिशाच नराधम 

कामुक पिपासुओं के 

लिंगध्वज को चौराहों पर 

सरेआम काटकर लटकाने से 

बचेंगी बेटियाँ !


कवि- मंजुल भारद्वाज

Saturday, November 5, 2022

फूलन देवी का जीवनकाल और संघर्ष (Life and Struggle of Phoolan Devi)

 एक दस साल की लड़की, जो अपने बाप की जमीन के लिए लड़ गई थी. या एक बालिका-वधू, जिसका पहले उसके बूढ़े 'पति' ने रेप किया, फिर श्रीराम ठाकुर के गैंग ने. या एक खतरनाक डाकू, जिसने बेहमई गांव के 22 लोगों को लाइन में खड़ा कर मार दिया था. या फिर उस 'चालाक' औरत के रूप में, जो शुरू से ही डाकुओं के गैंग में शामिल होना चाहती थी. वो औरत, जिसकी जिंदगी पर फिल्म बनाकर उसका बलात्कार दिखाने वाले शेखर कपूर ने उससे पूछा भी नहीं था. या शायद एक पॉलिटिशियन के तौर पर, जिसने दो बार चुनाव जीता. या फिर एक औरत, जो खुद से मिलने आये 'फैन' शेर सिंह राणा को नागपंचमी के दिन खीर खिला रही थी, बिना ये जाने कि कुछ देर बाद यही आदमी उसे मार देगा.


फूलन

दस साल की उम्र में भी फूलन के तेवर वही थे। 10 अगस्त 1963 को यूपी में जालौन के घूरा का पुरवा में फूलन का जन्म हुआ था. गरीब और 'छोटी जाति' में जन्मी फूलन में पैतृक दब्बूपन नहीं था. उसने अपनी मां से सुना था कि चाचा ने उनकी जमीन हड़प ली थी. दस साल की उम्र में अपने चाचा से भिड़ गई. जमीन के लिए. धरना दे दिया. चचेरे भाई ने सर पे ईंट मार दी. इस गुस्से की सजा फूलन को उसके घरवालों ने भी दी. उसकी शादी कर दी गई. 10 की ही उम्र में. अपने से 30-40 साल बड़े आदमी से. उस आदमी ने फूलन से बलात्कार किया. कुछ साल किसी तरह से निकले. धीरे-धीरे फूलन की हेल्थ इतनी खराब हो गई कि उसे मायके आना पड़ गया. पर कुछ दिन बाद उसके भाई ने उसे वापस ससुराल भेज दिया. वहां जा के पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है. पति और उसकी बीवी ने फूलन की बड़ी बेइज्जती की. फूलन को घर छोड़कर आना पड़ा.

दो डाकुओं को हुआ फूलन से प्रेम, एक की जान गई। अब फूलन का उठना-बैठना कुछ नए लोगों के साथ होने लगा. ये लोग डाकुओं के गैंग से जुड़े हुए थे. धीरे-धीरे फूलन उनके साथ घूमने लगी. फूलन ने ये कभी क्लियर नहीं किया कि अपनी मर्जी से उनके साथ गई या फिर उन लोगों ने उन्हें उठा लिया. फूलन ने अपनी आत्मकथा में कहा: शायद किस्मत को यही मंजूर था. गैंग में फूलन के आने के बाद झंझट हो गई. सरदार बाबू गुज्जर फूलन पर आसक्त था. इस बात को लेकर विक्रम मल्लाह ने उसकी हत्या कर दी और सरदार बन बैठा. अब फूलन विक्रम के साथ रहने लगी. एक दिन फूलन अपने गैंग के साथ अपने पति के गांव गई. वहां उसे और उसकी बीवी दोनों को बहुत कूटा।


फूलन अपने गैंग के साथ

3 सप्ताह तक गैंगरेप और फिर 22 की हत्या ने बदला पूरा किया, अब इस गैंग की भिड़ंत हुई ठाकुरों के एक गैंग से. श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर का गैंग था ये. जो बाबू गुज्जर की हत्या से नाराज था और इसका जिम्मेदार फूलन को ही मानता था. दोनों गुटों में लड़ाई हुई. विक्रम मल्लाह को मार दिया गया. ये कहानी चलती है कि ठाकुरों के गैंग ने फूलन को किडनैप कर बेहमई में 3 हफ्ते तक बलात्कार किया. ये फिल्म 'बैंडिट क्वीन' में दिखाया गया है. पर माला सेन की फूलन के ऊपर लिखी किताब में फूलन ने इस बात को कभी खुल के नहीं कहा है. फूलन ने हमेशा यही कहा कि ठाकुरों ने मेरे साथ बहुत मजाक किया. इसका ये भी नजरिया है कि बलात्कार एक ऐसा शब्द है, जिसे कोई औरत कभी स्वीकार नहीं करना चाहती.

यहां से छूटने के बाद फूलन डाकुओं के गैंग में शामिल हो गई. 1981 में फूलन बेहमई गांव लौटी. उसने दो लोगों को पहचान लिया, जिन्होंने उसका रेप किया था. बाकी के बारे में पूछा, तो किसी ने कुछ नहीं बताया. फूलन ने गांव से 22 ठाकुरों को निकालकर गोली मार दी।


फूलन का गैंग

नया नाम मिला: बैंडिट क्वीन, जेल से छूटकर हुई राजनीति में एंट्री। यही वो हत्याकांड था, जिसने फूलन की छवि एक खूंखार डकैत की बना दी. चारों ओर बवाल कट गया. कहने वाले कहते हैं कि ठाकुरों की मौत थी इसीलिए राजनीतिक तंत्र फूलन के पीछे पड़ गया. मतलब अपराधियों से निबटने में भी पहले जाति देखी गई. पुलिस फूलन के पीछे पड़ी. उसके सर पर इनाम रखा गया. मीडिया ने फूलन को नया नाम दिया: बैंडिट क्वीन. उस वक़्त देश में एक दूसरी क्वीन भी थीं: प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी. यूपी में एक राजा थे: मुख्यमंत्री वी. पी. सिंह. बेहमई कांड के बाद रिजाइन करना पड़ा था इनको.

भिंड के एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी इस बीच फूलन के गैंग से बात करते रहे. इस बात की कम कहानियां हैं. पर एसपी की व्यवहार-कुशलता का ही ये कमाल था कि दो साल बाद फूलन आत्मसमर्पण करने के लिए राजी हो गईं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने. उन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के चार्जेज लगे. 11 साल रहना पड़ा जेल में. मुलायम सिंह की सरकार ने 1993 में उन पर लगे सारे आरोप वापस लेने का फैसला किया. राजनीतिक रूप से ये बड़ा फैसला था. सब लोग बुक्का फाड़कर देखते रहे. 1994 में फूलन जेल से छूट गईं. उम्मेद सिंह से उनकी शादी हो गई।


फूलन का सरेंडर

अरुंधती रॉय ने लिखा है: जेल में फूलन से बिना पूछे ऑपरेशन कर उनका यूटरस निकाल दिया गया. डॉक्टर ने पूछने पर कहा- अब ये दूसरी फूलन नहीं पैदा कर पायेगी. एक औरत से उसके शरीर का एक अंग बीमारी में ही सही, पर बाहर कर दिया जाता है और उससे पूछा भी नहीं जाता. ये है समाज की प्रॉब्लम. जिंदगी बदली, पर मौत आ गई, 1996 में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत गईं. मिर्जापुर से सांसद बनीं. चम्बल में घूमने वाली अब दिल्ली के अशोका रोड के शानदार बंगले में रहने लगी।


फूलन पार्लियामेंट में

1998 में हार गईं, पर फिर 1999 में वहीं से जीत गईं. 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा फूलन से मिलने आया. इच्छा जाहिर की कि फूलन के संगठन 'एकलव्य सेना' से जुड़ेगा. खीर खाई. और फिर घर के गेट पर फूलन को गोली मार दी. कहा कि मैंने बेहमई हत्याकांड का बदला लिया है. 14 अगस्त 2014 को दिल्ली की एक अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

अपने कुल 38 साल के जीवन में फूलन की कहानी भारतीय समाज की हर बुराई को समेटे हुए है. कहीं ऐसा लग सकता है कि ये एक बलात्कार का नतीजा था. पर अरुंधती रॉय कहती हैं कि अगर बलात्कार फूलन देवी बनाता तो देश में हजारों फूलन देवियां घूम रही होतीं. ये पूरी 'मर्दवादी संस्कृति' की पैदाइश है. जाति, जमीन, औरत, मर्द सब कुछ समेटे हुए है ये कहानी।

Monday, October 31, 2022

जातिवाद, धर्म और पाखंड से संबंधित कबीर के दोहे/विचार (The Poem of Kabir das)

 सबसे अधिक धार्मिक भावनाओं को कबीर ने आहत किया, वह भी मुगल दौर में। जाति हो या धर्म, हिन्दू हो या मुस्लिम, कबीर ने सभी पर एकसमान जमकर प्रहार किया। उसमें भी खासकर ब्राह्मण और मुस्लिम पर कबीर की काफी तीखी वाणी रही।


जो तू ब्राह्मण ब्राह्मणी का जाया, आन द्वार क्यों न आया।

जो तू तुर्क तुर्कनी जाया, भीतर खत्तन क्यों न कराया।।


जातिवाद पर कबीर,


1- काहे को कीजै पांडे छूत विचार, 

छूत ही ते उपजा सब संसार ।।

हमरे कैसे लोहू तुम्हारे कैसे दूध,

तुम कैसे बाह्मन पांडे, हम कैसे सूद।।


2-पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।।


3-जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।

मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।


हिन्दू पाखंड पर कबीर,


1- लाडू लावन लापसी, पूजा चढ़े अपार। 

    पूजी पुजारी ले गया, मूरत के मुह छार।।


2-माटी का एक नाग बनाके, पुजे लोग लुगाया !

   जिंदा नाग जब घर मे निकले, ले लाठी धमकाया ।


3- जिंदा बाप कोई न पुजे, मरे बाद पुजवाये !

    मुठ्ठी भर चावल लेके, कौवे को बाप बनाय।।


मुस्लिम पाखंड पर कबीर,


1-कलमा रोजा बंग नमाज, कद नबी मोहम्मद कीन्हया,

    कद मोहम्मद ने मुर्गी मारी, कर्द गले कद दीन्हया॥


2- काज़ी बैठा कुरान बांचे, ज़मीन बो रहो करकट की।

     हर दम साहेब नहीं पहचाना, पकड़ा मुर्गी ले पटकी।।


3-गरीब, हम ही अलख अल्लाह हैं, कुतुब गोस और पीर। 

    गरीबदास खालिक धनी हमरा नाम कबीर।।


4-गला काटि कलमा भरे, किया कहै हलाल। 

  साहेब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।


हिन्दू, मुस्लिम दोनों को लथारते कबीर,


1- हिन्दू कहूं तो हूँ नहीं, मुसलमान भी नाही

     गैबी दोनों बीच में, खेलूं दोनों माही ।।


2- हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

     आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।।

Saturday, October 15, 2022

जीवन क्या है इसे कैसे जिएं (What is Life & How to live it)

 

आप जानते हैं कि आपके अंतिम संस्कार के बाद आम तौर पर क्या होता होगा?

देहावसान के कुछ ही घंटों में रोने की आवाज पूरी तरह से बंद हो जाएगी।

रिश्तेदारों के लिए होटल से खाना मंगवाने में जुटेगा परिवार..

पोते दौड़ने और खेलने लगेंगे।

कुछ पुरुष सोने से पहले चाय की दुकान पर टहलने जाएंगे।

आपका पड़ोसी यह सोचकर क्रोधित होगा कि लोगों ने अनुष्ठान के पत्तों को उनके द्वार के पास फेंक दिया हो।

कोई रिश्तेदार फोन पर बात कर, आपात स्थिति के कारण व्यक्तिगत रूप से न आने का कारण बताएगा।

अगले दिन रात के खाने में, कुछ रिश्तेदार कम हो जाएंगे और कुछ लोग सब्जी में पर्याप्त नमक नहीं होने की शिकायत करेंगे।

विदेशी संबंधी गुप्त रूप से पर्यटन की योजना बना लेंगे, जैसे कि उन्होंने वहां के रास्ते पर इतनी दूर कभी नहीं देखा था।

क रिश्तेदार अंतिम संस्कार के बारे में शिकायत कर सकता है कि उसने अपने हिस्से पर कुछ सौ रुपये अधिक खर्च किए हैं।

भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगेगी..

आने वाले दिनों में ....

कुछ कॉल आपके फोन पर बिना यह जाने आ सकते हैं कि आप मर चुके हैं।

आपका कार्यालय, बिजनेस आदि आपकी जगह लेने के लिए किसी को ढूंढने में जल्दबाजी करेगा।

एक हफ्ते बाद तुम्हारी मौत की खबर सुनकर,

आपकी पिछली पोस्ट क्या थी, यह जानने के लिए कुछ फेसबुक मित्र उत्सुकता से खोज कर सकते हैं।

दो सप्ताह में बेटा और बेटी अपनी आपातकालीन छुट्टी खत्म होने के बाद काम पर लौट आएंगे।

महीने के अंत तक आपका जीवनसाथी कोई कॉमेडी शो देखकर हंसने लगेगा।

आने वाले महीनों में आपके करीबी रिश्ते सिनेमा और समुद्र तट पर लौट आएंगे।

सबका जीवन सामान्य हो जाएगा, जिस तरह एक बड़े पेड़ के सूखे पत्ते में और जिसके लिए आप जीते और मरते हैं, उसमें कोई अंतर नहीं है, यह सब इतनी आसानी से, इतनी तेजी से, बिना किसी हलचल के होता है।

आपको इस दुनिया में आश्चर्यजनक गति से भुला दिया जाएगा।

इस बीच आपकी प्रथम वर्ष पुण्यतिथि भव्य तरीके से मनाई जाएगी।

पलक झपकते ही.......

साल बीत गए और तुम्हारे बारे में बात करने वाला कोई नहीं है।

एक दिन बस पुरानी तस्वीरों को देखकर आपका कोई करीबी आपको याद कर सकता है,

आपके गृहनगर में, आप जिन हजारों लोगों से मिले हैं, उनमें से केवल एक ही व्यक्ति कभी-कभी याद कर सकता है और उसके बारे में बात कर सकता है।

आप शायद कहीं और रह रहे हैं, किसी और के रूप में, अगर पुनर्जन्म सच है।

अन्यथा, आप कुछ भी नहीं होंगे और दशकों तक अंधेरे में डूबे रहेंगे।

मुझे अभी बताओ...

लोग आपको आसानी से भूलने का इंतजार कर रहे हैं

फिर आप किसके लिए दौड़ रहे हो?

और आप किसके लिए चिंतित हैं?

अपने जीवन के अधिकांश भाग के लिए, मान लीजिए कि 80%, आप इस बारे में सोचते हैं कि आपके रिश्तेदार और पड़ोसी आपके बारे में क्या सोचते हैं.. क्या आप उन्हें संतुष्ट करने के लिए जीवन जी रहे हैं? किसी काम का नहीं ऐसा जीवन .....

जिंदगी एक बार ही होती है, बस इसे जी भर के जी लो….

और जिस उद्देश्य के लिए जन्म लिया है उस उद्देश्य को पूरा करो। कर्म ही सबकुछ है जीवन का संबंध इस इस शरीर से है और शरीर का संबंध भोज्य पदार्थों से है और ये भोज्य पदार्थ बिना कर्म के नहीं मिलते। इसलिए इस मानव रूपी जीवन में मानव को सबकुछ मानते हुए जात-पात और धर्म रूपी पाखंड को छोड़कर मनुष्य बनकर एक समाज उपयोगी जीवन जीने का प्रयास करें, यही वास्तविकता है।

Saturday, October 8, 2022

हिन्दू जाग गया है

 

बड़ा शोर है 

हिन्दू जाग गया है 

हिन्दू जाग गया है

हिन्दू जाग गया है

पर कोई बता नहीं रहा ....

कौन सा हिन्दू जाग गया?

मोहम्मद गौरी को बुलाने वाला 

जयचंद जाग गया 

या 

गाँधी का हत्यारा गोडसे जाग गया?

औरत को पूजने वाला 

हिन्दू जाग गया

या 

जुए में द्रौपदी को दांव पर लगाने वाला 

हिन्दू जाग गया?

वर्णवाद का शिकार हिन्दू जाग गया

ब्राह्मणों का दरबान बना 

राजपूत वाला हिन्दू जाग गया 

ब्राह्मणों का कारोबार सम्भालने वाला 

वैश्य हिन्दू जाग गया 

या 

शुद्र बना हिन्दू जाग गया?

स्वाभिमान, स्वावलंबन, रोजगार छोड़ 

एक-एक दाने की भीख लेने वाला 

हिन्दू जाग गया?

एक-एक सांस को तरसता 

घर-घर मरघट में मरने वाला 

हिन्दू जाग गया?

संविधान से बराबरी का अधिकार 

लेने वाला हिन्दू जाग गया 

या 

संविधान सम्मत वोट से 

मनुवादी सत्ता चुनकर 

वर्णवाद में पिसने वाला 

हिन्दू जाग गया?

बेचारे हिन्दू-हिन्दू बोलकर 

मरे जा रहे हैं ..... 

ये नाम इन्हें इस्लाम वालों ने दिया 

मुसलमानों की दी ....

हिन्दू की पहचान पर गर्व कर रहे हैं 

और हिन्दू नाम देने वाले 

मुसलमान से नफ़रत कर रहे हैं 

ये कौन से हिन्दू जाग गए है?

दरअसल हिन्दू नहीं जागे 

भीड़ जाग गई है 

अंधी भीड़ .....

वर्णवाद की गुलामी से जिसे 

संविधान ने आज़ादी दिलाई थी 

वो भीड़ फिर से वर्णवाद को 

सत्ता पर बिठाने के लिए जाग गई है 

वो भीड़ जाग गई है 

जो ब्राह्मणों के राज में 

वर्णवाद में राजपूत 

वैश्य और शुद्र बनकर 

शोषित होना चाहती है 

जो शोषण को भारत की संस्कृति मानती है 

वो जो ब्राह्मणवाद की पालकी ढ़ोने को 

मोक्ष मानती है 

वो भीड़ जाग गई है ....

आर्य प्रसन्न हैं 

मोदी संविधान को नेस्तनाबूद कर 

ब्राह्मणों की सत्ता के दूत बने हैं 

छोटी जाति के एक व्यक्ति के लिए 

इससे बड़ी बात क्या हो सकती है 

जिसे सदियों तक अछूत माना गया 

वो गांधी, आंबेडकर और नेहरु के संविधान से 

देश का प्रधानमंत्री बन सकता है 

वो हिन्दू जाग गया है  

जो बराबरी नहीं 

ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को 

भारत की संस्कृति मानता है 

और 

संविधान सम्मत राज को गुलामी !

 

कवि ~ मंजुल भारद्वाज

Sunday, October 2, 2022

मानक/आदर्श भोजपुरी के रूप (Form Standard Bhojpuri)

 



डॉ॰ ग्रियर्सन ने स्टैंडर्ड भोजपुरी कहा है वह प्रधानतया बिहार राज्य के आरा जिला और उत्तर प्रदेश के देवरिया, बलियागाजीपुर जिले के पूर्वी भाग और घाघरा (सरयू) एवं गंडक के दोआब में बोली जाती है। यह एक लंबें भूभाग में फैली हुई है। इसमें अनेक स्थानीय विशेताएँ पाई जाती हैं। जहाँ शाहाबादबलिया और गाजीपुर आदि दक्षिणी जिलों में "ड़" का प्रयोग किया जाता है वहाँ उत्तरी जिलों में "ट" का प्रयोग होता है। इस प्रकार उत्तरी आदर्श भोजपुरी में जहाँ "बाटे" का प्रयोग किया जाता है वहाँ दक्षिणी आदर्श भोजपुरी में "बाड़े" प्रयुक्त होता है। गोरखपुर की भोजपुरी में "मोहन घर में बाटें" कहते हैं परंतु बलिया में "मोहन घर में बाड़ें" बोला जाता है।

डॉ. लक्ष्मण प्रसाद सिन्हा ने –  मानक भोजपुरी के दो रूप माने हैं ।

क.  उत्तरी भोजपुरी देवरियागोरखपुर तथा बस्ती जिले में भोजपुरी का जो रूप प्रचलित है उसे उत्तरी भोजपुरी की संज्ञा दी गयी है। इसके दो रूप हैं। सम्पूर्ण देवरिया एवं गोरखपुर जिले के पूर्वी भाग में प्रचलित बोली को ‘गोरखपुरी’ कहा जाता है। उत्तरी भोजपुरी में ‘बा’ के ‘’ के योग से वर्तमानकालिक सहायक क्रिया की रूप रचना होती है ।

 

ख.  दक्षिणी भोजपुरी बिहार के भोजपुररोहताससारणसीवान एवं गोपालगंज तथा उत्तर-प्रदेश के बलिया तथा गाजीपुर (पूर्वी भाग) जिले में प्रचलित बोली को दक्षिणी भोजपुरी कहा गया है। दक्षिणी भोजपुरी में ‘बा’ के ‘’ के योग से वर्तमानकालिक सहायक क्रिया की रूपरचना होती है।


जौनपुरआजमगढ़बनारसगाजीपुर के पश्चिमी भाग और मिर्जापुर में बोली जाती है। आदर्श भोजपुरी और पश्चिमी भोजपुरी में बहुत अधिक अन्तर है। पश्चिमी भोजपुरी में आदर सूचक के लिए "तुँह" का प्रयोग दीख पड़ता है परंतु आदर्श भोजपुरी में इसके लिए "रउरा" प्रयुक्त होता है। संप्रदान कारक का परसर्ग (प्रत्यय) इन दोनों बोलियों में भिन्न-भिन्न पाया जाता है। आदर्श भोजपुरी में संप्रदान कारक का प्रत्यय "लागि" है परंतु वाराणसी की पश्चिमी भोजपुरी में इसके लिए "बदे" या "वास्ते" का प्रयोग होता है। 



Friday, September 30, 2022

हिंदी भाषा की संरचना (Hindi language structure)

 

प्रत्येक भाषा का मूल तत्व उस भाषा की ध्वनियाँ होती हैं। ध्वनियों के प्रयोग से ही किसी भी भाषा को बोलने वाला अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है, ध्वनियों से ही किसी भी भाषा की संरचना के भाषिक इकाइयों का निर्माण होता है। हिंदी भाषा में ध्वनि से शब्द/पद, शब्द से पबदंध, पदबंध से उपवाक्य, उपवाक्य से वाक्य का निर्माण होता है। हिंदी भाषा की संरचना के विषयवस्तु को समझने के लिए नीचे दिए निम्न बिन्दुओं का अध्ययन करना पड़ेगा -  

हिंदी भाषा की ध्वनि संरचना (Sound structure of hindi language)

  • हिंदी ध्वनियाँ और उनका वर्गीकरण
  • हिंदी की स्वनिम व्यवस्था
  • हिंदी के अधिखंडात्मक अभिलक्षण
  • हिंदी की अक्षर संरचना
हिंदी भाषा की शब्द संरचना (Word structure of hindi language)

  • हिंदी शब्द रचना –प्रत्यययोजन
  • हिंदी समास-संरचना और प्रकार
  • हिंदी स्त्रीलिंग शब्द संरचना
  • हिंदी क्रिया- व्युत्पन्न अकर्मक, सकर्मक और प्रेरणार्थक

हिंदी भाषा की रूप संरचना (Form Structure of Hindi Language)

  • हिंदी संज्ञा कारकीय एवं बहुबचनरूप
  • हिंदी सर्वनाम रूप संरचना
  • हिंदी विशेषण रूप रचना
  • हिंदी क्रिया : लिंग, वचन, पुरुष, अन्विति

हिंदी भाषा की वाक्य संरचना (Sentence structure of hindi language)

  • हिंदी पदबंध संरचना और प्रकार
  • हिंदी उपवाक्य  संरचना और प्रकार
  • हिंदी वाक्य संरचना और प्रकार
  • हिंदी वाक्य अभिराचानाएं


Friday, September 23, 2022

तोर जाति कहिआ ले जाई (Tor jati kahiya le jai)

 

तोर जाति कहिआ ले जाई

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गइले मानुसता के खाई

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

करम नीच कइले

पर बड़का कहइले

बरन जाति धरम बनाई

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

भरम फइलइले

बड़ा भोग कइले

पुरखा तोर कटलैं मलाई

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

कइले गद्दारी 

खइले हिस्सेदारी

गरदन अंगूठा कटाई 

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

हत्या करवले

उतसव मनवले

दिहले दानव राक्षस बनाई

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

पोथी रचवले

बिधान बनवले

गइले सब अधिकार खाई

तोर जाति कहिआ ले जाई

 

झूठ-मूठ बोलले

बड़ा खेल खेलले

अब तोर कलई खोलाई

तोर जाति कहिआ ले जाई।

 

        --©राम बचन यादव