सबसे अधिक धार्मिक भावनाओं को कबीर ने आहत किया, वह भी मुगल दौर में। जाति हो या धर्म, हिन्दू हो या मुस्लिम, कबीर ने सभी पर एकसमान जमकर प्रहार किया। उसमें भी खासकर ब्राह्मण और मुस्लिम पर कबीर की काफी तीखी वाणी रही।
जो तू ब्राह्मण ब्राह्मणी का जाया, आन द्वार क्यों न आया।
जो तू तुर्क तुर्कनी जाया, भीतर खत्तन क्यों न कराया।।
जातिवाद पर कबीर,
1- काहे को कीजै पांडे छूत विचार,
छूत ही ते उपजा सब संसार ।।
हमरे कैसे लोहू तुम्हारे कैसे दूध,
तुम कैसे बाह्मन पांडे, हम कैसे सूद।।
2-पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।।
3-जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।
हिन्दू पाखंड पर कबीर,
1- लाडू लावन लापसी, पूजा चढ़े अपार।
पूजी पुजारी ले गया, मूरत के मुह छार।।
2-माटी का एक नाग बनाके, पुजे लोग लुगाया !
जिंदा नाग जब घर मे निकले, ले लाठी धमकाया ।
3- जिंदा बाप कोई न पुजे, मरे बाद पुजवाये !
मुठ्ठी भर चावल लेके, कौवे को बाप बनाय।।
मुस्लिम पाखंड पर कबीर,
1-कलमा रोजा बंग नमाज, कद नबी मोहम्मद कीन्हया,
कद मोहम्मद ने मुर्गी मारी, कर्द गले कद दीन्हया॥
2- काज़ी बैठा कुरान बांचे, ज़मीन बो रहो करकट की।
हर दम साहेब नहीं पहचाना, पकड़ा मुर्गी ले पटकी।।
3-गरीब, हम ही अलख अल्लाह हैं, कुतुब गोस और पीर।
गरीबदास खालिक धनी हमरा नाम कबीर।।
4-गला काटि कलमा भरे, किया कहै हलाल।
साहेब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।
हिन्दू, मुस्लिम दोनों को लथारते कबीर,
1- हिन्दू कहूं तो हूँ नहीं, मुसलमान भी नाही
गैबी दोनों बीच में, खेलूं दोनों माही ।।
2- हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।।
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