राधेश्याम दो शब्दों से मिलकर बना है ‘राधे + श्याम’। राधेश्याम का अर्थ राधिका का श्याम अर्थात कृष्ण होता है। कृष्ण हिंदुओं के एक देवता हैं जिसे हिन्दू समाज पूजता है। मैंने 5 वीं पास करके 6 वीं में जब बगल के गांव में दाखिला लिया तो उसी स्कूल में मुझे इसी नाम का एक सहपाठी मिला। चुंकि वह मेरे ही गांव का निवासी था। उसी उम्र में वह काफी चंचल स्वभाव का था। जैसे- सबसे बोलना, मजाक करना, गाना गाना, सार्वभौमिक गुण थे उसमें। धीरे-धीरे हम दोनों दोस्त बने और हम दोनों साथ-साथ B. A.(स्तानक) तक सहपाठी ही रहे। 12वीं पास करने के बाद मेरे पास 8-9 मित्रों का एक समूह था। राधेश्याम उनमें से एक था। हमारे समूह में किसी का भी कैसा भी कार्य करना होता था तो हम सभी मिलकर उसे कर देते थे। हम सब समूह के बाहर भी बहुत से ग्रामवासियों की सहायता करते थे। उसके बाद राधेश्याम भर्ती की तैयारी करने लगा, कुछ दिन बाद उसकी शादी भी हो गई और मैं महाराष्ट्र आ गया और यहां पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से एम. ए. किया और फिलहाल पी-एच.डी. चल रही है। राधेश्याम हमारे ग्रुप में सबसे होनहार और बुलंद शरीर का था। हजारों में एक था । एक चित्र के माध्यम से उसे देखा जा सकता है....
जब भी
मैं वर्धा से गांव पर जाता था। हम सभी मित्र इकठ्ठे होकर बहुत खुशी महसूस करते थे।
पूरा दिन हंसी-माजक में कट जाता था पता भी नहीं चलता। एक दो लोगों को छोड़ दें तो
मेरे ग्रुप में मेरे अपेक्षा सभी मित्र अमीर थे। मैं बहुत निम्न परिवार से था। साल
2018 में मेरे परिवार को रहने के लिए एक पक्का घर बना
। कहानी लिखने तक उसी एक घर में मेरे पूरे परिवार का भरण-पोषण होता है। पुरुषों को
रहने के लिए एक मड़ई है। मेरे परिवार में कुल 5 सदस्य हैं।
मेरे
पिता जी के नाम से मात्र 3 मंडा (120
धुर) खेत है। जिसके हम दो भाई हिस्सेदार हैं अर्थात प्रत्येक भाई को
1.5 मंडा अर्थात 60 धुर मिलेगा।
एक तरह से मेरा परिवार बंजारा परिवार की तरह है, रोज कामना
और उसे खा जाना। मैं आर्थिक रूप से भले ही गरीब हैं मगर मित्रवत रूप से बहुत ही
अमीर हूँ। मित्रों की वजह से आज तक मेरा कोई काम रुका नहीं। इसलिए मैं अपने
मित्रों को भगवान स्वरूप मानता हूं।
इन्हीं मित्रों के सहयोग से मैं साल 2021 में ग्रामप्रधान का चुनाव लगा। मेरे मित्रों को विपक्षियों ने तोड़ने का भरपूर प्रयास किया। यहां तक कि एक दूसरे के परिवार में झगड़ा तक करा दिया। चुनाव में सबसे ज्यादा पारिवारिक उलझन राधेश्याम ने झेला क्योंकि उसका परिवार मेरे विपक्षी को सपोर्ट करता था। मैंने उसे बहुत बार परिवार के साथ रहने का विचार दिया मगर वह नहीं माना। मैंने उसका मात्र एक बार सहयोग किया था वो भी मैंने अकेले नहीं किया था। वह उस सहयोग को एहसान मान बैठा था एक दूसरा कारण यह भी था कि वह सही के साथ खुलकर खड़ा रहता था। उस एक सहयोग के बदले उसने मुझ पर और मेरे अन्य दोस्तों पर अनगिनत एहसान किया। जहां कोई खड़ा न हो सके वहां अकेले खड़ा होने की क्षमता रखता था वह। हम लोगों के ग्रुप का मुखिया था वह। ग्रामप्रधान के चुनाव में मैंने उसे ही खड़ा होने को कहा था मगर वह मुझे चुना, इतना त्यागी था वह। किसी भी विपत्ति में कोई भी पुकार से एक पैर पर खड़ा रहता था वह। परिवार के विरोध में रहकर मुझे चुनाव लड़ाकर मेरे जैसे निम्न वर्ग के लड़के को चुनाव में दूसरा स्थान हासिल करवाया। 34 वोट से मैं चुनाव हारा। मुझे प्रधान बनाकर वह गांव में अपने माध्यम से अच्छे-अच्छे कार्य कराने का सपना देखता था। वह एक कुशल वक्ता था। गाँव के किसी भी प्रोग्राम में उसे मंच संचालन के लिए रखा जाता था। उसने खुद के बल पर इतनी पहचान बना रखी थी कि धीरे-धीरे पूरा क्षेत्र उसे जानने लगा था। वह अपने बोलने की स्टाइल से किसी के भी मन को मोह लेता था। एक तरह से मनमोहन था वह। मैंने भी उसके लिए कुछ कर गुजरने का स्वप्न संजो रखा था मगर...?। चुनाव में हारने के कुछ महीने बाद वह जॉब के लिए हरियाणा चला गया और उसके जाने के ठीक 9 दिन बाद मैंने फिर पढ़ाई के लिए वर्धा जाने के लिए ट्रेन पकड़ा। 10 मार्च का दिन था सुबह हो रहा था मेरी ट्रैन कुछ देर में नागपुर पहुंचने वाली थी। मेरे एक मित्र का अचानक फ़ोन आया और उसने राधेश्याम का एक्सिडेंट होने की खबर बताई। मुझे विश्वास नहीं हुआ फिर मैंने एकाध मित्रों को फ़ोन लगाया उन्होंने भी एक्सीडेंट की बात सही कही। फिर मैं उसके यहां जाने की योजना बनाने लगा तब तक मित्रों ने सूचना दी की जाने से कोई फायदा नहीं है क्योंकि अब राधेश्याम इस दुनिया में नहीं रहा। मुझे उस समय इस बात पर विश्वास नहीं हुआ और आज भी नहीं होता है। क्योंकि हमेशा ऐसा महसूस होता है वह कहीं गया है और जल्द ही आएगा फिर हम लोग साथ बैठेंगे, पार्टियां करेंगे और वह हम सबको डाँटेगा और समझाएगा। मगर बहुत दिन हो गया न वह फ़ोन करता है और न ही आने की बात करता है। जब भी उसकी यादें आती हैं तो बहुत रुलाती हैं। मगर जब तक हम जीवित हैं उसके आने का इंतजार करते रहेंगे। अब तो उसकी यादें मुझे मेरे दुखों में उर्जा देती हैं। मैं जब कभी अकेले या किसी दुःख में रहता हूँ तो उसको याद करके रो लेता हूँ जिससे कि मुझे जीवन जीने के लिए उर्जा मिलती है। मैं नागपुर से फिर बस पकड़कर गाँव के लिए रवाना हुआ मगर मैं उसके अंतिम यात्रा के अंतिम घड़ी में पहुंचा। उसने हम सब पर इतना एहसान किया मगर हमें एहसान चुकाने का क्षण भर के लिए भी मौका नहीं दिया। हम लोगों को जीवनभर के लिए कर्जदार करके चला गया। मुझे तो उसने अपना जनाजा भी उठाने का मौका नहीं दिया। सुना था मैं कि उसके जनाजे में जितनी भीड़ इकठ्ठी हुई थी उतनी भीड़ मेरे ग्रामसभा के किसी भी व्यक्ति के जनाजे में आज तक इकठ्ठी नहीं हुई थी। उसकी उम्र मात्र अभी 26 वर्ष थी। मैंने सुना था ऐसी कोई आँख नहीं थी जो उस दिन रोई नहीं। जो उसको नहीं देखे थे वे उसकी तस्वीर देखकर रोए थे । हफ़्तों तक गाँव में शोक का माहौल रहा... इस हस्ती का नाम था राधेश्याम ! हरेक के बहुत मित्र होंगे और मिलेगें भी मगर मित्रता केवल होने और मिलने वाली चीज नहीं है । इसे जीना पड़ता है और वह भी निःस्वार्थ भाव से।
कहा
गया है कि यह दुनिया परिवर्तनशील है यहाँ पर कुछ भी स्थिर नहीं रहता है । सबको एक-न-एक दिन इसको छोड़कर जाना है क्योंकि जिंदगी जन्म और मृत्यु के बीच की यात्रा है।
इसलिए जाने वाला चला जाता है और बचने वालों को जीना पड़ता है । जैसे....“राधेश्याम
और मैं”
आज
मित्रता दिवस पर राधेश्याम के लिए दो लाइन...........
तू हम सबका अभिमान, चेहरे की मुस्कान, और मेरे लिए भगवान था !
तेरे बिना न हम सबका न सुबह था, न शाम था !
तू हीं तो हम सबकी जान था, तू हीं तो जहान था !
उसके अग्निदाह के वक्त की एक तस्वीर.......
Miss you
राधे....................
तुम्हारा कर्जदार मित्र
.......मन्नू