Sunday, January 30, 2022

कबीरदास की जीवनी और साखी के कुछ दोहे

 


पूरा नाम - संत कबीरदास
अन्य नाम - कबीराकबीर साहब
जन्मतिथि - 1398 (लगभग)
जन्म-भूमि -  लहरतारा ताल  (काशी)
मृत्युतिथि - 1518 (लगभग)
मृत्यु-स्थान - मगहर (उत्तर प्रदेश)
पालक माता-पिता - नीरु और नीमा
पत्नी - लोई
संतान - कमाल (पुत्र)कमाली (पुत्री)
कर्म भूमि - काशीबनारस
कर्म-क्षेत्र - समाज सुधारक कवि
मुख्य रचनाएँ - साखीसबद और रमैनी
विषय - सामाजिक
भाषा - अवधीसधुक्कड़ीपंचमेल खिचड़ी
शिक्षा - निरक्षर
नागरिकता - भारतीय
संबंधित लेख - कबीर ग्रंथावलीकबीरपंथबीजककबीर के दोहे आदि
अन्य जानकारी - कबीर का कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सकाजिस कारण इस विषय में निर्णय करते समयअधिकतर जनश्रुतियोंसांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है।

                                                  "साखी के कुछ दोहे"

(1) बलिहारी गुरु आपनौद्योहाड़ी कै बार।

     जिनि मानिष तैं देवताकरत न लागी बार।।

 व्याख्या : कबीरदास जी कहते हैं कि उस गुरुदेव पर मेरा सब कुछ निछावर है, उनको बार-बार दुहाई है जिन्होंने बिना विलंब किए मुझे मनुष्य से देवता बना दिया।

(2) सतगुरु की महिमा अनंतअनंत किया उपगार।

      लोचन अनंत उघाड़ियाअनंत दिखावणहार।।

व्याख्या : कबीरदास जी कहते हैं कि सच्चे गुरु की महिमा अनंत होती है और उनका हमारे ऊपर बहुत ज्यादा उपकार हैजिसने हमको इतना ज्यादा देखने की क्षमता प्रदान कीताकि हम बहुत दूर तक देख सकें।

(3) दीपक दिया तेल भरिबाती दई अघट्ट।

     पूरा किया बिसाहुडाबहुरि न आवै हटट।।

व्याख्या : कबीरदास जी कहते हैं कि हमारे गुरुदेव ने हमारे शरीर रूपी दीपक में ज्ञान रूपी तेल भर दिया और इस पर इस प्रकार की बत्ती दे दी जो कभी घट(कम) नहीं सकती और उन्होंने अपना काम मुझे ज्ञान देकर पूरा कर दिया और अब हमें इस शरीर रूपी घर में आने की कोई आवश्यकता नहीं है।

(5) बूड़े थे परि उबरेगुरू की लहरि चमंकि।

      भेरा देख्या जराजराउतरि पड़े फरंकि।।

व्याख्या : कबीरदास जी कहते हैं कि मैं इस संसार रूपी माया में डूब गया था लेकिन मैं अब गुरु के दिए गए ज्ञान से माया से बाहर निकल चुका हूं। जब मैंने देखा कि यह शरीर रूपी नाव जर्जर हो चुकी है तो मैं तुरंत उस पर से उतर गया।

(7) लंबा मारग दूर घरबिकट पंथ बहु मार।

      कहौ संतौ क्यूं पाइएदुर्लभ हरि दीदार।।

व्याख्या : कबीरदास जी कहते हैं कि उस परमात्मा के घर तक पहुंचना बहुत आसान नहीं है। उनको पाने के लिए बहुत दूर रास्ता चलकर जाना पड़ता है बहुत कठिनाईओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए हर संत उस परमात्मा का दीदार नहीं कर पाता।

(8) यहु तन जारौं मसि करौंलिखौ राम का नाउँ।

      लेखड़ी करूँ करंक कीलिखि-लिखि राम पठाउँ।।

व्याख्या : कबीरदास जी कहते हैं मैं अपने निर्गुण ब्रह्म के लिए अपने शरीर को जलाकर स्याही बना दूं और उससे राम(निर्गुण ब्रम्ह) का नाम लिखूं और अपने शरीर की हड्डी से लेखन करके निर्गुण ब्रह्म के यहां लिख-लिख कर भेजूं।

(9) कबीर यहु घर प्रेम काखाला का घर नाहिं।

      सीस उतारै हाथि करीसो पैठे घर माहिं।।

व्याख्या : कबीरदास जी कहते हैं कि ब्रह्म के पास पहुंचना इतना आसान नहीं है वह मौसा का घर नहीं है। वह प्रेम का घर है और वहां पर पहुंचने के लिए अपने सिर को काटकर हाथ पर रखकर, जाने जैसा कठिन कार्य है।

(10) नैना अंतर आव तूज्यौं हौं नैन झपेउँ।

        ना हौं देखौं और कूँना तुझ देखन देउ।।

व्याख्या : कबीर दास जी अपने ब्रह्म से प्रेम के बारे में लिखते हुए कहते हैं कि हे प्रभु आप मेरे नैनों के बीच आ जाइए, जैसे ही मेरे नैन झपने को हों ताकि ना मैं किसी को देख सकूं ना आपको किसी को देखने दूं।

(11) हेरत हेरत हे सखीरहा कबीर हिराय।

       बूंद समानी समद मैंसो कत हेरी जाई।।

व्याख्या : कबीर दास जी कहते हैं कि उनके प्रियतम इस प्रकार से बिछड़ गए हैं जैसे कि कोई बूंद समुद्र में खो जाने के बाद नहीं मिल पाती।

(12) पंखि उड़ानी गगन कूँप्यंड रहा परदेस।

        पाणी पिया चंच बिनभूल गया यहु देस।।

 व्याख्या :

(13) जब मैं था तब हरि नहींअब हरि हैं मैं नाहिं।

        सब आ अँधियारा मीटि गयाजब दीपक देख्या माहिं।।

व्याख्या : कबीरदास जी कहते हैं कि जब हमारे पास मैंरूपी अहंकार था तब तक हमारे पास हमारे भगवान नहीं थे। अब हमारे पास भगवान हैं तो हमारे में अहंकारनहीं है। जैसे ही मैंने ज्ञान रूपी दीपकको अपने अंदर जलाया मेरे अंदर का सारा अंधियारा ख़त्म हो गया।

Thursday, January 27, 2022

गुरुदेव के भगवान और मेरे भगवान गुरुदेव

 

मेरे गुरुदेव में एक बुरी आदत थी वे बहुत ज्यादा गुस्सा करते थे और बातों-बातों में रो देते थे। मगर जबसे मुझसे उनसे बातें होने लगी थी उनका गुस्सा धीरे-धीरे कम होने लगा था क्योंकि मैं जब भी उनको गुस्सा छोड़ने को कहता थावे कहते थे नहीं छूट पाएगा। फिर मैं उनको दो पंक्तियां सुनाता था... “लहरों से डरक नौका पार नहीं होतीकोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

मेरे और गुरुदेव में अक्सर भगवान को लेकर झगड़ा होता रहता था क्योंकि वे भगवान को मानते थे और मैं उनको ही भगवान मानता था। वे जिस दिन किसी मंदिर से अपने भगवान का दर्शन करके आते थे तो मुझे बताते थेमैं बोलता था मेरे भगवान का तो रोज दर्शन हो जाता है तो वे पूछते थेकैसेमैं पूछता था कि आप भी दर्शन करोगेतो वे कहते... हां... फिर मैं उनका फोटो भेजकर कहता था लीजिए मेरे भगवान का दर्शन कर लीजिए। बस यहीं से झगड़ा शुरू हो जाता था। वे बोलते थे कि यह तो मेरी फोटो है तो मैं बोलता थानहीं यह मेरे भगवान की फोटो है फिर वे कहते थे.. आप किसी व्यक्ति को भगवान कैसे मान सकते हैं?
चूंकि मैं समाजसेवी विचारधारा का व्यक्ति थामेरे लिए मेरा सबकुछ समाज ही था। एक बार मेरे मन में एक सवाल उठा था कि लोग भगवान को भगवान क्यों मानते हैंउनके लिए इतना समर्पित क्यों रहते हैं और प्रत्येक धर्म के लोग ऐसा करते हैं (हिन्दूमुस्लिमसिखईसाई आदि)प्रतिउत्तर में मुझे यह मिला कि लोगों की मान्यता है कि भगवान उनके सुख-दुःख में साथ देते हैं। मगर आज तक किसी ने किसी की सहायता करते भगवान को नहीं देखा है यह केवल विश्वास मात्र ही है।
भगवान की मान्यता के प्रति क्रांतिकारी भगत सिंह का विचार -

पेरियार ई वी स्वामी के विचार- ईश्वर को धूर्तों ने बनाया, गुंडों ने चलाया और मुर्ख उसे पूजते हैं

ओशो के विचार - परमात्मा मंदिर में नहीं, तुम्हारे में है मंदिर तो तुम्हारे अपाहिज होने का प्रमाण है

लोगों के द्वारा प्राप्त उत्तर जो वे भगवान को भगवान मानने के लिए देते हैं। उसी आधार पर मैं समाज को अपना भगवान और समाजसेवा को अपना धर्म मानता हूं क्योंकि जब भी हमारे ऊपर कोई दुःख आता है तो हमारे समाज का कोई व्यक्ति (जैसे- मेरा कोई मित्रमेरा कोई हितैसी आदि) आकर मेरी सहायता करता है न कि भगवान! जिससे कि हमें अपने दुख से बाहर निकलने में सहायता मिलती हैऐसा प्रत्येक व्यक्ति के साथ होता है ऐसा नहीं है कि केवल मेरे साथ ही होता है। फ़र्क बस इतना है कि इसके बावजूद भी लोग अपने मित्रों और हितैषियों को भगवान नहीं मानते अर्थात वे लोग भगवान को मानने के लिए दिए गए खुद के तर्क को भी नहीं मानते।

मेरे गुरुदेव का भी भगवान को मानने का जो तर्क था वह आमलोगों की तरह ही था इसलिए उनसे अक्सर तर्क-वितर्क होता रहता था। वे अपने ही तर्कों में फंस जाते थेबाद में मैं उनको चिढ़ाने के लिए कह देता था कि मैं जीत गया। फिर वे कहते.. हां भाई.. आप महान हो मैं आपसे कहां जीत सकता हूं। मगर असल में मुझे कभी उनकी हार देखना पसंद नहीं था अब मैं फिर उस रात उनको जिताने के लिए बातचीत आगे जारी रखा। मेरे गुरुदेव के सबसे प्रिय भगवान हनुमान जी व श्री कृष्ण के अलावा भी उनके एक और प्रिय भगवान थे जिनका नाम मुजून बाबा(काल्पनिक नाम) था। मैं उन्हें चिढ़ाने के लिए कभी-कभी पूछ देता थाआपके मजनू बाबा का क्या हाल हैफिर तो वे मुझ पर आग बबूला हो जाते थेकहते थे कि आज के बाद मैं आपसे बात नहीं करूंगा क्योंकि आप मेरे भगवान का मजाक उड़ा रहे हैं क्योंकि भोजपुरी भाषा में ‘मजनू’ काअर्थ "किसी प्रेमिका के प्यार में पागल प्रेमी" होता हैमैं पुनः उन्हें मनाने के लिए प्यारी-प्यारी बातें करने लगा मगर उनका गुस्सा शांत नहीं हो रहा था। फिर गुरुदेव ने मेरे सामने एक अद्भुत प्रश्न पेस कर दिया। प्रश्न यह था कि यदि आप किसी के भी भगवान का आज के बाद मजाक उड़ाएंगे तो मैं आपसे बात नहीं करूंगा। फिर क्या मुझे उन्हें जिताने का सुनहरा मौका मिल गया और मैं उनकी बातों को मान लियाअंततः उनकी विजय हुई "जीतना किसी के लिए उतना कठिन नहीं होता क्योंकि जीतना तो हर कोई चाहता हैकिसी को जिताना काफी कठिन होता है। आप लोगों को भी कभी किसी को जिताने का मौका मिले तो अवश्य प्रयास कीजिएगा"। जो पाठक गुरुदेव से भ्रमित होंगे वे जान लें कि वे मेरी एक महिला मित्र थीं जिनका मैंने नाम गुरुदेव रखा था। वे काफी चतुरचालाक व मेहनती महिला थींउनका परिश्रम मुझे बहुत पसंद था।
उनके द्वारा लिखी गई एक कविता नीचे दी जा रही है जो निम्न है-
                                              कविता का शीर्षक – “बदलाव
मौसम की एक खासियत होती है बदलाव वह कभी भी बदल सकता है,
और इंसान इन सब बातों से भली-भांति परिचित होता है इसलिए,
वह मौसम को कुछ नहीं कहता पर इंसान में हुए बदलाव को इंसान देखकर हैरान क्यों हो जाता है. 
क्यों नहीं मान लेता कि इंसान भी उसी मौसम की तरह है जो अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में सामंजस स्थापित करने के लिए अपने आप में बदलाव करता है।
किसी भी चीज में बदलाव बेहद जरूरी है बिना बदलाव के लोगों का विकास असंभव है इसलिए हरेक इंसान को अपने में समय के साथ परिवर्तन करना आवश्यक है।
न कि दूसरों के बदलने पर उनके परिवर्तन को गलत साबित करना,
इसलिए यदि किसी व्यक्ति में बदलाव हो रहा है तो होने देंउसके बदलाव की प्रक्रिया में बांधा न बनें।

लेखक - मन्नू सिंह यादव (PhD शोधार्थी)

Monday, January 24, 2022

हमारे कृषक

 

जेठ हो कि हो पूसहमारे कृषकों को आराम नहीं है।

छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है।।

मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है।

वसन कहाँसूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है।।

 

बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं?

बंधी जीभआँखें विषम गम खाशायद आँसू पीते हैं।।


पर शिशु का क्या? सीख न पाया अभी जो आँसू पीना।

चूस-चूस सूखा स्तन माँ कासो जाता रो-विलप नगीना।।

विवश देखती माँ आँचल से नन्ही तड़प उड़ जाती।

अपना रक्त पिला देती यदि फटती आज वज्र की छाती।।


कब्र-कब्र में अबोध बालकों की भूखी हड्डी रोती है।

दूध-दूध की कदम-कदम पर सारी रात होती है।।

दूध-दूध औ वत्स मंदिरों में बहरे पाषान यहाँ है।

दूध-दूध तारे बोलो इन बच्चों के भगवान कहाँ हैं।।


दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे।

दूध-दूध उफ कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे।।

दूध-दूध दुनिया सोती है लाऊँ दूध कहाँ किस घर से

दूध-दूध हे देव गगन के कुछ बूँदें टपका अम्बर से ।।

हटो व्योम केमेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं

दूध-दूध हे वत्स! तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं।।

 

लेखक- रामधारी सिंह 'दिनकर'

Saturday, January 22, 2022

रेलवे प्लेटफोर्म पर फेरी वालों के लिए नहीं होते दिन-रात

 


फ़रवरी का महीना थादिन शुक्रवार और दिनांक 07/02/2020 था। मैं हर बार की तरह रामेश्वरम एक्सप्रेस से वर्धा से अपने घर के लिए जा रहा था। उस समय मैं महाराष्ट्र राज्य के वर्धा जिले में स्थित ‘महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय’ (MGAHV) में पी-एच. डी. की पढ़ाई कर रहा था। मेरे घर पर अचानक एक अप्रिय घटना घट गई थी जिसके कारण मुझे घर जाना पड़ा था। मैं सुबह के 6 बजे रेलगाड़ी में बैठा था। दिनभर के चहलकदमी और तमाम स्टेशनों को पार करने के बाद धीरे-धीरे रात हुई और खाना खाकर सभी लोग सोने लगेमैं भी सो गया क्योंकि हम सभी के लिए रात सोने के लिए और दिन काम करने के लिए होता है। अचानक 2 बजे रेलगाड़ी किसी स्टेशन पर पहुंची और रूकी, फिर बहुत सारे लोगों की आवाज सुनाई देने लगी मैं जग गया और उठ बैठादेखा तो कुछ लोग सब अपने-अपने सामान बेच रहे थे। कोई पेठाकोई बेल्टकोई चायआदि बेच रहा था। इतनी रात को जब सारी दुनिया सो रही हो और वे अपने सामान बेचने में इतने गम्भीर थे कि उनकी आवाज और फुर्ती को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि उनके लिए रात हुई हो उनके चेहरे पर उतनी ही चमक और आवाज में उतनी ही तेज थी, जितनी की दिन के समय में थी। ऐसा नहीं था कि मैं जीवन में पहली बार यात्रा कर रहा था और ऐसा भी नहीं था कि मैं पहली बार ऐसी घटना को देख रहा था बल्कि सच ये था कि मैं पहली बार इस पर गौर किया और इस घटना ने मुझे बहुत ही प्रभावित किया, जिससे कि मुझे इसे कहानी का रूप देना पड़ा उस रात मैं अब सो नहीं पाया, बाकी की पूरी रात मैं उनके बारे में ही सोचता रहा। मेरे जेहन में यही सवाल उठता रहा कि क्या उन लोगों को नींद नहीं आती, यदि आती है तो फिर रेलगाड़ी आते ही उनकी नींद कैसे खुल जाती है उनके शरीर और आवाज में इतनी फुर्ती और तेज कहाँ से आती हैक्या उनके पास उनका परिवार नहीं होता है यदि होता है तो फिर वे अपने परिवार के साथ कब रहते हैंक्या दिन में वे अपना सामान नहीं बेचते या हप्ते के कुछ ही दिन परिवार के साथ रहते हैंइन सभी सवालों के उत्तर मुझे नहीं मिले। मैं उनसे कुछ खरीद भी नहीं पाया क्योंकि महंगाई चरम सीमा पर थी मैं एक शोधार्थी था मेरे पास भी उस समय कुछ खास पैसे नहीं थे। अंत में 300 रुपए बचे थे, जिनमें से 150 रुपए अभी मुझे अपने घर पहुंचने में खर्च होने थे। हाल ही में कांग्रेस ने 70 साल देश लूटकर बीजेपी को सौपीं थी। नरेंद्र मोदी PM थे उस समयरेलवे के भाड़ा कुछ ही वर्षों में दर्जनों बार बढ़ चुके थेतमाम कंपनियों और संस्थाओं में कर्मचारियों की छटनी जोरों पर थी कांग्रेस ने सत्तर सालों में कुछ नहीं किए थे फिर भी संस्थाओं की बिक्री और रेलवे का निजीकरण जोरों पर था। रोजगारों की भरमार थी फिर भी लोग बेरोजगार थे सब कुछ ठीक था, बस उस साल बेरोजगारों ने किसानों से ज्यादा आत्महत्याएं की थी। नेताओं की संपत्ति तेजी से बढ़ रही थी, चाहे वह पक्ष का हो या विपक्ष का। चारों तरफ पूंजीवाद जोर पकड़ रहा थाकोई बोलने को तैयार नहीं था जो बोलता था वह देशद्रोही हो जाता था। घोटाले भी हो रहे थे मगर टाले जा रहे थे, क्योंकि जांच एजेंसियों के पास अभी समय नहीं था

 हाल ही में CAA लागू हुआ था, NRC लागू होने वाली थी। देश में जगह-जगह धरने हो रहे थे। कोई उन्हें राजनीति तो कोई हक की लड़ाई से नवाज रहा था।

हाल ही में सरकार ने देश में TV भी ला दिया था, उसमें चैनल भी थे। उन चैनलों में News Channel भी थेचूंकि अब चैनलों के दाम 250 से बढ़कर 450 हो गए थे इसलिए चैनल देश की खबर छोड़कर पाकिस्तान की खबर दिखाने में व्यस्त रहते थे। देश में बेरोजगारी अब तक की सबसे उच्चत्त स्तर पर पहुंच गई थी और विकास दर सबसे न्यूनतम स्तर पर था। सब कुछ ठीक था क्योंकि इन समस्याओं से केवल अम्बानीअडानी जैसे परिवार प्रभावित थे, बाकी आमजनता सबसे मस्त थी। उन्हीं मस्त लोगों में से वे लोग भी थे जो 3 बजे रात में अपने जीवन यापन के लिए सामान बेचते हुए मुझसे मिले थे........धन्यवाद

लेखक : मन्नू सिंह यादव (पी-एच. डी. शोधार्थी)

Friday, January 21, 2022

अद्यतन भाषाविज्ञान का विमर्श (Updated Linguistic's discussion)

पाण्डेय शशिभूषण ‘शीतांशु’ ने अपनी किताब ‘अद्यतन भाषाविज्ञान : प्रथम प्रमाणिक विमर्श’ में अद्यतन भाषाविज्ञान विमर्श को- प्रमुख और गौण दो रूपों में विभक्त करके समझाया है, जिनका उल्लेख्य नीचे दिया गया है-

अद्यतन भाषाविज्ञान (Updated Linguistics) : प्रमुख विमर्श (Key Discussion)

  • सामान्य भाषाविज्ञान (General Linguistics)
  • वर्णनात्मक भाषाविज्ञान (Descriptive Linguistics)
  • संरचनात्मक भाषाविज्ञान (Structural Linguistics)
  • विवेचनात्मक भाषाविज्ञान (Critical Linguistics)
  • व्यवहारवादी भाषाविज्ञान (Behaviourist Linguistics)
  • व्यतिरेकी भाषाविज्ञान (Contrastive Linguistics)
  • अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान (Applied Linguistics)
  • संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान (Cognitive Linguistics)
  • सम्भाव्यतावादी भाषाविज्ञान (Probablistic Linguistics)
  • डेकार्टवादी भाषाविज्ञान (Cartisan Linguistics)
  • अदालती भाषाविज्ञान (Forensic Linguistics)
  • मनोभाषाविज्ञान भाषाविज्ञान (Psycho Linguistics)
  • तंत्रिका भाषाविज्ञान (Neuro Linguistics)
  • विकासात्मक भाषाविज्ञान (Developmental Linguistics)
  • समाज भाषाविज्ञान (Socio Linguistics)
  • पाठ भाषाविज्ञान (Text Linguistics)
  • गाणितिक भाषाविज्ञान (Mathemetical Linguistics)
  • बीज-गाणितिक भाषाविज्ञान (Algebrical Linguistics)
  • संगणक भाषाविज्ञान (Computer Linguistics)
  • तथ्यांक-संग्रह भाषाविज्ञान (Corpus Linguistics)

 

अद्यतन भाषाविज्ञान (Updated Linguistics) : गौण विमर्श (Accessory Discussion)

  • सांस्थानिक भाषाविज्ञान (Institutional Linguistics)
  • नृतत्ववैज्ञानिक भाषाविज्ञान (Anthropogical Linguistics)
  • प्राणि भाषाविज्ञान (Bio- Linguistics)
  • चिकित्सावैज्ञानिक भाषाविज्ञान (Chemical Linguistics)
  • पर्यावरण भाषाविज्ञान (Eco- Linguistics)
  • प्रजातिगत भाषाविज्ञान (Ethno- Linguistics)
  • शांति भाषाविज्ञान (Peace- Linguistics)
  • दार्शनिक भाषाविज्ञान (Philosophical Linguistics)
  • धर्म-भाषाविज्ञान (Theo- Linguistics)
  • भूगोलशास्त्रीय भाषाविज्ञान (Geographical Linguistics)
  • भू-भाषाविज्ञान (Geo- Linguistics)
  • अनुपातात्मक भाषाविज्ञान (Quantitative Linguistics)
  • सांख्यिकीय भाषाविज्ञान (Statistical Linguistics)
  • शैक्षणिक भाषाविज्ञान (Educational Linguistics)