शब्द-भेद / शब्द-वर्ग : संक्षिप्त परिचय
किसी भाषा में पाये जाने वाले सभी
शब्दों को उनके आर्थी प्रकार्यात्मक एवं वाक्यात्मक व्यवहार के अनुरूप बनाए गए
शब्द-वर्ग या शब्द-भेद कहलाते हैं। जैसे- संज्ञा के रूप में- राम, मोहन, रानी, औरत,
पुरुष, जानवर, गाय आदि। विशेषण के रूप में- सुंदर, अच्छा, लाल, तीखा, तेज आदि तथा
क्रिया के रूप में- दौड़ना, बैठना, नहाना, रोना, खाना आदि। इन्हें अंग्रेजी में Part of Speech कहते हैं।
किसी भी भाषा का व्याकरणिक विवेचन करने
के लिए शब्द भेदों (POS)
संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक
एवं विस्मयादिबोधक के साथ-साथ व्याकरणिक कोटियों का भी अध्ययन किया जाता है।
व्याकरणिक कोटियों के अंतर्गत लिंग, वचन, पुरुष, काल, पक्ष, वृत्ति आदि आते हैं।
पारंपरिक दृष्टि से नाम, आख्यात, उपसर्ग, निपात की बात की गई है। जिसमें नाम के अंतर्गत- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण को रखा गया है। आख्यात के अंतर्गत- क्रिया को रखा गया है। उपसर्ग के अंतर्गत प्रत्यय और उपसर्ग को रखा गया है एवं निपात के अंतर्गत संबंधबोधक, समुच्चयबोधक एवं विस्मयादिबोधक को रखा गया है।
आधुनिक व्याकरणों में आठ शब्द-भेदों
की बात की गई है, जो निम्न हैं- संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, क्रियाविशेषण,
संबंधबोधक, समुच्चयबोधक, एवं विस्मयादिबोधक।
आधुनिक व्याकरण में शब्दों के जो आठ भेद माने गए हैं वे प्रयोग के आधार पर माने गए हैं, जो निम्न हैं-
1.संज्ञा 2.सर्वनाम 3.क्रिया 4.विशेषण 5.क्रियाविशेषण
6.संबंधबोधक 7.समुच्चयबोधक 8.विस्मयादिबोधक
विकार के आधार पर-
विकारी - वे शब्द जिनमें लिंग, वचन, व कारक ले आधार पर परिवर्तन हो जाता है,
विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-लड़का, बड़ा,
अच्छा, खाता, कुत्ता आदि,
इनमें संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया और विशेषण आते हैं।
अविकारी - जिन शब्दों का रूप नहीं बलता या वे
अपने मूल रूप में रहते हैं उन्हें अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं। जैसे- आज, कल,
यहाँ, किन्तु, धीरे, तक आदि, इनमें क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक एवं
विस्मयादिबोधक तथा निपात आते हैं।
संज्ञा- किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान या भाव के
नाम को संज्ञा कहते है ‘संज्ञायते अन्या इति संज्ञा’ इसका तात्पर्य यह है कि
संज्ञा से नाम का बोध होता है।
कामता प्रसाद गुरु के अनुसार संज्ञा उस विकारी
शब्द को कहते हैं, जिससे प्रकृति किंवा कल्पित सृष्टि की किसी वस्तु का आम सूचित
हो;
जैसे-घर, आकाश, गंगा,
देवता, अक्षर, बल, जादू इत्यादि।
संज्ञा दो प्रकार की होती है-
(1) पदार्थवाचक:- जिस संज्ञा से किसी पदार्थ या पदार्थों के समूह का बोध होता है उसे पदार्थ वाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे- राम, राजा, घोड़ा, कागज, सभा, भीड़ इत्यादि।
पदार्थवाचक संज्ञा के दो प्रकार हैं-
(I) व्यक्तिवाचक:-जो संज्ञा एं किसी विशेष व्यक्ति
स्थान विशेष या वस्तु विशेष का बोध कराती है उन्हें व्यक्ति वाचक सज्ञा एं कहते
हैं; जैसे- श्याम, दिल्ली, गंगा, ताजमहल, तुलसीदास आदि।
(II) जातिवाचक :- जिन संज्ञाओं से एक जाति के सब
पदार्थों या व्यक्ति यों का बोध होता है, वे जातिवाचक संज्ञा एं कहलाती हैं; जैसे-
मनुष्य, पर्वत, नदी, पुस्तक, कवि, फूल आदि।
(2) भाववाचक :- जिस संज्ञा से किसी एक ही पदार्थ
या पदार्थ के एक ही समूह का बोध होता है, उसे व्यक्ति वाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे-
राम, काशी, गंगा, महामंडल इत्यादि।
संज्ञा के प्रकार, इस प्रकार भी दिए गए हैं-
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा
2. जातिवाचक संज्ञा
3. समूहवाचक संज्ञा
4. द्रव्यवाचक संज्ञा
5. भाववाचक संज्ञा
सर्वनाम - डॉ हजारी प्रसाद दिवेदी के अनुसार के अनुसार- ‘सर्वेशां नामानि इति सर्व नामानि’अर्थात संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त शब्द सर्वनाम होते हैं ।
कामता प्रसाद गुरु के अनुसार- सर्वनाम उस
विकारी शब्द को कहते हैं जो पूर्वा पर संबंध से किसी भी संज्ञा के बदले आता है। इस
प्रकार कह सकते हैं कि संज्ञा के बदले प्रयोग किए जाने वाले शब्दों को सर्वनाम
कहते हैं; जैसे- मैं, तुम, वह, तू, यह, आप, कौन आदि।
सर्वनाम के छः भेद होते हैं -
1. पुरुषवाचक - मैं तू आप
2. निश्चयवाचक - यह वह
3. अनिश्चयवाचक - कोई कुछ क्या
4. प्रश्नवाचक - कौन क्या
5. संबंधवाचक - जों
6. निजवाचक - आप
क्रिया - कामता प्रसाद गुरु- जिस विकारी शब्द
के प्रयोग से हम किसी वस्तु के विषय में कुछ विधान करते हैं, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे- वह गया, रामू बाजार से आया, वह कल जाएगा,
प्यार बुरा होता है। पहले वाक्य में वह के
विषय में गया शब्द के द्वारा विधान किया गया है उसी प्रकार दूसरे वाक्य में आया
तीसरे में जाएगा चौथे में होता है शब्द क्रिया है।
जिस मूल शब्द में विकार होने से क्रिया बनती
है उसे धातु कहते हैं जैसे- ‘गया’ क्रिया में आ प्रत्यय है जो जा मूल शब्द में लगा
है। इसलिए ‘गया’ क्रिया का ‘धातु’ जा है। इसी तरह ‘आया’ क्रिया का धातु ‘आ’, ‘जाएगा’
का ‘जा’, ‘होता है’ का ‘हो’ धातु है।
कर्म के आधार पर धातु के दो प्रकार होते हैं-
सकर्मक और अकर्मक।
1. सकर्मक :- जिस धातु से सूचित होने वाले
व्यापार का फल कर्ता से निकल कर किसी दूसरी वस्तु पर पड़ता है, उसे सकर्मक धातु कहते हैं। जैसे- ‘1.सिपाही चोर को
पकड़ता है, 2.मोहन चिट्ठी लाया। पहले वाक्य में पकड़ता है क्रिया के व्यापार का फल
सिपाही कर्ता से निकल कर चोर पर पड़ता है
इसलिए पकड़ता है क्रिया सकर्मक है। दूसरे वाक्य में क्रिया सकर्मक है
क्योंकि उसका फल मोहन कर्ता से निकलकर चिट्ठी कर्म पर पड़ता है। सब प्रेरणार्थक
क्रियाएँ सकर्मक होती हैं; जैसे –खाना, पीना, देखना, समझना
आदि।
2. अकर्मक :- जिस धातु से सूचित होने वाला
व्यापार और उसका फल कर्ता पर ही पड़े उसे अकर्मक धातु कहते हैं; जैसे- 1.ट्रेन चली,
2.लड़की सोती है। पहले वाक्य में चली क्रिया का व्यापार और उसका फल ट्रेन कर्ता ही
पर पड़ता है, इसलिए चली क्रिया अकर्मक है। दूसरे वाक्य में सोती है क्रिया भी
अकर्मक है,क्योंकि उसका व्यापार और फल लड़की कर्ता पर ही पड़ता है। अकर्मक शब्द का
अर्थ कर्म रहित होता है और कर्म के न होने से क्रिया अकर्मक कहलाती है। कोई-कोई
धातु प्रयोग के अनुसार सकर्मक और अकर्मक दोनों होते हैं; जैसे- खुजलाना, भरना,
लजाना, ललचाना, घबराना आदि। उदाहरण- मेरे हाथ खुजलाते हैं (अकर्मक)। उसका बदन
खुजलाकर उसकी सेवा करने में उसने कोई कसर नहीं की(सकर्मक) ।
रूप के आधार पर क्रिया के प्रकार - मुख्य क्रिया और सहायक क्रिया
मुख्य क्रिया के भी निम्न प्रकार होते हैं -
(1) सरल क्रिया
(2) मिश्र क्रिया
(3) यौगिक क्रिया
(4) संयुक्त क्रिया
विशेषण - जिस विकारी शब्द से संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित होती है उसे विशेषण कहते हैं। –कामता प्रसाद
जैसे- बड़ा, काला, दयालु, भारी, एक, दो आदि
विशेषण के द्वारा जिस संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित होती है उसे विशेष्य कहते हैं;
जैसे – काला कुत्ता वाक्यांश में कुत्ता संज्ञा काला विशेष्य है।
दूसरे शब्दों में जों शब्द संज्ञा या सर्वनाम
की विशेषता बताते हैं (गुण दोष संख्या का बोध कराते हैं)। उन्हें विशेषण कहा जाता
है अंग्रेजी में कहा जाता है “An adjective is a word that qualifies
a noun.” जिन संज्ञा,सर्वनाम की विशेषता
बतलायी जाती है उन्हें विशेष्य कहा जाता है।
वाक्य में प्रयोग की दृष्टि से विशेषण का
प्रयोग दो प्रकार से होता है-
1. विशेष्य
विशेषण 2. विधेय विशेषण
गुण, संख्या और परिणाम के आधार पर विशेषण का
वर्गीकरण इस प्रकार है-
1. सर्वनामिक विशेषण:- जो सर्वनाम, अपने सार्वनामिक रूप में ही संज्ञा के विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें
सार्वनामिक विशेषण कहते हैं; जैसे- कोई व्यक्ति आया है, कौन
जा रहा है।
2. गुणवाचक विशेषण :- जो शब्द किसी व्यक्ति या
वस्तु की संज्ञा के गुण,दोष,रंग,आकार,अवस्था व स्थिति आदि का बोध कराते हैं वे गुणवाचक
विशेषण कहलाते हैं; जैसे- गीला, सूखा, युवा, रोगी, मोटा आदि।
3. परिमाणवाचक विशेषण:- जो शब्द किसी संज्ञा या
सर्वनाम की माप-तौल या मात्रा संबंधी विशेषता का बोध कराते हैं वे परिमाणवाचक
विशेषण कहलाते हैं; जैसे- चार लीटर पेट्रोल, दस मीटर कपड़ा, थोड़ा दूध आदि।
4. संख्यावाचक विशेषण :- जो विशेषण किसी व्यक्ति, प्राणी अथवा वस्तु की संख्या से संबंधित विशेषता का बोध कराते हैं,
उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहते हैं; जैसे- अधिक लड़के, हजारों
लोग, अगणित व्यक्ति आदि।
क्रियाविशेषण - अंग्रेजी में कहा जाता है कि “An adverb is a word that modifies a verb .” जो अव्यय शब्द क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं, वे क्रियाविशेषण कहलाते हैं।
जिस अव्यय से क्रिया की कोई विशेषता जानी जाती
है,
उसे क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे- जल्दी, जल्दी-जल्दी,
धीरे, अभी, बहुत, कम इत्यादि।
अर्थ के अनुसार क्रिया-विशेषण के नीचे लिखे
चार भेद होते हैं-
क्रियाविशेषण क्रिया के काल, स्थान, रीति, और परिणाम की विशेषता बताते हैं, अतः उनके चार भेद हैं-
क्रियाविशेषण का वर्गीकरण इस प्रकार है-
1. स्थानवाचक : स्थितिबोधक, दिशाबोधक, विस्तारबोधक।
2. कालवाचक : समयबोधक, अवधिबोधक, बारम्बारिकताबोधक।
3. परिमाणवाचक : अधिकताबोधक, न्यूनताबोधक,
पर्याप्तिबोधक, तुलनाबोधक, श्रेणीबोधक।
4. रीतिवाचक : प्रकारबोधक ,निश्चयबोधक, अनिश्चयबोधक,
स्वीकृतिबोधक, हेतुबोधक, निषेधबोधक, अवधारणाबोधक, अनुकरणबोधक, आकस्मिकबोधक, प्रश्नबोधक।
संबंधबोधक - जो अव्यय किसी संज्ञा के बाद आकर
उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखता है, उसे संबंधबोधक
कहते हैं, यदि संज्ञा न हो तो अव्यय क्रिया विशेषण कहलाता है। जैसे- 1.धन के बिना
किसी का काम नहीं चलता 2.नौकर गांव तक गया। इन वाक्यों में बिना तक संबंधसूचक हैं।
बिना शब्द धन संज्ञा का संबंध चलता क्रिया से मिलाता है तक गांव का संबंध गया से
मिलाता है।
प्रयोग और व्युत्पत्ति के आधार पर इसके
निम्नलिखित भेद हैं-
प्रयोग के आधार पर-
1. संबद्ध संबंधबोधक
2. अनुबद्ध संबंधबोधक
व्युत्पत्ति के आधार पर-
1. मूल संबंधबोधक
2. यौगिक संबंधबोधक
समुच्चयबोधक - ऐसा पद(अव्यय) जो क्रिया या संज्ञा की विशेषता न बताकर एक वाक्य या पद का संबंध दूसरे वाक्य या पद से जोड़ता है, समुच्चय बोधक कहलाता है। दूसरे शब्दों में दो शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को मिलाने वाले अव्यय योजक या समुच्चयबोधक कहलाते हैं। जैसे- राम और श्याम विद्यालय जाते हैं; इस वाक्य में और शब्द ने राम और श्याम को मिलाया है अतः और शब्द योजक है।
इसके निम्न भेद हैं-
1. संयोजक
2. विभाजक
3. विरोध दर्शक
4. परिमाण दर्शक
विस्मयादिबोधक - जिन अव्ययों का संबंध वाक्य से नहीं रहता, जो वक्ता के केवल हर्ष शोक आदि भाव सूचित करते हैं उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे-हाय ! अब मैं क्या करूँ । अरे! यह क्या कह रहे हो। इन वाक्यों में हाय! दुःख और अरे! आश्चर्य सूचित करता है, जिन वाक्यों में ये शब्द हैं उनसे इनका कोई संबंध नहीं है। भिन्न-भिन्न मनोविकार सूचित करने के लिए भिन्न-भिन्न विस्मयादिबोधक उपयोग में आते हैं। जैसे-
हर्ष बोधक – आहा!
वाह वा! शाबाश! आदि।
शोक बोधक- आह! बाप रे! राम राम! आदि।
आश्चर्य बोधक- वाह! क्या! हैं! आदि।
अनुमोदन बोधक- ठीक! अच्छा! हाँ हाँ! आदि।
कुछ अन्य आधारों पर शब्दों के भेद-
No comments:
Post a Comment