स्वनविज्ञान और स्वनिमविज्ञान में अंतर
(Phonetics
VS Phonology)
स्वनविज्ञान (Phonetics):-
1- इसमें उच्चारण, संवहन एवं श्रवण के आधार पर अध्ययन होता है।
2- यह भाषाविज्ञान की परिधीय शाखा है।
3- इसका संबंध भौतिक ध्वनियों से है।
4- स्वनों का उत्पादन भौतिक प्रक्रिया है।
5- इनका किसी भाषा विशेष से संबंध नहीं होता है।
6- स्वनों की संख्या असीमित होती है।
स्वनिमविज्ञान (Phonemics):-
1- इनका अध्ययन व्यतिरेकी वितरण के आधार पर किया जाता है।
2- यह केन्द्रीय शाखा है।
3- स्वनिमों का उत्पादन मांसिक प्रक्रिया है।
4- यह शाखा विशेष आधारित होता है।
5- इसका संबंध अमूर्त इकाइयों से है
6- इनकी संख्या सीमित होती है।
स्वन (Phone):-
स्वान स्वनिम का वह मूर्त
रूप है जिसके दवरा भाषा व्यवहार किया जाता है।
कोई भी भाषिक ध्वनि स्वन हैं। दुसरे शब्दों में स्वनिमों का
उच्चरित रूप स्वन हैं, अर्थात जब स्वनिम उच्चरित होते हैं तो वही स्वन कहलाते हैं।
स्वनों की संख्या असीमित होती है। स्वन भाषा की सबसे लघुत्तम
इकाई है। जैसे- कमल, लक, लड़का, कुमारी इन शब्दों में जितने भी क, म,
ल, र एवं ड़ हैं, वे सभी अलग-अलग स्वन हैं।
स्वनिम (Phoneme):-
भाषा की सबसे लघुत्तम अर्थभेदक
इकाई स्वनिम है, स्वनिम अमूर्त होते हैं। इनकी संख्या किसी
भी भाषा में सीमित होती है। स्वनिम भाषा की संकल्पनात्मक इकाई
है। इसका संबंध मानव मष्तिस्क से होता है। स्वनिमों को दो स्लैश ‘/ /’ के बीच प्रदर्शित किया जाता है।
जैसे- मन्नू ने महेश को मोर्टार से मारा।
म1 म2
म3 म4 = स्वन
/म/ स्वनिम
संस्वन (Allophone):-
किसी स्वनिम का वह ध्वन्यात्मक
विभेद जो मूल स्वनिम का ही प्रकार्य करता है या किसी शब्द में एक की जगह
दूसरा आने पर उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन नहीं होता है। तो उसे संस्वन कहते हैं।
जैसे- न और ण आपस में संस्वन हैं।
जैसे- डंडा-डण्डा, पांडेय-पाण्डेय आदि।
क-क़, ख-ख़, ग-ग़ आदि।
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