Monday, September 30, 2019

भाषा की परिभाषाएँ और उसकी विशेषताएँ/अभिलक्षण



भाषा की परिभाषाएँ
  • विचार आत्मा की मूल या अध्वन्यात्मक बातचीत है, पर वही जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती है, भाषा है।      -प्लूटो
  • भाषा मनुष्यों के बीच संचार-व्यवहार के माध्यम के रूप में एक प्रतीक व्यवस्था है।       - वेन्द्रे
  • भाषा सीमित और व्यक्त ध्वनियों का नाम है जिन्हें हम अभिव्यक्ति के लिए संगठित करते हैं।      - क्रोचे
  • भाषा यादृच्छिक ध्वनि संकेतों की वह व्यवस्था है जिसके द्वारा सामाजिक समूह के सदस्य परस्पर सहयोग एवं विचार विनिमय करते हैं।         - स्त्रुतेवा 
  • ध्वनात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है।         - स्वीट
  • Language may be defined as an arbitrary system of vocal symbols by means of which humans interact and communicate"      - इन साइक्लोपीडिया ब्रिटानिया
  • A language is a system of arbitrary vocal system by means of which a society group cooperates.            -ब्लाक तथा ट्रेगर
  • मनुष्य ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा अपना विचार प्रकट करता है, मानव मस्तिष्क वस्तुतः विचार प्रकट करने के लिए ऐसे शब्दों का निरंतर उपयोग करता है।        - जेस्परसन
  • ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा हृदयगत भावों तथा विचारों का प्रकटीकरण ही भाषा है।   -पी. डी. गुणे
  • अर्थवान कंठोद गीर्ण ध्वनि-समष्टि भाषा है।     - सुकुमार सेन
  • जिन ध्वनि चिन्हों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता हैउनको समष्टि रूप से भाषा कहते हैं।      - बाबूराम सक्सेना
  • Language is system. (भाषा एक व्यवस्था है)      -ससयूर
  • Language is a form or habits. (भाषा एक रूप/आदत है)      -ब्लूमफील्ड
  • Language is a rule governed activities. (भाषा नियम शासित गतिविधि है)       -चोम्स्की
  • मानव समुदाय द्वारा उच्चरित स्वन संकेतों की वह यादृच्छिक प्रतिकात्मक व्यवस्था भाषा है, जिसके द्वारा विचारात्मक स्तर पर मानव समुदाय विशेष परस्पर संपर्क स्थापित करता है।      - प्रो. राजमणि शर्मा
  • भाषा उच्चारण अवयवों से उच्चरित प्रायः यादृच्छिक ध्वनि-प्रतिकों की वह व्यवस्था है, जिसके द्वारा किसी भाषा समाज के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।     -भोलानाथ तिवारी



भाषा की विशेषताएँ/अभिलक्षण :
1.      संरचना द्वित्व / द्वैतता (duality of structure) : यह अभिलक्षण यह बताता है कि मानव भाषा एक साथ दो अभिरचनाओं की सिद्धि का परिणाम है जिसमें पहली अभिरचना 'विचार सिद्धि' की न्यूनतम इकाइयों का परिणाम होती है और दूसरी अभिरचना 'प्रभेदन सिद्धि की इकाइयों' का।


2.       यादृच्छिकता (arbitrariness) : इस अभिलक्षण के अनुसार, भाषाओं में प्रयुक्त सभी संकेत यादृच्छिक होते हैं, इसलिए सभी भाषाओं के संकेत एक-दूसरे से अलग होते हैं ।
3.       विस्थापन (displacement) : इस अभिलक्षण का परिणाम है कि हम भूतकाल और भविष्यकाल की संरचनाएं पाते हैं। यह मानव भाषा का ही सामर्थ्य है कि वह एक ओर विगत घटनाओं पर विचार कर सकती है और दूसरी ओर भविष्य की संभावित घटनाओं की कल्पना भी।
4.       अंतर्विनिमयता/ व्यतिहारिता (interchangeability): इस अभिलक्षण के अनुसार, वक्ता और श्रोता के बीच बातचीत के दौरान जो एक समय वक्ता है वह दूसरे समय पर श्रोता की भूमिका में और जो श्रोता है वह वक्ता की भूमिका में होता है।
5.      विविक्तता (discreteness) :  जब हम भाषा की प्रकृति के संदर्भ में किसी वाक्य पर ध्यान देते हैं तो उसे 'शब्दों में' शब्दों को 'स्वनिमों में' खंडित/विच्छिन्न पाते हैं, इनके मेल से बोले गए किसी वाक्य में उच्चरित पहली ध्वनि से लेकर अंतिम ध्वनि तक किसी स्तर पर कोई विराम की स्थिति नहीं मिलती है। यह अभिलक्षण भाषा के इसी अविरल प्रवाह को विच्छिन्न इकाइयों के संचित कोष के रूप में देखने की ओर संकेत करता है। 
6.      उत्पादकता (productivity) : मानवीय भाषा में यह सामर्थ्य है कि वह संघटनात्मक ऐसे वाक्यों की भी रचना कर सकती है जिसे वक्ता और श्रोता ने उससे पूर्व न कहा हो न सुना हो। 
7.      सांस्कृतिक हस्तांतरण (cultural transmission) :  इस अभिलक्षण का महत्व यह है कि मानवीय ज्ञान संग्रहीत होता रहता है जिससे भावी पीढ़ी को नए ढंग से शून्य से ज्ञान वृद्धि करते हुए नया वाड्मय नहीं तैयार करना पड़ता, अपितु पूर्वजों के ज्ञान का लाभ उठाते हुए शीघ्र ज्ञान वृद्धि का अवसर मिलता है। 
8.       सृजनात्मकता / सर्जनात्मकता (Creativity) : भाषा का संबंध मानव मन से होता है और मन अपनी प्रकृति में सर्जनात्मक है । इस अभिलक्षण के कारण ही मनुष्य नए वाक्यों को बोलने और उन्हें समझने में सक्षम है।
9.      पुनरावर्तिता/ परिवर्तनशीलता (changeability) : भाषा परिवर्तनशील हुआ करती है वाह्य कारणों के प्रभाव से परिवर्तन की गति कम या अधिक हो सकती है मगर होना अनिवार्य है। यदि परिवर्तन नहीं होता तो किसी भी प्राचीन भाषा को समझने में कोई कठिनाई नहीं होती।   
10.   अनुकरणात्मक(Imitative) : अरस्तू ने अनुकरण को समस्त कलाओं का मूल माना है, भाषा का अर्जन अनुकरण और व्यवहार से होता है। बालक अपने माता, पिता, आदि से जिन ध्वनियों को जिस तरह सुनता है वह वैसा ही उच्चारण करने का प्रयत्न करता है।
11.   सामाजिकता(Sociability) : भाषा सामाजिक वस्तु है क्योंकि भाषा का विकास, अर्जन और प्रयोग तीनों ही समाज में होते हैं। ध्वनि उत्पादन की क्षमता मनुष्य में जन्मजात होती है किंतु उसके प्रयोग का अवसर समाज ही प्रदान करता है।
12.   विशेषीकरण (specialization) : इस अभिलक्षण के अनुसार, कोई व्यक्ति भाषा में इतना निपुण हो जाता है कि वह किसी अन्य कार्य को करते हुए भी भाषा का प्रयोग सामान्यतः करता रहता है।
13.   मौखिक-श्रव्य सरणि( vocal auditory channel) : इस अभिलक्षण के अनुसार, भाषा मूलतः मौखिक होती है, किसी संकेत या संदेश को भेजने वाला संदेश को मुख से उच्चरित करता है और उसको पानेवाला उसे कान से सुनता है।
14.   अधिगमता (Learneability) : मानव भाषा अधिगम प्रक्रिया की परिणाम होती है, मानव मन की संरचना और प्रकृति इस प्रकार की है कि वह एक से अधिक भाषाएँ सीखने में समर्थ है।

संदर्भ सूची :  
  • डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव : भाषा शिक्षण
  • डॉ. कपिलदेव द्विवेदी : भाषा-विज्ञान एवं भाषा शास्त्र 
  • डॉ. त्रिलोचन पाण्डेय : भाषा विज्ञान के सिद्धांत 
  • डॉ. हरिवंश तरुण : मानक हिंदी व्याकरण और रचना 






1 comment:

  1. भाषा परिवर्तनशीलता के कारण

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