उपादान प्रकार्य
वक्ता - अभिव्यक्तिपरक(संवेगात्मक): Emotive(Expressive)
श्रोता - निर्देशपरक(निर्देशात्मक): Cognitive(Receiver)
संदर्भ - संकेतपरक(संदर्भपरक): Referential(Context)
संदेश - काव्यपरक(काव्यात्मक): Poetic(Message)
कोड - तर्कपरक(अधिभाषात्मक): Metalingual(Metalinguistic & Reflexive)
सरणि - संपर्कपरक(संबंधात्मक): Phatic(Contact/Channel)- Hello, OK, Bye
- संप्रेषण प्रक्रिया के अंतर्गत एक ओर वक्ता होता है जो संदेश भेजता है और दूसरी ओर श्रोता रहता है जो इस संदेश को ग्रहण करता है। वक्ता और श्रोता के इस संदेश की पृष्टभूमि में कोड रहता है। वक्ता अपने काव्य को संदेश का रूप देने के लिए इस कोड का सहारा लेता है । काव्य को संदेश रूप में बांधने की प्रक्रिया को कोडीकरण कहा जाता है। संदेश में निहित कथ्य को पाने की प्रक्रिया को विकोडीकरण कहा जाता है। संदेश का एक संदर्भ होता है। संदेश के प्रेषण के लिए वक्ता और श्रोता के बीच एक सरणि होती है। सरणि वस्तुतः वक्ता और श्रोता के बीच संबंध स्थापन हेतु होता है।
भाषा का
प्रकार्यात्मक अध्ययन प्राग स्कूल (प्राग संप्रदाय) की देन है, जिसमें कार्य करने वाले भाषावैज्ञानिक ‘रोमन याकोब्सन’ और’
मार्टिने कर’ हैं। उन्हें प्रकार्यवादी भी कहा जाता है ।
इन्होंने भाषा के
छः प्रकार्य माने हैं -
(1) वक्ता / अभिव्यक्तिपरक
:संवेगात्मक (Emotive)= यह भाषा के उस व्यवहार से संबंधित
है जो विषय वस्तु के प्रति वक्ता के अपने दृष्टिकोण या भाव को व्यक्त करता है
विस्मयादिबोधक शब्द या भाषिक अभिव्यक्ति इसके अनर्गत आते हैं ।
(2) श्रोता / निर्देशपरक
:निर्देशात्मक (Cognitive)= इसका संबंध श्रोता के साथ बंधा
होता है व्याकरणिक संरचना की दृष्टि से संबोधनवाचक,
प्रश्नवाचक, आज्ञासूचक व अनुरोध अभिव्यक्तियाँ इसके अंतर्गत
आती हैं।
(3) संदर्भ / संकेतपरक
:संदर्भपरक (Referential)= इसका संबंध विषय वस्तु के साथ रहता
है। इस भाषिक प्रकार्य के आधार पर प्राप्त सूचना वाह्य ज्ञान के संदर्भ में सच या
झूठ हो सकती है; उदाहरण के लिए उपन्यास या महाकाव्य आदि।
(4) संदेश /
काव्यपरक :काव्यात्मक (Poetic)= इसका संबंध स्वयं संदेश की ओर मुड़ा
हुआ होने के कारण अभिव्यक्ति की शैलीगत विशेषताओं से जुड़ा होता है। साहित्यिक रचना
की दृष्टि से छंद, तुक, लय अथवा
लाक्षणिक और व्यंजनापरक प्रयोग इसके उदाहरण हैं।
(5) सरणि / संपर्कपरक
:संबंधात्मक (Phatic)= इसका संबंध वक्ता और श्रोता के बीच
भौतिक या मांसिक संबंधों की वह सरणि बनाता है जिसका सहारा लेकर वे संप्रेषण
व्यापार में बनें रहते हैं; जैसे- हेलो, हूँ, हाँ।
(6) कोड / तर्कपरक
:अधिभाषात्मक (Metalinguistic)= इसे वैज्ञानिक या तर्कशास्त्री किसी विषय
वस्तु विवेचना के समय उपकरण के रूप में अपनाता है। इस प्रकार का प्रयोग हम सामान्य
भाषा में भी करते हैं- जब हम पूछते हैं इसका क्या अर्थ है?
जो मैं कहना चाहता हूँ क्या तुम समझ गए?
संदर्भ सूची :
- डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव : भाषा शिक्षण
- https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF
- http://prayaslt.blogspot.com/2010/03/blog-post_2341.html
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