एफ. डी. सस्यूर (Ferdinand
de Saussure) :-
फर्डिनांद द सस्यूर (Ferdinand de
Saussure) को आधुनिक
भाषाविज्ञान के जनक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म सन्
1857 ई. में जेनेवा में हुआ था। इनके
पिता एक प्रसिद्ध प्राकृतिक वैज्ञानिक थे। इसलिए उनकी प्रबल इच्छा थी कि सस्यूर भी
इस क्षेत्र में अपना अध्ययन-कार्य करें। परंतु सस्यूर की रुचि भाषा सीखने की ओर
अधिक थी। यही कारण था कि जेनेवा विश्वविद्यालय में सन् 1875 ई. में भौतिकशास्त्र
और रसायनशास्त्र में प्रवेश पाने के पूर्व ही वे ग्रीक भाषा के साथ-साथ फ्रेंच, जर्मन, अंग्रेजी और लैटिन भाषाओं से परिचित हो चुके थे तथा पंद्रह
वर्ष की आयु में सन् 1872 ई. में “भाषाओं की सामान्य व्यवस्था” नामक लेख लिख चुके
थे। इनका दूसरा आधार स्तंभ डॉक्टरेट की उपाधि के लिए प्रस्तुत शोध-प्रबंध था। उनके
शोध का विषय “संस्कृत भाषा में संबंधकारक की प्रकृति और प्रयोग” था।
जेनेवा विश्वविद्यालय में सन् 1907 ई. में उन्हें सामान्य
भाषाविज्ञान के अध्यापन का अवसर प्राप्त हुआ। एक वर्ष के अंतराल पर उनहोंने इस
विषय में सन् 1907, 1909 एवं 1911 में
तीन बार अध्ययन-अध्यापन कार्य किया। यह व्याख्यान माला ही उनकी पुस्तक का आधार बनी, जिसे उनके दो प्रबुद्ध सहयोगियों बेली और सेचहावे ने सन्
1913 ई. में ‘कोर्स ऑफ लिंग्विस्टिक’ नामक जर्नल में संपादित किया। सस्यूर के नोट्स न के बराबर थी, न ही सस्यूर ने अपने जीवन में किताब लिखी। फरवरी 1913 ई. में 53 वर्ष की अल्पावस्था में सस्यूर की मृत्यु हो गई।
सस्यूर द्वारा दिए गए भाषा संबंधी नवीन अवधारणाएँ-
1- संकेत (Sign), संकेतक
(Signifier), संकेतित
(Signified)
2- विन्यासक्रमी संबंध (Suntagmatic), सहचार्यक्रमी संबंध (Paridigmatic)
3- लॉग (Lounge), परोल (Parole)
4- एककालिक (Synchronic) अनेककालिक
(Diachronic)
5- संकेत/प्रतीक - विज्ञान (Semiology)
Ø संकेत और संकेत के संबंधों की अवधारणा– एक शब्द से दूसरे शब्दों का संबंध
(वाक्यविन्यास)
Ø संकेत और बाहरी दुनिया– कम्प्युटर (Computer), सेलफोन (Cell-phone), अर्थविज्ञान (Semantics)
Ø संकेत और संकेत के प्रयोक्ता का संबंध- संकेतप्रयोगविज्ञान
(प्रयोक्ता के ऊपर आधारित)
Ø भाषाविज्ञान- भाषा का अध्ययन
- https://hi.unionpedia.org/i/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
- https://lgandlt.blogspot.com/2018/03/1857-1913.html
एवरम नोम चाम्सकी (हीब्रू) (जन्म 7 दिसंबर, 1928) एक प्रमुख भाषावैज्ञानिक, दार्शनिक, राजनैतिक एक्टीविस्ट, लेखक एवं व्याख्याता हैं। संप्रति वे ‘मसाचुएटस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालजी’ के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर हैं।
चाम्सकी को ‘जेनेरेटिव ग्रामर’ के सिद्धांत का प्रतिपादक
एवं बीसवीं सदी के भाषाविज्ञान में सबसे बड़ा योगदानकर्ता, माना जाता है। उन्होंने जब मनोविज्ञान के ख्यातिप्राप्त
वैज्ञानिक बी एफ स्कीनर के पुस्तक ‘वर्बल बिहेवियर’ की आलोचना लिखी, जिसमें 1950 के दशक में व्यापक स्वीकृति प्राप्त व्यवहारवाद
के सिद्दांत को चुनौती दी, तो इससे ‘काग्नीटिव मनोविज्ञान’ में एक तरह की क्रांति का सूत्रपात हुआ, जिससे न सिर्फ़ मनोविज्ञान का अध्ययन एवं शोध प्रभावित हुआ
बल्कि भाषाविज्ञान, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र जैसे कई क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन आया। चाम्सकी का जन्म अमरीका में फिलाडेल्फिया प्रांत के इस्ट ओक
लेन में हुआ था। उनके पिता यूक्रेन में
जन्मे श्री विलियम चामस्की (1896-1977) थे जो हीब्रू के शिक्षक एवं
विद्वान थे। उनकी माता एल्सी नाम्सकी
(शादी से पूर्व सिमनाफ्सकी) बेलारूस से थीं।
फिलाडेल्फिया के सेंट्रल हाई-स्कूल से 1945 में पास करने के
बाद चाम्सकी ने पेंसिलवानिया विश्वविद्यालय
में दर्शनशास्त्र एवं भाषाविज्ञान का अध्यन शुरु किया। यहाँ भाषावैज्ञानिक जेलिंग
हैरिस, एवं दार्शनिक वेस्ट
चर्चमैन तथा नेल्सन गुडमैन जैसे उदभट विद्वान उनके गुरु थे। चाम्सकी ने अपने
भाषावैज्ञानिक गुरु श्री हैरिस से उनके
द्वारा प्रतिपादित प्रजनक भाषाविज्ञान के ट्रांसफार्मेशन
सिद्धांत को सीखा। चाम्सकी को पेंसिलवानिया
विश्वविद्यालय से 1955 में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई। उन्होंने
अपने शोध का काफी महत्वपूर्ण हिस्सा हार्वड
विश्वविद्यालय से हार्वड जूनियर फेलो के रूप में पूरा किया था। उनके
डाक्टरेट उपाधि के लिए किया गया शोध बाद में पुस्तकाकार रूप में 1957 में ‘सिंटैक्टिक स्ट्रक्चर्स’ सामने आया। जिसे उस समय तक की श्रेष्ठ पुस्तकों में शुमार
किया गया। फरवरी 1967 में उनका लेख ‘द रिस्पांसिबिलीटी ऑफ इंटेलेक्चुअल्स’ प्रकाशित हुआ।
चाम्सकीय भाषाविज्ञान की शुरुआत उनकी पुस्तक सिंटैक्टिक स्ट्रक्चर्स से हुई मानी जा सकती है
जो उनके पीएचडी के शोध, लाजिकल
स्ट्रक्चर ऑफ लिंग्विस्टिक थीयरी (1955,
75) का परिमार्जित रूप था। इस पुस्तक के
द्वारा चाम्सकी ने पूर्व स्थापित संरचनावादी भाषावैज्ञानिकों की मान्यताओं को
चुनौती देकर ट्रांसफार्मेशनल ग्रामर की
बुनियाद रखी। इस व्याकरण ने स्थापित किया कि शब्दों के समुच्चय का अपना व्याकरण
होता है, जिसे औपचारिक
व्याकरण द्वारा निरुपित किया जा सकता है और खासकर सन्दर्भमुक्त व्याकरण द्वारा
जिसे ट्रांसफार्मेशन के नियमों द्वारा व्याख्यित किया जा सकता है।
उन्होंने माना कि प्रत्येक मानव शिशु में व्याकरण की
संरचनाओं का एक अंतर्निहित एवं जन्मजात (आनुवांशिक रूप से) खाका होता है जिसे ‘सार्वभौम व्याकरण’ की संज्ञा दी गयी।
- https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%86%E0%A4%AE_%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A5%80
- http://celebrity.astrosage.com/about-noam-chomsky-who-is-noam-chomsky.asp
- https://www.know.cf/enciclopedia/hi/%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%86%E0%A4%AE_%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A5%80
शिकागो में जन्में (1887-1949) लियोनार्डो ब्लूमफील्ड पढने में सामान्य थे। स्नातकीय शिक्षा
के लिए ब्लूमफील्ड ने ‘विस्कॉन्सिन
वश्वविद्यालय’ में
प्रवेश लिया और वहां जर्मन भाषा के विद्वान और भाषा विज्ञान के प्राध्यापक प्रोकोश (E.Prokosh) से उनकी भेंट हुई। उन्हीं के प्रभाव से ब्लूमफील्ड की
संसक्ति भाषाविज्ञान से हुई। यों तो इन्होंने भाषा विश्लेषण की बड़ी प्रभावी
पद्धति का सूत्रपात किया किंतु इनकी भाषाविज्ञान के क्षेत्र में जो सबसे बड़ी देन
है, वह है भाषा के अध्ययन को वैज्ञानिक आधार देना। बर्नड ब्लॉक के शब्दों में - "इसमें किंचित
भी संदेह नहीं कि ब्लूमफील्ड का सर्वोच्च योगदान यह था कि उन्होंने भाषिक अध्ययन
को विज्ञान बना दिया।''
वस्तुत: ब्लूमफील्ड उन अमेरिकी वैज्ञानिकों की परम्परा के शिखर पुरुष हैं जो नृतत्व विज्ञान की नयी धारा के संदर्भ में अज्ञात संस्कृतियों और भाषाओं के अध्ययन के लिए एक
नयी पद्धति की खोज में थे। मनोविज्ञान का व्यवहारवाद और दर्शन का प्रत्यक्षवाद इस
नये अध्ययन का आधार बना ।जो प्रत्यक्षत: सामने है, उसी को अध्ययन का आधार मानना तथा उसी के संदर्भ में वर्णन
प्रस्तुत करना इस पद्धति का लक्ष्य है।
इस मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक आधार पर भाषाओं और समाजविज्ञान आदि क्षेत्रों
में अध्ययन की एक नयी शाखा खुली जो प्रत्यक्ष तथ्यों का ही विश्लेषण करती है और प्राप्त
सामग्री के आधार पर वर्णन प्रस्तुत करती है। ब्लूमफील्ड इसी वर्णनात्मक भाषाविज्ञान की शाखा के प्रमुख सिद्धांतकार
हैं।
ब्लूमफील्ड की पहली पुस्तक "भाषा के
अध्ययन की भूमिका'
(an introduction to the study of language) सन् 1914 में प्रकाशित हुई। सन् 1933
में इन्होंने बहुचर्चित "भाषा'’(language) नामक पुस्तक का प्रणयन किया ।"लैंग्विज'’ पुस्तक को तो विद्वाने ने भाषाविज्ञान
की बाइबिल का दर्जा दिया है।
''Writing
is not language but merely a way of recording language by means of visible
marks''
- Language, page 21
फिल्मोर का जन्म सन् 1929 ई. में हुआ था जो कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बेर्किले में भाषाविज्ञान विभाग में
प्रोफेसर थे। इन्होंने सन् 1961
ई. में ‘मिशिगन
विश्वविद्यालय’ से पी-एच.डी की उपाधि ग्रहण की।
फिल्मोर का प्रभावशाली कार्यक्षेत्र वाक्य-विन्यास (Syntax) और कोशीय अर्थविज्ञान (Lexical
Semantics) रहा है। इन्होंने
अपना शोध मुख्यतः वाक्य-विन्यास और कोशीय अर्थविज्ञान के प्रश्नों पर केन्द्रित
किया तथा अर्थ के भाषिक रूप एवं पदार्थ व इसके प्रयोग के बीच के परस्पर संबंधों पर
बल दिया। इनका वर्तमान कार्य कंप्युटेशनल कोशनिर्माण क्षेत्र से संबंधित
विभिन्न परियोजनाओं पर है जिसमें एक प्रमुख परियोजना “बंध जाल” (Frame Net) नाम से प्रसिद्ध है जो अंग्रेजी शब्द-संग्रह (Lexicon)
का एक विस्तृत ऑनलाईन विवरण है।
अपने जीवनकाल में भाषाविज्ञान और कंप्युटेशनल भाषाविज्ञान पर
दिए गए इनके मौलिक विचारों का संग्रह निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत है :-
“The
Case for Case” (1968).
“Frame
semantics and the nature of language” (1976)
“Frame
semantics” (1982). In Linguistics in
the Morning Calm.
“Starting
where the dictionaries stop: The challenge for computational lexicography.” (1994). .
Lectures
on deixis (1997).
“Towards
a frame-based lexicon: the case of risk”
“Corous
linguistics” vs “Computer-aided armchair linguistics.” Directions in corpus.
Linguistics. 1992
“Humor
in academic discourse.” Its What going on Here?
इस प्रकार यह देखा जाता है कि फिल्मोर ने मात्र भाषा के संरचनात्मक पक्ष पर ही बल नहीं दिया अपितु
संरचना की व्यवस्था से प्रस्तुत अर्थ पर भी बल
दिया जिससे भाषाविज्ञान के अध्ययन में नया अयाम जुड़ा।
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