Sunday, January 12, 2020

राष्ट्रीय युवा दिवस और स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानन्द(जन्म: 12 जनवरी, 1863 (१८६३) )- वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। विवेकानंद का वक्त सन 1857 की नाकाम क्रांति के बाद का अंधेरा दौर है। अंग्रेज़ों की देश पर पकड़ मज़बूत हो चुकी थी और भारत को लूटने का उनका अभियान पूरे ज़ोरों पर था। देश में ग़रीबीपस्ती और पराजय का माहौल था। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 (१८९३) में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें 2 मिनट का समय दिया गया था लेकिन उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनो" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। विवेकानंद जी के जन्मदिन को ही राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

हम सभी जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद एक शक्तिशाली वक्ता थे। उनके भाषणों में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने की ताकत थी। क्या उनकी सफलता का कोई राज़ था? हाँ, उनके जीवन के इन सुन्दर 11 प्रेरणादायक संदेशों को अपना कर आप भी सफल हो सकते हैं।

(1) प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है:-
वह जो प्रेम करता है, जीवित रहता है और वह जो स्वार्थी है, मर रहा है। इसलिए प्रेम के लिए ही प्यार कीजिए, क्योंकि यह जीवन का नियम है। ठीक उसी तरह, जैसे आप जिन्दा रहने के लिए सांस लेते हैं।
(2) जीवन सुंदर है: पहले, इस दुनिया में विश्वास करें-
विश्वास करें कि यहाँ जो कुछ भी है उसके पीछे कोई अर्थ छुपा हुआ है। दुनिया में सब कुछ अच्छा है, पवित्र है और सुंदर भी है। यदि आप, कुछ बुरा देखते हो तब इसका मतलब है आप इसे पूर्ण रूप से समझ नहीं पाएं हैं। आप अपने ऊपर का सारा बोझ उतार फेंके।
(3) आप कैसा महसूस करतें हैं-
आप मसीह की तरह महसूस करें तो आप मसीह जैसा बनेंगें, आप बुद्ध की तरह महसूस करें तो आप बुद्ध जैसा बनेंगें। विचार ही जीवन है, यह शक्ति है और इसके बिना कोई बौद्धिक गतिविधि भगवान तक नहीं पहुँच सकती है।
(4) अपने आप को मुक्त करें-
जिस क्षण मैं यह अहसास करता हूँ कि भगवान् हर मानव शरीर के अन्दर है। उस पल में जिस किसी भी मनुष्य के सामने खड़ा होता हूँ तो मैं उसमें भगवान् पाता हूँ, उस पल में मैं बंधन से मुक्त हो जाता हूँ और सारे बंधन अद्रश्य हो जाते हैं और मैं मुक्त हो जाता हूँ।
(5) निंदा दोष का खेल मत खेलिए-
किसी पर भी आरोप, प्रति आरोप न करें। आप किसी की मदद के लिए हाथ बड़ा सकते हैं तो ऐसा अवश्य करें और उन्हें अपने-अपने रास्ते पर चलने दें।
(6) दूसरे की मदद करें-
यदि धन दूसरों के लिए अच्छा करने के लिए एक आदमी को मदद करता है, या कुछ मूल्य का है, लेकिन अगर नहीं, तो यह केवल बुराई की जड़ है, और जितनी जल्दी इससे छुटकारा मिल जाए, उतना अच्छा है।
(7) अपनी आत्मा को सुनो-
तुम अंदर से बाहर की ओर बढो। यह कोई तुम्हें सिखा नहीं सकता है, न ही कोई तुम्हें आध्यात्मिक बना सकता है। वहाँ कोई अन्य शिक्षक नहीं है, जो कुछ भी है आपकी खुद की आत्मा है।
(8) कुछ भी असंभव नहीं है-
ये कभी भी मत सोचो कि आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा पाखण्ड है। यदि कोई पाप है, तो केवल यही पाप है- कि तुम कहते हो, तुम कमजोर हो या दूसरे कमजोर हैं।
(9) तुम में शक्ति है-
ब्रह्मांड में सभी शक्तियां पहले से ही हमारी हैं। यह हम हैं जो अपनी आंखों को हाथों से ढँक लेते हैं और बोलते हैं कि यहाँ अँधेरा है।
(10) सच्चे रहो-
सब कुछ सच के लिए बलिदान किया जा सकता है, लेकिन सत्य, सब कुछ के लिए बलिदान नहीं किया जा सकता है।
(11) अलग सोचो-
दुनिया में सारे मतभेद उनको विभिन्न नज़रिए से देखने की वज़ह से हैं, कहने का अर्थ हमें अपनी अनुभूतियों के कारण सब कुछ अलग-अलग दिखता है परन्तु सच में सारा कुछ एक में ही समाया हुआ है।

विवेकानंद को बहुत कम उम्र मिली। कुल 38 वर्ष। उनकी मृत्यु: ४ जुलाई, 1902 (१९०२) को हुई थी। वे देखने में बहुत मज़बूत कदकाठी के लगते थे लेकिन, जीवन के कष्टों ने उनके शरीर को जर्जर कर दिया था। उन्हें कम उम्र में ही मधुमेह हो गया था जिसने उनके गुर्दे ख़राब कर दिए थे। उन्हें सांस की भी बीमारी थी। इन्हीं बीमारियों ने उनकी असमय जान ली। बीमारियां, आर्थिक अभाव, उपेक्षा और अपमान झेलते हुए वे लगातार गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए अथक मेहनत करते रहे।

संदर्भ सूची:

No comments:

Post a Comment