Wednesday, November 13, 2019

प्रोग्राम, प्रोग्रामिंग, प्रोग्रामिंग भाषा, एल्गोरिदम एवं फ़्लोचार्ट का संक्षिप्त परिचय


प्रोग्राम क्या है : 
1- किसी विशेष कार्य को संपन्न करने के लिए चरणबद्ध तरीके से दिया गया निर्देश जो उस कार्य का सही-सही आउटपुट दे/ प्रदर्शित करे प्रोग्राम है।


2- किसी उद्देश्य विशेष को प्रपट करने के लिए मशीन को क्रमबद्ध चरणों में दिए गए निर्देशों का समूह प्रोग्राम है।
  • उद्देश्य विशेष
  • मशीन 
  • क्रमबद्ध 
  • चरण 
  • निर्देश 
  • समूह।


प्रोग्रामिंग क्या है :
सामान्य जीवन में हम किसी कार्य विशेष को करने का निश्चय करते हैं तो उस कार्य को करने से पूर्व उसकी रूपरेखा सुनिश्चित की जाती है। कार्य से सम्बन्धित समस्त आवश्यक शर्तों का अनुपालन उचित प्रकार हो एवं कार्य में आने वाली बाधाओं पर विचार कर उनको दूर करने की प्रक्रिया भी रूप रेखा तैयार करते समय महत्वपूर्ण विचारणीय विषय होते हैं। कार्य के प्रारम्भ होने से कार्य के सम्पन्न होने तक के एक-एक चरण (step) पर पुनर्विचार करके रूपरेखा को अन्तिम रूप देकर उस कार्य विशेष को सम्पन्न किया जाता है। इसी प्रकार कम्प्यूटर द्वारा, उसकी क्षमता के अनुसार, वांछित कार्य कराये जा सकते हैं। इसके लिए आवश्यकता है कम्प्यूटर को एक निश्चित तकनीक व क्रम में निर्देश दिए जाने की, ताकि कम्प्यूटर द्वारा इन निर्देशों का अनुपालन कराकर वांछित कार्य को सम्पन्न किया जा सके। सामान्य बोल-चाल की भाषा में इसे प्रोग्रामिंग कहा जाता है ।
Instruct the computer”: this basically means that you provide the computer a set of instructions that are written in a language that the computer can understand. The instructions could be of various types.
Programming is coding, modeling, simulating or presenting the solution to a problem, by representing facts, data or information using pre-defined rules and semantics, on a computer or any other device for automation.
स्यूडोकोड : किसी प्रोग्राम को बनाया हुआ वह कोड जो किसी भाषा विशेष को ध्यान में रखकर न लिखा गया हो ।
प्रोग्रामिंग भाषा –
  • एक कृत्रिम भाषा होती है, जिसकी डिजाइन इस प्रकार की जाती है कि वह किसी काम के लिये आवश्यक विभिन्न संगणनाओ (computations) को अभिव्यक्त कर सके। प्रोग्रामिंग भाषाओं का प्रयोग विशेषतः संगणकों के साथ किया जाता है (किन्तु अन्य मशीनों पर भी प्रोग्रामिंग भाषाओं का उपयोग होता है)। प्रोग्रामिंग भाषाओं का प्रयोग हम प्रोग्राम लिखने के लिये, कलन विधियों को सही रूप व्यक्त करने के लिए, या मानव संचार के एक साधन के रूप में भी कर सकते हैं।
  • इस समय लगभग 2,500 प्रोग्रामिंग भाषाएं मौजूद हैं। पास्कल, बेसिक, फोर्ट्रान, सी, सी++, जावा, जावास्क्रिप्ट, पायथन, लिस्प आदि कुछ प्रोग्रामिंग भाषाएं हैं। 
  • प्रोग्रामिंग भाषा एक ऐसी भाषा जिसके माध्यम से कम्प्युटर को निर्देश दिए जाते हैं और प्रोग्रामों का विकास किया जाता है।

प्रोग्रामिंग भाषा के प्रकार –
(1) Procedural programming language एक ऐसी programming भाषाएँ हैं जिनके चरणों की शृंखला बनाते हुए प्रोग्राम निर्मित किए जाते हैं-
  • चरणों की शृंखला बनाना।
  • इसमें कथनों, आदेशों और प्रकार्यों का व्यवस्थित क्रम आवश्यक होता है।


Exa- C Language, C# Language etc.
(2) Functional programming languageऐसी programming भाषाएँ जिनमें प्रक्रिया के बजाय प्रकार्य को केंद्र में रखा जाता है, इसमें स्थिति में परिवर्तन पर ध्यान देने की जगह गणितीय प्रकार्यों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इनका प्रयोग अधिकतर व्यावसायिक (Commarcial) अनुप्रयोगों (Applications) में किया जाता है।
(3) Object oriented programming language – वह programming भाषा है जिसमें object को केंद्र में रखा जाता है।


एल्गोरिदम- किसी विशेष कार्य को सम्पन्न करने के लिए बनाए जाने वाले प्रोग्राम में दिए जाने वाले निर्देशों का मानव भाषा में क्रमबद्ध और संक्षिप्त संकलन एल्गोरिदम है । दूसरी भाषा में हम कह सकते हैं कि किसी कार्य विशेष को इस प्रकार से विश्लेषित करना कि वह कम्प्युटर के लिए ग्राह्य बन सके और कम्प्युटर उपलब्ध डेटा को प्रोग्राम में लेकर कार्य विशेष की समस्याओं का उचित हल प्रस्तुत कर सके।
दो सख्याओं में बड़ी संख्या का एल्गोरिदम :
Step1 = Start
Step2 = int a, b
Step3 =if a>b (if ‘true’ Go to ‘step4’, if ‘false’ Go to ‘step5’)
Step4 = Show a
Step5 = Show b
Step6 = Stop
फ़्लोचार्ट-  क्रमदर्शी आरेख या प्रवाह तालिका, वस्तुतः कालविधि का चित्रात्मक प्रदर्शन है। इसमें विभिन्न रेखाओं एवं आकृतियों का प्रयोग किया जाता है जो कि विभिन्न प्रकार के निर्देशों के लिए प्रयोग कि जाती है।


Thursday, October 10, 2019

भाषा के विविध रूप


मूल भाषा (Original Language): ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर विश्व की प्रत्येक भाषा का आधार कोई न कोई मूल भाषा मानी गई है भारोपीय मूल भाषा की कल्पना है इसका आधार यह माना गया है कि भारत और यूरोप के व्यक्ति मूल रूप से किसी एक स्थान पर रहते थे, बाद में वे इधर-उधर बिखरे। उनकी मूल भाष इसी विस्तार के साथ ही अनेक रूपों में आयी।
परिनिष्ठित या परिष्कृत भाषा (Standard Language): इसे स्तरीय, आदर्श या टकसाली भाषा भी कहते हैं। यह भाषा व्याकरण की दृष्टि से परिष्कृत होती है भाषा का व्याकरण इसी के आधार पर बनाया जाता है। साहित्यिक रचनाएँ, शासन, शिक्षा व शिक्षित वर्ग में इसका ही प्रयोग किया जाता है जैसे- हिंदी, फ्रेंच, अंग्रेजी आदि।
विभाषा (Dialect): परिनिष्ठित या आदर्श भाषा के अंतर्गत अनेक विभाषाएं होती हैं। विभाषाएं प्रायः स्थानीय भेद के आधार पर होती है; जैसे- राजस्थानी, गुजराती, मराठी आदि। भौगोलिक आधार पर एक भाषा की अनेक विभाषाएं होती हैं। 
बोली (Sub-Dialect): जो भाषाएँ प्रांतीय स्तर पर शासन द्वारा स्वीकृत हो जाती हैं और जिनमें प्रांतीय शासन का कार्य प्रचलित होता है, उनका स्तर उच्च हो जाता है और वे विभाषा की श्रेणी में आती हैं । इसके अतिरिक्त जो भाषाएँ प्रांतीय स्तर पर स्वीकृत न होकर मण्डल स्तर पर स्वीकृत रहती हैं उन भाषाओं को बोली के अंतर्गत रखा जाता है। जैसे- हिंदी की बोलियाँ ब्रज, अवधी, बुंदेली आदि।
व्यक्ति बोली (Idiolect): एक व्यक्ति की भाषा को व्यक्ति बोली कहते हैं। यह भाषा की सबसे छोटी इकाई है। प्रत्येक व्यक्ति की भाषा एक-दूसरे से भिन्न होती है। ध्वनि भेद, स्वर-भेद, सुर-भेद आदि आधारों पर एक-एक व्यक्ति की बोली पृथक पहचानी जाती है। इसी आधार पर किसी व्यक्ति के केवल ध्वनि को सुनकर उसे अंधेरे में भी पहचान लेते हैं।
अपभाषा (Slang): जिस भाषा में व्याकरण के नियमों की उपेक्षा, अमान्य वाक्य रचना, अशिष्ट शब्द-प्रयोग, अमान्य मुहावरों का प्रयोग आदि प्रयोग मिलते हैं, उसे अशिष्ट, असभ्य या अपरिष्कृत भाषा को अपभाषा का नाम दिया गया है।
विशिष्ट भाषा (Professional Language): विभिन्न व्यवसायों के आधार पर भाषा के अनेक रूप समाज में मिलते हैं; जैसे- किसान, मजदूर, लोहार, दर्जी आदि की अपने व्यवसाय के अनुसार अलग-अलग शब्दावली होती है। इसी प्रकार विभिन्न विषयों राजनीतिकशास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान आदि की अपनी विशिष्ट शब्दावली होती है। 
कूट भाषा  (Secret Language): इस भाषा में विशिष्ट शब्दों का विशेष अर्थों में होता है, जो उन शब्दों को जानता है वही उसका अर्थ समझ सकता है। इस प्रकार की भाषा का प्रयोग राजनीतिज्ञों, क्रांतिकारियों, चोरों और डाकुओं आदि में प्रचलित होता है। कहीं इसका उद्देश्य मनोरंजन और कहीं बात को छिपाना होता है। जैसे- इसको अमर कर दो(मार डालो), प्रसाद देना(जहर देना), खोखा ( बहुत ज्यादा पैसा की बात) आदि।
कृत्रिम भाषा (Artificial Language): डॉ. जमेन हाफ की बनाई एस्परेंतो भाषा विश्व में सबसे अधिक प्रसिद्ध है। कृत्रिम भाषा परंपरागत नहीं होती है। इसके प्रयोग करने वालों की संख्या 80 लाख से अधिक बताई जाती है। इसका प्रचलन विस्तृत जनसमाज में संभव नहीं है जिसके कुछ निम्न कारण हैं-
1. इसमें उच्च साहित्य का निर्माण संभव नहीं है। 2. इसमें हार्दिक मनोभावों का विवेचन या विश्लेषण संभव नहीं है। 3. इसमें गंभीर विषयों का विवेचन संभव नहीं है। 4. यह कामचलाऊ भाषा होती है ।


संदर्भ सूची :


Sunday, October 6, 2019

भाषा के प्रकार्य (Functions of Language)


उपादान            प्रकार्य
वक्ता    -  भिव्यक्तिपरक(संवेगात्मक): Emotive(Expressive)
श्रोता    -  निर्देशपरक(निर्देशात्मक): Cognitive(Receiver)
संदर्भ    - संकेतपरक(संदर्भपरक): Referential(Context)
संदेश   - काव्यपरक(काव्यात्मक):  Poetic(Message)
कोड    - र्कपरक(अधिभाषात्मक): Metalingual(Metalinguistic & Reflexive)
सरणि   - संपर्कपरक(संबंधात्मक): Phatic(Contact/Channel)- Hello, OK, Bye
  • संप्रेषण प्रक्रिया के अंतर्गत एक ओर वक्ता होता है जो संदेश भेजता है और दूसरी ओर श्रोता रहता है जो इस संदेश को ग्रहण करता है। वक्ता और श्रोता के इस संदेश की पृष्टभूमि में कोड रहता है। वक्ता अपने काव्य को संदेश का रूप देने के लिए इस कोड का सहारा लेता है । काव्य को संदेश रूप में बांधने की प्रक्रिया को कोडीकरण कहा जाता है। संदेश में निहित कथ्य को पाने की प्रक्रिया को विकोडीकरण कहा जाता है। संदेश का एक संदर्भ होता है। संदेश के प्रेषण के लिए वक्ता और श्रोता के बीच एक सरणि होती है। सरणि वस्तुतः वक्ता और श्रोता के बीच संबंध स्थापन हेतु होता है।


भाषा का प्रकार्यात्मक अध्ययन प्राग स्कूल (प्राग संप्रदाय) की देन है, जिसमें कार्य करने वाले भाषावैज्ञानिक ‘रोमन याकोब्सन’ और’ मार्टिने कर’ हैं। उन्हें प्रकार्यवादी भी कहा जाता है ।
इन्होंने भाषा के छः प्रकार्य माने हैं -
(1) वक्ता / अभिव्यक्तिपरक :संवेगात्मक (Emotive)= यह भाषा के उस व्यवहार से संबंधित है जो विषय वस्तु के प्रति वक्ता के अपने दृष्टिकोण या भाव को व्यक्त करता है विस्मयादिबोधक शब्द या भाषिक अभिव्यक्ति इसके अनर्गत आते हैं । 
(2) श्रोता / निर्देशपरक :निर्देशात्मक (Cognitive)= इसका संबंध श्रोता के साथ बंधा होता है व्याकरणिक संरचना की दृष्टि से संबोधनवाचक, प्रश्नवाचक, आज्ञासूचक व अनुरोध अभिव्यक्तियाँ इसके अंतर्गत आती हैं।
(3) संदर्भ / संकेतपरक :संदर्भपरक (Referential)= इसका संबंध विषय वस्तु के साथ रहता है। इस भाषिक प्रकार्य के आधार पर प्राप्त सूचना वाह्य ज्ञान के संदर्भ में सच या झूठ हो सकती है; उदाहरण के लिए उपन्यास या महाकाव्य आदि।
(4) संदेश / काव्यपरक :काव्यात्मक (Poetic)= इसका संबंध स्वयं संदेश की ओर मुड़ा हुआ होने के कारण अभिव्यक्ति की शैलीगत विशेषताओं से जुड़ा होता है। साहित्यिक रचना की दृष्टि से छंद, तुक, लय अथवा लाक्षणिक और व्यंजनापरक प्रयोग इसके उदाहरण हैं।
(5) सरणि / संपर्कपरक :संबंधात्मक (Phatic)= इसका संबंध वक्ता और श्रोता के बीच भौतिक या मांसिक संबंधों की वह सरणि बनाता है जिसका सहारा लेकर वे संप्रेषण व्यापार में बनें रहते हैं; जैसे- हेलो, हूँ, हाँ
(6) कोड / तर्कपरक :अधिभाषात्मक  (Metalinguistic)= इसे वैज्ञानिक या तर्कशास्त्री किसी विषय वस्तु विवेचना के समय उपकरण के रूप में अपनाता है। इस प्रकार का प्रयोग हम सामान्य भाषा में भी करते हैं- जब हम पूछते हैं इसका क्या अर्थ है? जो मैं कहना चाहता हूँ क्या तुम समझ गए?

संदर्भ सूची :

Monday, September 30, 2019

भाषा की परिभाषाएँ और उसकी विशेषताएँ/अभिलक्षण



भाषा की परिभाषाएँ
  • विचार आत्मा की मूल या अध्वन्यात्मक बातचीत है, पर वही जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती है, भाषा है।      -प्लूटो
  • भाषा मनुष्यों के बीच संचार-व्यवहार के माध्यम के रूप में एक प्रतीक व्यवस्था है।       - वेन्द्रे
  • भाषा सीमित और व्यक्त ध्वनियों का नाम है जिन्हें हम अभिव्यक्ति के लिए संगठित करते हैं।      - क्रोचे
  • भाषा यादृच्छिक ध्वनि संकेतों की वह व्यवस्था है जिसके द्वारा सामाजिक समूह के सदस्य परस्पर सहयोग एवं विचार विनिमय करते हैं।         - स्त्रुतेवा 
  • ध्वनात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है।         - स्वीट
  • Language may be defined as an arbitrary system of vocal symbols by means of which humans interact and communicate"      - इन साइक्लोपीडिया ब्रिटानिया
  • A language is a system of arbitrary vocal system by means of which a society group cooperates.            -ब्लाक तथा ट्रेगर
  • मनुष्य ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा अपना विचार प्रकट करता है, मानव मस्तिष्क वस्तुतः विचार प्रकट करने के लिए ऐसे शब्दों का निरंतर उपयोग करता है।        - जेस्परसन
  • ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा हृदयगत भावों तथा विचारों का प्रकटीकरण ही भाषा है।   -पी. डी. गुणे
  • अर्थवान कंठोद गीर्ण ध्वनि-समष्टि भाषा है।     - सुकुमार सेन
  • जिन ध्वनि चिन्हों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता हैउनको समष्टि रूप से भाषा कहते हैं।      - बाबूराम सक्सेना
  • Language is system. (भाषा एक व्यवस्था है)      -ससयूर
  • Language is a form or habits. (भाषा एक रूप/आदत है)      -ब्लूमफील्ड
  • Language is a rule governed activities. (भाषा नियम शासित गतिविधि है)       -चोम्स्की
  • मानव समुदाय द्वारा उच्चरित स्वन संकेतों की वह यादृच्छिक प्रतिकात्मक व्यवस्था भाषा है, जिसके द्वारा विचारात्मक स्तर पर मानव समुदाय विशेष परस्पर संपर्क स्थापित करता है।      - प्रो. राजमणि शर्मा
  • भाषा उच्चारण अवयवों से उच्चरित प्रायः यादृच्छिक ध्वनि-प्रतिकों की वह व्यवस्था है, जिसके द्वारा किसी भाषा समाज के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।     -भोलानाथ तिवारी



भाषा की विशेषताएँ/अभिलक्षण :
1.      संरचना द्वित्व / द्वैतता (duality of structure) : यह अभिलक्षण यह बताता है कि मानव भाषा एक साथ दो अभिरचनाओं की सिद्धि का परिणाम है जिसमें पहली अभिरचना 'विचार सिद्धि' की न्यूनतम इकाइयों का परिणाम होती है और दूसरी अभिरचना 'प्रभेदन सिद्धि की इकाइयों' का।


2.       यादृच्छिकता (arbitrariness) : इस अभिलक्षण के अनुसार, भाषाओं में प्रयुक्त सभी संकेत यादृच्छिक होते हैं, इसलिए सभी भाषाओं के संकेत एक-दूसरे से अलग होते हैं ।
3.       विस्थापन (displacement) : इस अभिलक्षण का परिणाम है कि हम भूतकाल और भविष्यकाल की संरचनाएं पाते हैं। यह मानव भाषा का ही सामर्थ्य है कि वह एक ओर विगत घटनाओं पर विचार कर सकती है और दूसरी ओर भविष्य की संभावित घटनाओं की कल्पना भी।
4.       अंतर्विनिमयता/ व्यतिहारिता (interchangeability): इस अभिलक्षण के अनुसार, वक्ता और श्रोता के बीच बातचीत के दौरान जो एक समय वक्ता है वह दूसरे समय पर श्रोता की भूमिका में और जो श्रोता है वह वक्ता की भूमिका में होता है।
5.      विविक्तता (discreteness) :  जब हम भाषा की प्रकृति के संदर्भ में किसी वाक्य पर ध्यान देते हैं तो उसे 'शब्दों में' शब्दों को 'स्वनिमों में' खंडित/विच्छिन्न पाते हैं, इनके मेल से बोले गए किसी वाक्य में उच्चरित पहली ध्वनि से लेकर अंतिम ध्वनि तक किसी स्तर पर कोई विराम की स्थिति नहीं मिलती है। यह अभिलक्षण भाषा के इसी अविरल प्रवाह को विच्छिन्न इकाइयों के संचित कोष के रूप में देखने की ओर संकेत करता है। 
6.      उत्पादकता (productivity) : मानवीय भाषा में यह सामर्थ्य है कि वह संघटनात्मक ऐसे वाक्यों की भी रचना कर सकती है जिसे वक्ता और श्रोता ने उससे पूर्व न कहा हो न सुना हो। 
7.      सांस्कृतिक हस्तांतरण (cultural transmission) :  इस अभिलक्षण का महत्व यह है कि मानवीय ज्ञान संग्रहीत होता रहता है जिससे भावी पीढ़ी को नए ढंग से शून्य से ज्ञान वृद्धि करते हुए नया वाड्मय नहीं तैयार करना पड़ता, अपितु पूर्वजों के ज्ञान का लाभ उठाते हुए शीघ्र ज्ञान वृद्धि का अवसर मिलता है। 
8.       सृजनात्मकता / सर्जनात्मकता (Creativity) : भाषा का संबंध मानव मन से होता है और मन अपनी प्रकृति में सर्जनात्मक है । इस अभिलक्षण के कारण ही मनुष्य नए वाक्यों को बोलने और उन्हें समझने में सक्षम है।
9.      पुनरावर्तिता/ परिवर्तनशीलता (changeability) : भाषा परिवर्तनशील हुआ करती है वाह्य कारणों के प्रभाव से परिवर्तन की गति कम या अधिक हो सकती है मगर होना अनिवार्य है। यदि परिवर्तन नहीं होता तो किसी भी प्राचीन भाषा को समझने में कोई कठिनाई नहीं होती।   
10.   अनुकरणात्मक(Imitative) : अरस्तू ने अनुकरण को समस्त कलाओं का मूल माना है, भाषा का अर्जन अनुकरण और व्यवहार से होता है। बालक अपने माता, पिता, आदि से जिन ध्वनियों को जिस तरह सुनता है वह वैसा ही उच्चारण करने का प्रयत्न करता है।
11.   सामाजिकता(Sociability) : भाषा सामाजिक वस्तु है क्योंकि भाषा का विकास, अर्जन और प्रयोग तीनों ही समाज में होते हैं। ध्वनि उत्पादन की क्षमता मनुष्य में जन्मजात होती है किंतु उसके प्रयोग का अवसर समाज ही प्रदान करता है।
12.   विशेषीकरण (specialization) : इस अभिलक्षण के अनुसार, कोई व्यक्ति भाषा में इतना निपुण हो जाता है कि वह किसी अन्य कार्य को करते हुए भी भाषा का प्रयोग सामान्यतः करता रहता है।
13.   मौखिक-श्रव्य सरणि( vocal auditory channel) : इस अभिलक्षण के अनुसार, भाषा मूलतः मौखिक होती है, किसी संकेत या संदेश को भेजने वाला संदेश को मुख से उच्चरित करता है और उसको पानेवाला उसे कान से सुनता है।
14.   अधिगमता (Learneability) : मानव भाषा अधिगम प्रक्रिया की परिणाम होती है, मानव मन की संरचना और प्रकृति इस प्रकार की है कि वह एक से अधिक भाषाएँ सीखने में समर्थ है।

संदर्भ सूची :  
  • डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव : भाषा शिक्षण
  • डॉ. कपिलदेव द्विवेदी : भाषा-विज्ञान एवं भाषा शास्त्र 
  • डॉ. त्रिलोचन पाण्डेय : भाषा विज्ञान के सिद्धांत 
  • डॉ. हरिवंश तरुण : मानक हिंदी व्याकरण और रचना 






Wednesday, September 18, 2019

परंपरागत भारतीय भाषावैज्ञानिक (यास्क, पाणिनि, कात्यायन, पतंजलि एवं भर्तृहरि) का संक्षिप्त परिचय

महर्षि यास्क :-

         यास्क वैदिक संज्ञाओं के एक प्रसिद्ध व्युत्पतिकार एवं वैयाकरण थे। इनका समय 5 से 6 वीं सदी ईसा पूर्व था। इन्हें निरुक्तकार कहा गया है। निरुक्त को तीसरा वेदाङग् माना जाता है। यास्क ने पहले 'निघण्टु' नामक वैदिक शब्दकोश को तैयार किया। निरुक्त उसी का विशेषण है। निघण्टु और निरुक्त की विषय समानता को देखते हुए सायणाचार्य ने अपने 'ऋग्वेद भाष्य' में निघण्टु को ही निरुक्त माना है। 'व्याकरण शास्त्र' में निरुक्त का बहुत महत्व है।
भाषा शास्त्र को योगदान :
  • यास्क निरुक्त के लेखक हैं, जो शब्द व्युत्पत्ति, शब्द वर्गीकरण व शब्दार्थ विज्ञान पर एक तकनीकी प्रबंध है। निरुक्त में यह समझाने का प्रयास किया गया है कि कुछ विशेष शब्दों को उनका अर्थ कैसे मिला विशेषकर वेदों में दिए गए शब्दों को। ये धातुओं, प्रत्ययों व असामान्य शब्द संग्रहों से शब्दों को बनाने के नियम तन्त्र से युक्त है।
  • निरुक्त के तीन काण्ड हैं- नैघण्टुक, नैगम और दैवत। इसमें परिशिष्ट सहित कुल चौदह अध्याय हैं। यास्क ने शब्दों को धातुज माना है और धातुओं से व्युत्पत्ति करके उनका अर्थ निकाला है। यास्क ने वेद को ब्रह्म कहा है और उसे इतिहास ऋचाओं और गाथाओं का समुच्चय माना है।
  • यास्क ने शब्दों के चार वर्गों का वर्णन किया है :-
                 1. नाम = संज्ञा या मूल रूप
                 2. आख्यात = क्रिया
                 3. उपसर्ग
                 4. निपात
  • यास्क 'निरुक्त' के प्राचीन कालिक ख्याति प्राप्त रचयिता थे। 'निरुक्त' की गणना छ: वेदांगों में होती है। 'व्याकरण शास्त्र' में 'निरुक्त' का बडा महत्व है। यास्क का काल अनिश्चित है, किंतु वह यशस्वी वैयाकरण पाणिनी का पूर्वकालिक माना जाता है।

महर्षि पाणिनि :-

पाणिनि के जीवन चरित्र का प्रामाणिक विवरण प्राप्त नहीं है। कुछ प्राप्त विवरणों के अनुसार इनकी माता का नाम दाक्षी  था। महाभाष्य में पाणिनि को दाक्षी पुत्र कहा गया है। कैयट के अनुसार पाणिनि के पिता का नाम पडिनथा। पाणिनि का एक नाम शालातूरी है। इससे ज्ञात होता है कि इनके पूर्वज शलातूर ग्राम के निवासी थे। पाणिनि का समय विवादग्रस्त समय है। इनका समय विभिन्न विद्वान सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व से चतुर्थ शताब्दी ईसा के मध्य मानते हैं। डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल ने पाणिनि कालीन भारतवर्ष ग्रंथ में सभी मतों की आलोचना करते हुए निष्कर्ष दिया है कि पाणिनि का समय 450 ईसा पूर्व से 400 ईसा पूर्व के मध्य है। पुष्ट प्रमाणों के कारण यह मत सर्वाधिक मान्य है। इनकी मृत्यु के विषय में कहा जाता है कि पाणिनि को एक शेर ने मारा था।
पाणिनि की रचनाएं :-
अष्टाध्यायी- यह पाणिनि की सर्वोत्कृष्ट रचना है, इसमें अलौकिक संस्कृति के साथ ही वैदिक व्याकरण भी दिया गया है। यह सूत्र पद्धति से लिखा गया है, इसमें 8 अध्याय हैं। अतः ग्रंथ का नाम अष्टाध्यायी पड़ा। इसमें सूत्रों की संख्या 3997 है। इसके विभिन्न अध्याय में इन विषयों का विवेचन है; जैसे- संधि, कारक, कृत और तद्धित प्रत्यय, समास, सुबंत और तिदंत प्रकरण, प्रक्रियाएं, परिभाषाएं, द्विरुक्त आदि कार्य तथा स्वर प्रक्रिया।
पाणिनि का भाषा शास्त्र को योगदान :

  • महेश्वर सूत्र : 14 माहेश्वर सूत्रों में संस्कृत की पूरी वर्णमाला दी गई है; इसमें क्रम है- स्वर, अंतस्थ, पंचम, चतुर्थ, तृतीय, द्वितीय और प्रथम स्पर्श वर्ण, ऊष्म ध्वनियाँ। ध्वनिविज्ञान की दृष्टि से यह क्रम वैज्ञानिक है। संस्कृत भाषा विशुद्ध रूप से ध्वन्यात्मक है। विभिन्न स्वर एवं व्यंजन ध्वनियों को सूत्रों में संक्षिप्त तौर पर इंगित करने के लिए महर्षि पाणिनि ने इन ध्वनियों को वर्गीकृत करते हुए 14 मौलिक सूत्रों की रचना की है -


ध्यान दें कि उक्त तालिका की पहली पंक्ति में स्वर ध्वनियां हैं, जब कि शेष तीन में व्यंजन ध्वनियां सूत्रबद्ध हैं। चूंकि व्यंजनों का स्वतंत्र तथा शुद्ध उच्चारण असंभव सा होता है, अतः इन सूत्रों में वे स्वर से संयोजित रूप में लिखे गए हैं। इन 14 सूत्रों के अंत में क्रमशः विद्यमान् ण्, क्, ङ्, …’ को इत् कहा जाता है । यदि इन सूत्रों में मौजूद इतोंको हटा दिया जाए और शेष वर्णों को यथाक्रम लिखा जाए तो हमें वर्णों की आगे प्रस्तुत की गई तालिका मिलती है ।


ऊपर चर्चा में आया इत् सूत्रों के उच्चारण में सहायक होता है ।
  • प्रत्याहार- 14 सूत्रों से अनेक प्रतिहार बनते हैं, प्रत्याहार का अर्थ है संक्षेप करने की विधि; जैसे- अच= स्वर से तक। हल= व्यंजन से तक।
  • संधि-नियम : इनके द्वारा ध्वनिविज्ञान के वर्ण-परिवर्तन संबंधी सिद्धांतों का विशद ज्ञान होता है ।
  • पदविज्ञान : अंगाधिकार प्रकरण में प्रकृति और प्रत्यय का सूक्ष्म विवेचन है । 'सुबंत ' और तिदंत रूपों में अर्थतत्व और संबंधतत्व का विशद विश्लेषण है।
  • पदविभाजन : पाणिनि ने पदों का दो भागों में विभाजन किया है - सुबंत और तिदंत। यास्क ने पद के चार भेद माने थे और पश्चिमी विद्वान पद के आठ भेद मानते हैं।
  • ध्वनियों का स्थान और प्रयत्न के अनुसार वैज्ञानिक वर्गीकरण किया है यह ध्वनिविज्ञान की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
  • सभी शब्दों का आधार धातु को माना है उससे ही उपसर्ग या प्रत्यय लगने पर शब्द बनते हैं।
  • अर्थविज्ञान : कृत और तद्धित प्रकरण तथा प्रक्रियाओं आदि में प्रत्येक प्रत्यय का अर्थ बताकर अर्थविज्ञान का आधार तैयार किया है।
  • तुलनात्मक भाषाशास्त्र : लौकिक और वैदिक संस्कृति का तुलनात्मक अध्ययन करके तुलनात्मक भाषाशास्त्र को जन्म दिया है।

महर्षि कात्यायन :-


पाणिनि के परवर्ती व्याकरण में कात्यायन का स्थान प्रथम है। पतंजलि के अनुसार कात्यायन दक्षिणात्य थे। इनका दूसरा नाम वररुचि भी है। वररुचि कात्यायन, पाणिनीय सूत्रों के प्रसिद्ध वार्तिककार हैं। अष्टाध्यायी के सूत्रों में आवश्यक संशोधन परिवर्तन और परिवर्धन के लिए कात्यायन ने जो नियम बनाए हैं, उन्हें वर्तिका कहते हैं। कात्यायन का समय 350 ईसा पूर्व के लगभग माना जाता है। वार्तिकों के अतिरिक्त इनकी एक काव्य रचना स्वर्गारोहण भी मानी जाती है। कात्यायन ने वेदसर्वानुक्रमणी और प्रातिशाख्य की भी रचना की है। प्रातिशाख्य शब्द का अर्थ है : 'प्रति' अर्थात्‌ तत्तत्‌ 'शाखा' से संबंध रखने वाला शास्त्र अथवा अध्ययन। यहाँ 'शाखा' से अभिप्राय वेदों की शाखाओं से है।
भाषा शास्त्र में योगदान  :
  • शब्द और अर्थ के संबंध आदि के विषय में लोक व्यवहार को प्रधानता दी है, साथ ही उल्लेख किया है कि एक ही शब्द विभिन्न भाषाओं में भिन्नार्थक हो जाता है; जैसे- संस्कृत में शव का अर्थ लाश और कंबोज में जाना अर्थ है।
  • शब्द और अर्थ का नित्य संबंध।

पतंजलि  :-

पतंजलि काशी में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में विद्यमान थे। इनका जन्म गोनार्ध (गोण्डा, उत्तर प्रदेश) में हुआ था, पर ये काशी में नागकूप पर बस गये थे। ये व्याकरणाचार्य पाणिनी के शिष्य थे। पतंजलि ने पाणिनि की अष्टाध्यायी और कात्यायन के प्रतीकों का आश्रय लेते हुए अष्टाध्यायी पर महाभाष्य नाम की सर्वागीण व्याख्या की है। महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ होने के साथ-साथ तत्कालीन समाज का विश्वकोश भी है। भाषा की सरलता विषमता स्वाधीनता और और विषय प्रतिपादन की उत्कृष्ट शैली के कारण महाभाष्य सारे संस्कृत वाडमय में आदर्श ग्रंथ है। इसमें भाषा शास्त्र के तत्कालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, भौगोलिक, धार्मिक, संस्कृति आदि तत्वों पर विशद चिंतन हुआ है। पतंजलि पुष्यमित्र के समय में हुए थे इनका समय 150 ईसा पूर्व के लगभग है। पतंजलि एक महान चकित्सक थे और इन्हें ही कुछ विद्वान 'चरक संहिता' का प्रणेता भी मानते हैं।
इनकी प्रमुख रचनाएं हैं : महाभाष्य, चरक-संहिता, योग-दर्शन।
भाषा शास्त्र में योगदान :
  • व्याकरण के दार्शनिक पक्ष की स्थापना।
  • स्फोट और ध्वनि सिद्धांतों की स्थापना।
  • शब्द और अर्थ के स्वरूप का निर्णय।
  • शब्द की नित्यता और अनित्यता का विशद विवेचन।
  • भाषाशास्त्र में विभाषाओं का सोदाहरण महत्व प्रस्तुत करना।
  • भाषा के विभिन्न रूप विभाषा, अपभ्रंश आदि का उल्लेख करना।
  • ध्वनिविज्ञान, निर्वाचन, व्याकरण और दर्शनशास्त्र का एकत्र समन्वय प्रस्तुत करना।
  • ध्वनिविज्ञान, पदविज्ञान और अर्थविज्ञान के सिद्धांतों का स्पष्टीकरण।
  • संस्कृत को विश्व भाषा के रूप में प्रस्तुत करना।
  • विश्व की विभिन्न भाषाओं में स्थानीय अर्थ-भेद का उल्लेख करना।


भर्तृहरि  :-

भर्तृहरि एक महान संस्कृत कवि थे। संस्कृत साहित्य के इतिहास में भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके शतकत्रय (नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक) की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। बाद में इन्होंने गुरु गोरखनाथ के शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था इसलिए इनका एक लोकप्रचलित नाम बाबा भरथरी भी है। भर्तृहरि उज्जयिनी के राजा थे। ये 'विक्रमादित्य' उपाधि धारण करने वाले चन्द्रगुप्त द्वितीय के बड़े भाई थे। इनके पिता का नाम चन्द्रसेन था। इन्होनें सुन्दर और रसपूर्ण भाषा में नीति, वैराग्य तथा श्रृंगार जैसे गूढ़ विषयों पर शतक-काव्य लिखे हैं। इस शतकत्रय के अतिरिक्त, वाक्यपदीय नामक एक उच्च श्रेणी का व्याकरण ग्रन्थ भी इनके नाम पर प्रसिद्ध है। इन्होंने महाभाष्य की महाभाष्य-दीपिका नाम से टीका की है। इनका जीवन चरित अप्राप्त है। इनके गुरु का नाम वसुरात था। ये विक्रमादित्य के भाई माने जाते हैं। इनका समय 340 ई0 के लगभग माना जाता है। इनकी दो कृतियां उपलब्ध हैं- (1) महाभाष्य-दीपिका और (2) वाक्यपदीय।
महाभाष्य-दीपिका : यह महाभाष्य की व्याख्या है, इत्सिंग ने इसमें 25 हजार श्लोक माने हैं।
वाक्यपदीय : इसमें इसमें भाषा के दार्शनिक पक्ष का जितना सूक्ष्म और वैज्ञानिक विवेचन हुआ है, उतना विश्व के अन्य किसी ग्रंथ में नहीं। इसमें तीन कांड हैं- ब्रह्माकांड, वाक्यकांड, पदकांड
भाषा शास्त्र को को योगदान :
  • शब्दब्रह्म, स्पोर्टब्रह्म या वाक्यब्रह्म की स्थापना।
  • भाषाशास्त्र के दार्शनिक पक्ष की स्थापना।
  • भाषा की इकाई वाक्य है इस सिद्धांत की स्थापना।
  • वाणी का आधार वाक्य है और भाषा का आधार पद।
  • भाषाशास्त्र को नवीन मौलिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण देना।
  • भाषा के भौतिक, रचनात्मक और दार्शनिक पक्ष का समन्वय।
  • लोक भाषा और व्यवहार के महत्व का प्रबल समर्थन।
  • वक्ता और श्रोता के आदान-प्रदान का अद्यतन विवेचन।
  • भाषा वक्ता और श्रोता के बीच माध्यम है, जिससे दोनों ओर भावों का आदान-प्रदान होता है।
  • तुलनात्मक विवेचन के आधार पर सिद्धांतों की स्थापना करना।

संदर्भ ग्रंथ :