मानवता का दर्द लिखेंगे, माटी की बू-बास लिखेंगे ।
हम अपने इस कालखण्ड का एक नया इतिहास लिखेंगे ।
सदियों से जो रहे उपेक्षित श्रीमन्तों के हरम सजाकर,
उन दलितों की करुण कहानी मुद्रा से रैदास लिखेंगे ।
प्रेमचन्द की रचनाओं को एक सिरे से खारिज़ करके,
ये 'ओशो' के अनुयायी हैं, कामसूत्र पर भाष लिखेंगे ।
एक अलग ही छवि बनती है परम्परा भंजक होने से,
तुलसी इनके लिए विधर्मी, देरिदा को ख़ास लिखेंगे ।
इनके कुत्सित सम्बन्धों से पाठक का क्या लेना-देना,
लेकिन ये तो अड़े हैं ज़िद पे अपना भोग-विलास लिखेंगे।
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............ (अदम गोंड़वी जी।)
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