Monday, October 31, 2022

जातिवाद, धर्म और पाखंड से संबंधित कबीर के दोहे/विचार (The Poem of Kabir das)

 सबसे अधिक धार्मिक भावनाओं को कबीर ने आहत किया, वह भी मुगल दौर में। जाति हो या धर्म, हिन्दू हो या मुस्लिम, कबीर ने सभी पर एकसमान जमकर प्रहार किया। उसमें भी खासकर ब्राह्मण और मुस्लिम पर कबीर की काफी तीखी वाणी रही।


जो तू ब्राह्मण ब्राह्मणी का जाया, आन द्वार क्यों न आया।

जो तू तुर्क तुर्कनी जाया, भीतर खत्तन क्यों न कराया।।


जातिवाद पर कबीर,


1- काहे को कीजै पांडे छूत विचार, 

छूत ही ते उपजा सब संसार ।।

हमरे कैसे लोहू तुम्हारे कैसे दूध,

तुम कैसे बाह्मन पांडे, हम कैसे सूद।।


2-पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।।


3-जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।

मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।


हिन्दू पाखंड पर कबीर,


1- लाडू लावन लापसी, पूजा चढ़े अपार। 

    पूजी पुजारी ले गया, मूरत के मुह छार।।


2-माटी का एक नाग बनाके, पुजे लोग लुगाया !

   जिंदा नाग जब घर मे निकले, ले लाठी धमकाया ।


3- जिंदा बाप कोई न पुजे, मरे बाद पुजवाये !

    मुठ्ठी भर चावल लेके, कौवे को बाप बनाय।।


मुस्लिम पाखंड पर कबीर,


1-कलमा रोजा बंग नमाज, कद नबी मोहम्मद कीन्हया,

    कद मोहम्मद ने मुर्गी मारी, कर्द गले कद दीन्हया॥


2- काज़ी बैठा कुरान बांचे, ज़मीन बो रहो करकट की।

     हर दम साहेब नहीं पहचाना, पकड़ा मुर्गी ले पटकी।।


3-गरीब, हम ही अलख अल्लाह हैं, कुतुब गोस और पीर। 

    गरीबदास खालिक धनी हमरा नाम कबीर।।


4-गला काटि कलमा भरे, किया कहै हलाल। 

  साहेब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।


हिन्दू, मुस्लिम दोनों को लथारते कबीर,


1- हिन्दू कहूं तो हूँ नहीं, मुसलमान भी नाही

     गैबी दोनों बीच में, खेलूं दोनों माही ।।


2- हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

     आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।।

Saturday, October 15, 2022

जीवन क्या है इसे कैसे जिएं (What is Life & How to live it)

 

आप जानते हैं कि आपके अंतिम संस्कार के बाद आम तौर पर क्या होता होगा?

देहावसान के कुछ ही घंटों में रोने की आवाज पूरी तरह से बंद हो जाएगी।

रिश्तेदारों के लिए होटल से खाना मंगवाने में जुटेगा परिवार..

पोते दौड़ने और खेलने लगेंगे।

कुछ पुरुष सोने से पहले चाय की दुकान पर टहलने जाएंगे।

आपका पड़ोसी यह सोचकर क्रोधित होगा कि लोगों ने अनुष्ठान के पत्तों को उनके द्वार के पास फेंक दिया हो।

कोई रिश्तेदार फोन पर बात कर, आपात स्थिति के कारण व्यक्तिगत रूप से न आने का कारण बताएगा।

अगले दिन रात के खाने में, कुछ रिश्तेदार कम हो जाएंगे और कुछ लोग सब्जी में पर्याप्त नमक नहीं होने की शिकायत करेंगे।

विदेशी संबंधी गुप्त रूप से पर्यटन की योजना बना लेंगे, जैसे कि उन्होंने वहां के रास्ते पर इतनी दूर कभी नहीं देखा था।

क रिश्तेदार अंतिम संस्कार के बारे में शिकायत कर सकता है कि उसने अपने हिस्से पर कुछ सौ रुपये अधिक खर्च किए हैं।

भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगेगी..

आने वाले दिनों में ....

कुछ कॉल आपके फोन पर बिना यह जाने आ सकते हैं कि आप मर चुके हैं।

आपका कार्यालय, बिजनेस आदि आपकी जगह लेने के लिए किसी को ढूंढने में जल्दबाजी करेगा।

एक हफ्ते बाद तुम्हारी मौत की खबर सुनकर,

आपकी पिछली पोस्ट क्या थी, यह जानने के लिए कुछ फेसबुक मित्र उत्सुकता से खोज कर सकते हैं।

दो सप्ताह में बेटा और बेटी अपनी आपातकालीन छुट्टी खत्म होने के बाद काम पर लौट आएंगे।

महीने के अंत तक आपका जीवनसाथी कोई कॉमेडी शो देखकर हंसने लगेगा।

आने वाले महीनों में आपके करीबी रिश्ते सिनेमा और समुद्र तट पर लौट आएंगे।

सबका जीवन सामान्य हो जाएगा, जिस तरह एक बड़े पेड़ के सूखे पत्ते में और जिसके लिए आप जीते और मरते हैं, उसमें कोई अंतर नहीं है, यह सब इतनी आसानी से, इतनी तेजी से, बिना किसी हलचल के होता है।

आपको इस दुनिया में आश्चर्यजनक गति से भुला दिया जाएगा।

इस बीच आपकी प्रथम वर्ष पुण्यतिथि भव्य तरीके से मनाई जाएगी।

पलक झपकते ही.......

साल बीत गए और तुम्हारे बारे में बात करने वाला कोई नहीं है।

एक दिन बस पुरानी तस्वीरों को देखकर आपका कोई करीबी आपको याद कर सकता है,

आपके गृहनगर में, आप जिन हजारों लोगों से मिले हैं, उनमें से केवल एक ही व्यक्ति कभी-कभी याद कर सकता है और उसके बारे में बात कर सकता है।

आप शायद कहीं और रह रहे हैं, किसी और के रूप में, अगर पुनर्जन्म सच है।

अन्यथा, आप कुछ भी नहीं होंगे और दशकों तक अंधेरे में डूबे रहेंगे।

मुझे अभी बताओ...

लोग आपको आसानी से भूलने का इंतजार कर रहे हैं

फिर आप किसके लिए दौड़ रहे हो?

और आप किसके लिए चिंतित हैं?

अपने जीवन के अधिकांश भाग के लिए, मान लीजिए कि 80%, आप इस बारे में सोचते हैं कि आपके रिश्तेदार और पड़ोसी आपके बारे में क्या सोचते हैं.. क्या आप उन्हें संतुष्ट करने के लिए जीवन जी रहे हैं? किसी काम का नहीं ऐसा जीवन .....

जिंदगी एक बार ही होती है, बस इसे जी भर के जी लो….

और जिस उद्देश्य के लिए जन्म लिया है उस उद्देश्य को पूरा करो। कर्म ही सबकुछ है जीवन का संबंध इस इस शरीर से है और शरीर का संबंध भोज्य पदार्थों से है और ये भोज्य पदार्थ बिना कर्म के नहीं मिलते। इसलिए इस मानव रूपी जीवन में मानव को सबकुछ मानते हुए जात-पात और धर्म रूपी पाखंड को छोड़कर मनुष्य बनकर एक समाज उपयोगी जीवन जीने का प्रयास करें, यही वास्तविकता है।

Saturday, October 8, 2022

हिन्दू जाग गया है

 

बड़ा शोर है 

हिन्दू जाग गया है 

हिन्दू जाग गया है

हिन्दू जाग गया है

पर कोई बता नहीं रहा ....

कौन सा हिन्दू जाग गया?

मोहम्मद गौरी को बुलाने वाला 

जयचंद जाग गया 

या 

गाँधी का हत्यारा गोडसे जाग गया?

औरत को पूजने वाला 

हिन्दू जाग गया

या 

जुए में द्रौपदी को दांव पर लगाने वाला 

हिन्दू जाग गया?

वर्णवाद का शिकार हिन्दू जाग गया

ब्राह्मणों का दरबान बना 

राजपूत वाला हिन्दू जाग गया 

ब्राह्मणों का कारोबार सम्भालने वाला 

वैश्य हिन्दू जाग गया 

या 

शुद्र बना हिन्दू जाग गया?

स्वाभिमान, स्वावलंबन, रोजगार छोड़ 

एक-एक दाने की भीख लेने वाला 

हिन्दू जाग गया?

एक-एक सांस को तरसता 

घर-घर मरघट में मरने वाला 

हिन्दू जाग गया?

संविधान से बराबरी का अधिकार 

लेने वाला हिन्दू जाग गया 

या 

संविधान सम्मत वोट से 

मनुवादी सत्ता चुनकर 

वर्णवाद में पिसने वाला 

हिन्दू जाग गया?

बेचारे हिन्दू-हिन्दू बोलकर 

मरे जा रहे हैं ..... 

ये नाम इन्हें इस्लाम वालों ने दिया 

मुसलमानों की दी ....

हिन्दू की पहचान पर गर्व कर रहे हैं 

और हिन्दू नाम देने वाले 

मुसलमान से नफ़रत कर रहे हैं 

ये कौन से हिन्दू जाग गए है?

दरअसल हिन्दू नहीं जागे 

भीड़ जाग गई है 

अंधी भीड़ .....

वर्णवाद की गुलामी से जिसे 

संविधान ने आज़ादी दिलाई थी 

वो भीड़ फिर से वर्णवाद को 

सत्ता पर बिठाने के लिए जाग गई है 

वो भीड़ जाग गई है 

जो ब्राह्मणों के राज में 

वर्णवाद में राजपूत 

वैश्य और शुद्र बनकर 

शोषित होना चाहती है 

जो शोषण को भारत की संस्कृति मानती है 

वो जो ब्राह्मणवाद की पालकी ढ़ोने को 

मोक्ष मानती है 

वो भीड़ जाग गई है ....

आर्य प्रसन्न हैं 

मोदी संविधान को नेस्तनाबूद कर 

ब्राह्मणों की सत्ता के दूत बने हैं 

छोटी जाति के एक व्यक्ति के लिए 

इससे बड़ी बात क्या हो सकती है 

जिसे सदियों तक अछूत माना गया 

वो गांधी, आंबेडकर और नेहरु के संविधान से 

देश का प्रधानमंत्री बन सकता है 

वो हिन्दू जाग गया है  

जो बराबरी नहीं 

ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को 

भारत की संस्कृति मानता है 

और 

संविधान सम्मत राज को गुलामी !

 

कवि ~ मंजुल भारद्वाज

Sunday, October 2, 2022

मानक/आदर्श भोजपुरी के रूप (Form Standard Bhojpuri)

 



डॉ॰ ग्रियर्सन ने स्टैंडर्ड भोजपुरी कहा है वह प्रधानतया बिहार राज्य के आरा जिला और उत्तर प्रदेश के देवरिया, बलियागाजीपुर जिले के पूर्वी भाग और घाघरा (सरयू) एवं गंडक के दोआब में बोली जाती है। यह एक लंबें भूभाग में फैली हुई है। इसमें अनेक स्थानीय विशेताएँ पाई जाती हैं। जहाँ शाहाबादबलिया और गाजीपुर आदि दक्षिणी जिलों में "ड़" का प्रयोग किया जाता है वहाँ उत्तरी जिलों में "ट" का प्रयोग होता है। इस प्रकार उत्तरी आदर्श भोजपुरी में जहाँ "बाटे" का प्रयोग किया जाता है वहाँ दक्षिणी आदर्श भोजपुरी में "बाड़े" प्रयुक्त होता है। गोरखपुर की भोजपुरी में "मोहन घर में बाटें" कहते हैं परंतु बलिया में "मोहन घर में बाड़ें" बोला जाता है।

डॉ. लक्ष्मण प्रसाद सिन्हा ने –  मानक भोजपुरी के दो रूप माने हैं ।

क.  उत्तरी भोजपुरी देवरियागोरखपुर तथा बस्ती जिले में भोजपुरी का जो रूप प्रचलित है उसे उत्तरी भोजपुरी की संज्ञा दी गयी है। इसके दो रूप हैं। सम्पूर्ण देवरिया एवं गोरखपुर जिले के पूर्वी भाग में प्रचलित बोली को ‘गोरखपुरी’ कहा जाता है। उत्तरी भोजपुरी में ‘बा’ के ‘’ के योग से वर्तमानकालिक सहायक क्रिया की रूप रचना होती है ।

 

ख.  दक्षिणी भोजपुरी बिहार के भोजपुररोहताससारणसीवान एवं गोपालगंज तथा उत्तर-प्रदेश के बलिया तथा गाजीपुर (पूर्वी भाग) जिले में प्रचलित बोली को दक्षिणी भोजपुरी कहा गया है। दक्षिणी भोजपुरी में ‘बा’ के ‘’ के योग से वर्तमानकालिक सहायक क्रिया की रूपरचना होती है।


जौनपुरआजमगढ़बनारसगाजीपुर के पश्चिमी भाग और मिर्जापुर में बोली जाती है। आदर्श भोजपुरी और पश्चिमी भोजपुरी में बहुत अधिक अन्तर है। पश्चिमी भोजपुरी में आदर सूचक के लिए "तुँह" का प्रयोग दीख पड़ता है परंतु आदर्श भोजपुरी में इसके लिए "रउरा" प्रयुक्त होता है। संप्रदान कारक का परसर्ग (प्रत्यय) इन दोनों बोलियों में भिन्न-भिन्न पाया जाता है। आदर्श भोजपुरी में संप्रदान कारक का प्रत्यय "लागि" है परंतु वाराणसी की पश्चिमी भोजपुरी में इसके लिए "बदे" या "वास्ते" का प्रयोग होता है।