Friday, February 18, 2022

तहजीब हाफी के गजल/शेर tahjib hafi

 

                                            (तहजीब हाफी की तस्वीर)

(1) बिछड़कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा,

      वो थक जाएगा और गले से आ लगेगा।

       मैं तुम्हारे मुश्किल में काम आऊं या न आऊं,

       तुम आवाज जरूर देना मुझे अच्छा लगेगा।।

(2) मुझसे मत पूछो उस शक्स में क्या अच्छा है,

      अच्छे अच्छों से मुझे मेरा बुरा अच्छा है।

      किस तरह मुझसे कोई मोहब्बत में जीत गया,

      ये मत कह देना कि विस्तर में बड़ा अच्छा है।।

           (3) ये कौन  राह में बैठे हैं मुस्कुराते हैं,

      मुसाफिरों को गलत रास्ता बताते हैं,

      तेरे लगाए हुए जख्म क्यों नहीं भरते,

       मेरे लगाए हुए पेड़ सुख जाते हैं।

 (4) मेरे बस में नहींवरना कुदरत का लिखा हुआ काटता

       तेरे हिस्से में आए बुरे दिनकोई दूसरा काटता

       लारियों से ज्यादा बहाव थातेरे हर एक लब्ज में

       मैं इशारा नहीं काट सकतातेरी बात क्या काटता

       मैंने भी ज़िन्दगी और सब-ए-हिज्र काटी है सबकी तरह,

       वैसे बेहतर तो ये था कि मैं कम से कम कुछ नया काटता,

      तेरे होते हुए मोमबत्ती बुझाई किसी और ने

      क्या खुशी रह गई थी जन्मदिन कीमैं केक क्या काटता,

      कोई भी तो नहीं जो मेरे भूखे रहने पर नाराज हो,

      जेल में तेरी तस्वीर होती तोहंसकर सजा काटता।।

   (5) किसे खबर है कि उम्र बस इसपर गौर करने में कट रही है,

        कि ये उदासी हमारी जिस्मों पर किस खुशी में लिपट रही है,

        अजीब दुःख है हम उसके होकर भी उसको छूने से डर रहे हैं,

        अजीब दुःख है हमारे हिस्से की आग औरों में बंट रही है,

        मैं उसको हर रोज बस यही एक झूठ सुनने को फोन करता,

        सुनों यहां कोई मसल्ला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है।

(6) तेरा चुप रहना मेरे जेहन में क्या बैठ गयातुझे इतनी आवाजें दी कि मेरा गला बैठ गया,

    यूं नहीं है कि फकत मैं ही उसे चाहता हूंजो भी उस पेड़ की छांव में गया बैठ गया,

  इतना मीठा था वह गुस्से भरा लहजा मत पूछउसने जिस जिस को जाने को कहा बैठ गया,

  उसकी मर्जी वह जिसे पास बिठा ले अपनेइसपे क्या लड़ना फ्लां मेरी जगह बैठ गया॥

  (7) पलटकर आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगेउसी जगह पर जहां कई रास्ते मिलेंगे,

      अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तोहम ऐसे बुजदिल भी पहली सफ़ में खड़े मिलेंगे,

      हमें बदन और नसीब दोनों संवारने हैंहम उसके माथे का प्यार लेकर गले मिलेंगे,

       तू जिस तरह हमें चूमकर देखता है हाफिजहम एक दिन तेरे बाजुओं में मरे मिलेंगे।।

 

श्रोत :     https://youtu.be/PEzjHmTbCp8 

Saturday, February 5, 2022

पुष्प की अभिलाषा और जवानी

                                    "पुष्प की अभिलाषा"

चाह नहींमैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं,

चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं।

चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊं,

चाह नहीं देवों के सिर पर चढूं भाग्य पर इठलाऊं।

                              मुझे तोड़ लेना बनमाली,

                              उस पथ में देना तुम फेंक।

                              मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने,

                             जिस पथ जावें वीर अनेक ..  ( 'युगचरंजसे )     

                                            

                                         "जवानी"    

प्राण अंतर में लिए पागल जवानी,

कौन कहता है कि तू

विधवा हुईखो आज पानी?

               स्वान के सिर हो,।चरण तो चाटता है!

               भौंक ले क्या सिंह , को वह डाटता है?

               रोटियां खाई कि साहस खा चुका है,

               प्राणी होपर प्राण सेवह जा चुका है।

तुम न खेलो ग्राम सिंहों में भवानी!

विश्व की अभिमान मस्तानी जवानी!

             विश्व है असि कानहीं संकल्प का है!

             हर प्रलय का कोणकाया कल्प।का है,

             फूल गिरते शूलशिर ऊंचा लिए हैं,

             रसों के अभिमान को। नीरस किए हैं!

खून हो जाए न तेरा देखपानी!

मरण का त्यौहारजीवन की जवानी। ....    ('हिमकिरीटिनी' से)


  कवि: माखन लाल चतुर्वेदी