नव्य वैयाकरणों का युग :-
नव्य वैयाकरणों का युग सन-(1825-1899)
माना गया है। श्ताइनथाल (Scheteinthal) को नव्य शाखा का प्रतिनिधि या नेता माना जाता है। इन्होंने भाषाविज्ञान के
अध्ययन में मनोविज्ञान पर ज्यादा बल दिया। उनका मानना था कि भाषा एक मांसिक प्रक्रिया
है, इसलिए मनोविज्ञान के अभाव में भाषाविज्ञान का अध्ययन अधूरा है। श्ताइनथाल ने चीनी
और नीग्रो भाषाओं को अपने अध्ययन का विषय बनाया।
मान्यताएं :-
1- ध्वनि और अर्थ भाषा के क्रमशः वाह्य और आंतरिक तत्व हैं, अतः दोनों का पृथक अध्ययन होना चाहिए।
2- आरंभ में भाषाओं का अध्ययन केवल पद-विचार तक सीमित था। बाद में ध्वनि पर विचार होने लगा, किंतु नवयुग में वाक्यविचार की भी आवश्यकता मानी गयी।
2- आरंभ में भाषाओं का अध्ययन केवल पद-विचार तक सीमित था। बाद में ध्वनि पर विचार होने लगा, किंतु नवयुग में वाक्यविचार की भी आवश्यकता मानी गयी।
3- मृत या लिपिबद्ध भाषाओं की अपेक्षा जीवित भाषाओं का अध्ययन अधिक
उपादेय और फलप्रद है।
4- भाषा के अध्ययन के लिए व्याकरण को प्रमुखता देने की आवश्यकता
नहीं है। व्याकरण भाषा में अंतर्निहित रहता है। भाषा सीखने का मतलब ही है व्याकरण सीखना।
मातृभाषा के अलावा अन्य भाषा को सीखने के लिए व्याकरण की आवश्यकता पड़ती है।
संदर्भ-ग्रंथ सूची :-
शर्मा देवेन्द्रनाथ और दीप्ति, (2013): भाषाविज्ञान की भूमिका; प्रकाशन: राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली
अतिसुंदर
ReplyDeleteबहुत निम्मन .......
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत निम्मन .......
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