Tuesday, July 18, 2023

एक नया इतिहास लिखेंगे

 मानवता का दर्द लिखेंगे, माटी की बू-बास लिखेंगे ।

हम अपने इस कालखण्ड का एक नया इतिहास लिखेंगे ।


सदियों से जो रहे उपेक्षित श्रीमन्तों के हरम सजाकर,

उन दलितों की करुण कहानी मुद्रा से रैदास लिखेंगे ।


प्रेमचन्द की रचनाओं को एक सिरे से खारिज़ करके,

ये 'ओशो' के अनुयायी हैं, कामसूत्र पर भाष लिखेंगे ।


एक अलग ही छवि बनती है परम्परा भंजक होने से,

तुलसी इनके लिए विधर्मी, देरिदा को ख़ास लिखेंगे ।


इनके कुत्सित सम्बन्धों से पाठक का क्या लेना-देना,

लेकिन ये तो अड़े हैं ज़िद पे अपना भोग-विलास लिखेंगे। 

-      

............ (अदम गोंड़वी जी।)

Sunday, May 14, 2023

माॅं जब हंसती है ( When mother laugh)

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माॅं जब हंसती है

माॅं जब हंसती है तो 

हंसती हैं कलियां 

गांव की गलियां 

हंसते हैं फूल 

खेत-खलिहान, हवा और उपवन

प्रकृति हंसती है!


माॅं जब हंसती है तो

हंसती हैं कलाएं

जीवन की आशाएं 

हंसते हैं सपनें 

ताज़े भाव-विचार और नेह के धागे

भाषा हंसती है!


माॅं जब हंसती है तो 

हंसते हैं सागर 

पानी भरी गागर 

हंसते हैं बादल

पहाड़, जंगल, नदियां और झरनें 

धरती हंसती है 


माॅं जब हंसती है तो 

हंसते हैं तारे 

नदी के किनारे

हंसते हैं कण-कण 

चांद, सूरज, ग्रह और नक्षत्र

ब्रह्मांड हंसता है!


  --© राम बचन यादव

         14/05/2023


वीडियो लिंक👉https://youtu.be/SXvOQga0HEQ




Wednesday, February 22, 2023

बना बावला सूंघ रहा हूं, मैं अपने पुरखों की माटी

 नदी किनारे, सागर तीरे,

पर्वत-पर्वत, घाटी-घाटी।

बना बावला सूंघ रहा हूं,

मैं अपने पुरखों की माटी।।



सिंधु, जहां सैंधव टापों के,

गहरे बहुत निशान बने थे।

हाय खुरों से कौन कटा था,

बाबा मेरे किसान बने थे।।


ग्रीक बसाया, मिस्र बसाया,

दिया मर्तबा इटली को।

मगध बसा था लौह के ऊपर,

मरे पुरनिया खानों में।।


कहां हड़प्पा, कहां सवाना,

कहां वोल्गा, मिसीसिपी।

मरी टेम्स में डूब औरतें,

भूखी, प्यासी, लदी-फदी।।


वहां कापुआ के महलों के,

नीचे खून गुलामों के।

बहती है एक धार लहू की,

अरबी तेल खदानों में।।


कज्जाकों की बहुत लड़कियां,

भाग गयी मंगोलों पर।

डूबा चाइना यांगटिसी में,

लटका हुआ दिवालों से।।


पत्थर ढोता रहा पीठ पर,

तिब्बत दलाई लामा का।

वियतनाम में रेड इंडियन,

बम बंधवाएं पेटों पे।।


विश्वपयुद्ध आस्ट्रिया का कुत्ता,

जाकर मरा सर्बिया में।

याद है बसना उन सर्बों का

डेन्यूब नदी के तीरे पर।।


रही रौंदती रोमन फौजें

सदियों जिनके सीनों को।

डूबी आबादी शहंशाह के एक

ताज के मोती में।।


किस्से कहती रही पुरखिनें,

अनुपम राजकुमारी की।

धंसी लश्क रें, गाएं, भैंसें,

भेड़ बकरियां दलदल में।।


कौन लिखेगा इब्नबतूता

या फिरदौसी गजलों में।

खून न सूखा कशाघात का,

घाव न पूजा कोरों का।।


अरे वाह रे ब्यूसीफेलस,

चेतक बेदुल घोड़ो का।

जुल्म न होता, जलन न होती, 

जोत न जगती, क्रांति न होती।

बिना क्रांति के खुले खजाना,

कहीं कभी भी शांति न होती।


©रमाशंकर यादव 'विद्रोही' | कॉमरेड विद्रोही




Saturday, February 11, 2023

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं

 



तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं 

कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं 


मैं बे-पनाह अँधेरों को सुब्ह कैसे कहूँ 

मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं 


तिरी ज़बान है झूटी जम्हूरियत की तरह 

तू इक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं 


तुम्हीं से प्यार जताएँ तुम्हीं को खा जाएँ 

अदीब यूँ तो सियासी हैं पर कमीन नहीं 


तुझे क़सम है ख़ुदी को बहुत हलाक न कर 

तू इस मशीन का पुर्ज़ा है तू मशीन नहीं 


बहुत मशहूर है आएँ ज़रूर आप यहाँ 

ये मुल्क देखने लाएक़ तो है हसीन नहीं 


ज़रा सा तौर-तरीक़ों में हेर-फेर करो 

तुम्हारे हाथ में कॉलर हो आस्तीन नहीं


- दुष्यंत कुमार




Friday, January 27, 2023

समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई (Socialism Babua, came slowly)

 समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई

समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई


हाथी से आई, घोड़ा से आई

अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...



नोटवा से आई, बोटवा से आई

बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...


गाँधी से आई, आँधी से आई

टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...


काँगरेस से आई, जनता से आई

झंडा से बदली हो आई, समाजवाद...


डालर से आई, रूबल से आई

देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद...


वादा से आई, लबादा से आई

जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद...


लाठी से आई, गोली से आई

लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद...


महंगी ले आई, ग़रीबी ले आई

केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद...


छोटका का छोटहन, बड़का का बड़हन

बखरा बराबर लगाई, समाजवाद...


परसों ले आई, बरसों ले आई

हरदम अकासे तकाई, समाजवाद...


धीरे-धीरे आई, चुपे-चुपे आई

अँखियन पर परदा लगाई


समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई

समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई


------   गोरख पांडेय


Tuesday, January 24, 2023

परिवार क्यों जरूरी है (Why is important family)

 एक पार्क में दो बुजुर्ग बातें कर रहे थे....


पहला :- मेरी एक पोती है, शादी के लायक है... BA किया है, नौकरी करती है, कद - 5"2 इंच है.. सुंदर है

कोई लड़का नजर में हो तो बताइएगा।

दूसरा :- आपकी पोती को किस तरह का परिवार चाहिए...??

पहला :- कुछ खास नहीं.. बस लड़का ME /M.TECH किया हो, अपना घर हो, कार हो, घर में AC हो, अपना बाग बगीचा हो, अच्छा job, अच्छी सैलरी, कोई लाख रू. तक हो।

दूसरा :- और कुछ...

पहला :- हाँ सबसे जरूरी बात.. अकेला होना चाहिए..

मां-बाप,भाई-बहन नहीं होने चाहिए..

वो क्या है लड़ाई-झगड़े होते हैं।

दूसरे बुजुर्ग की आँखें भर आई फिर आँसू पोछते हुए बोला - मेरे एक दोस्त का पोता है उसके भाई-बहन नहीं हैं, मां बाप एक दुर्घटना में चल बसे, अच्छी नौकरी है, डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, नौकर-चाकर है।

पहला :- तो करवाओ ना रिश्ता पक्का।

दूसरा :- मगर उस लड़के की भी यही शर्त है कि लडकी के भी मां-बाप,भाई-बहन या कोई रिश्तेदार न हों।

कहते-कहते उनका गला भर आया..

फिर बोले :- अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है.. आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी।

पहला :- ये क्या बकवास है, हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या.. कल को उसकी खुशियों में, दुःख में कौन उसके साथ व उसके पास होगा।

दूसरा :- वाह मेरे दोस्त, खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नहीं... मेरे दोस्त अपने बच्चों को परिवार का महत्व समझाओ, घर के बड़े, घर के छोटे सभी अपनों के लिए जरूरी होते हैं... वरना इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा, जिंदगी नीरस बन जाएगी।

पहले वाले बुजुर्ग बेहद शर्मिंदगी के कारण 

कुछ नहीं बोल पाए...

दोस्तों परिवार है तो जीवन में हर खुशी, 

खुशी लगती है, अगर परिवार नहीं तो 

किससे अपनी खुशियाँ और गम बांटोगे.......


(यहां परिवार का संबंध खुद के परिवार के साथ-साथ पूरे इंसानों को आपस में मिलकर एक परिवार की तरह रहने से है)


Monday, January 23, 2023

धर्म क्या है (What is Religion)

 

धर्म क्या है

क्लास में आते ही नये टीचर ने बच्चों को अपना परिचय दिया. बातों ही बातों में उसने जान लिया कि लड़कियों की इस क्लास में सबसे तेज और सबसे आगे कौन सी लड़की है? उसने खामोश सी बैठी उस लड़की से पूछा-

बेटा, आपका नाम क्या है?

लड़की खड़ी हुई और बोली;

जी सर; मेरा नाम है जूही

टीचर ने फिर पूछा; पूरा नाम बताओ बेटा।

लड़की ने फिर कहा; 

जी सर मेरा पूरा नाम जूही ही है।

टीचर ने सवाल बदल दिया। अच्छा, तुम्हारे पापा का नाम बताओ।

लड़की ने जवाब दिया; 

जी सर; मेरे पापा का नाम है शमशेर

टीचर ने फिर पूछा; अपने पापा का पूरा नाम बताओ।

लड़की ने जवाब दिया,

मेरे पापा का पूरा नाम शमशेर ही है सर जी।

अब टीचर कुछ सोचकर बोले;

अच्छा अपनी माँ का पूरा नाम बताओ।

लड़की ने जवाब दिया; 

सर जी; मेरी माँ का पूरा नाम निशा है।

टीचर के पसीने छूट चुके थे क्योंकि अब तक वो उस लड़की की फैमिली के पूरे बायोडाटा में जो एक चीज ढूंढने की कोशिश कर रहा था, वो उसे नहीं मिली थी।

उसने आखिरी पैंतरा आजमाया और पूछा, अच्छा तुम कितने भाई बहन हो?

टीचर ने सोचा कि जो चीज वो ढूँढ रहा है। शायद इसके भाई बहनों के नाम में वो क्लू मिल जाये!

लड़की ने टीचर के इस सवाल का भी बड़ी मासूमियत से जवाब देते हुये बोली, सर जी मैं अकेली हूँ। मेरे कोई भाई बहन नहीं है।

अब टीचरने सीधा और निर्णायक सवाल पूछा; बेटे, तुम्हारा धर्म और जाति क्या है?

लड़की ने इस सीधे सवाल का जवाब भी सीधा-सीधा दिया

बोली-

सर जी मैं एक विद्यार्थी हूँ यही मेरी जाति है और ज्ञान प्राप्त करना मेरा धर्म है। मैं जानती हूँ कि अब आप मेरे पेरेंट्स की जाति और धर्म पूछोगे तो मैं आपको बता दूँ कि मेरे पापा का धर्म है मुझे पढ़ाना और मेरी मम्मी की जरूरतों को पूरा करना तथा मेरी मम्मी का धर्म है, मेरी देखभाल करना और मेरे पापा की जरूरतों को पूरा करना।

लड़की का जवाब सुनकर टीचर के होश उड़ गये। उसने टेबल पर रखे पानी के गिलास की ओर देखा, लेकिन उसे उठाकर पानी भी भूल गया। तभी लड़की की आवाज आयी, इस बार फिर उसके कानों में किसी धमाके की तरह गूँजी।

सर, मैं विज्ञान पढती हूँ और एक साइंटिस्ट बनना चाहती हूँ।

जब अपनी पढ़ाई पूरी कर लूँगी और अपने माँ-बाप के सपनों को पूरा कर लूँगी तब मैं फुरसत से सभी धर्मों का अध्ययन करूंगी और जो धर्म विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरेगा, उसे मैं अपना लूँगी। लेकिन अगर किसी धर्म ग्रंथ में एक भी बात विज्ञान के विरुद्ध मिली त़ो मैं उस पवित्र किताब को अपवित्र समझूँगी क्योंकि विज्ञान कहता है एक गिलास दूध में अगर एक बूंद भी केरोसिन मिला हो, तो पूरा का पूरा दूध ही बेकार हो जाता है।

लड़की की बात खत्म होते ही पूरा क्लास तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। तालियों की गूंज टीचर के कानों में गोलियों की गड़गड़ाहट की तरह सुनाई दे रही थी। उसने आँंखों पर लगे धर्म और जाति के मोटे चश्में को कुछ देर के लिए उतार दिया था।

थोड़ी हिम्मत जुटाकर लड़की से बिना नजर मिलाये टीचर बोला- बेटा Proud of you.