Thursday, October 10, 2019

भाषा के विविध रूप


मूल भाषा (Original Language): ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर विश्व की प्रत्येक भाषा का आधार कोई न कोई मूल भाषा मानी गई है भारोपीय मूल भाषा की कल्पना है इसका आधार यह माना गया है कि भारत और यूरोप के व्यक्ति मूल रूप से किसी एक स्थान पर रहते थे, बाद में वे इधर-उधर बिखरे। उनकी मूल भाष इसी विस्तार के साथ ही अनेक रूपों में आयी।
परिनिष्ठित या परिष्कृत भाषा (Standard Language): इसे स्तरीय, आदर्श या टकसाली भाषा भी कहते हैं। यह भाषा व्याकरण की दृष्टि से परिष्कृत होती है भाषा का व्याकरण इसी के आधार पर बनाया जाता है। साहित्यिक रचनाएँ, शासन, शिक्षा व शिक्षित वर्ग में इसका ही प्रयोग किया जाता है जैसे- हिंदी, फ्रेंच, अंग्रेजी आदि।
विभाषा (Dialect): परिनिष्ठित या आदर्श भाषा के अंतर्गत अनेक विभाषाएं होती हैं। विभाषाएं प्रायः स्थानीय भेद के आधार पर होती है; जैसे- राजस्थानी, गुजराती, मराठी आदि। भौगोलिक आधार पर एक भाषा की अनेक विभाषाएं होती हैं। 
बोली (Sub-Dialect): जो भाषाएँ प्रांतीय स्तर पर शासन द्वारा स्वीकृत हो जाती हैं और जिनमें प्रांतीय शासन का कार्य प्रचलित होता है, उनका स्तर उच्च हो जाता है और वे विभाषा की श्रेणी में आती हैं । इसके अतिरिक्त जो भाषाएँ प्रांतीय स्तर पर स्वीकृत न होकर मण्डल स्तर पर स्वीकृत रहती हैं उन भाषाओं को बोली के अंतर्गत रखा जाता है। जैसे- हिंदी की बोलियाँ ब्रज, अवधी, बुंदेली आदि।
व्यक्ति बोली (Idiolect): एक व्यक्ति की भाषा को व्यक्ति बोली कहते हैं। यह भाषा की सबसे छोटी इकाई है। प्रत्येक व्यक्ति की भाषा एक-दूसरे से भिन्न होती है। ध्वनि भेद, स्वर-भेद, सुर-भेद आदि आधारों पर एक-एक व्यक्ति की बोली पृथक पहचानी जाती है। इसी आधार पर किसी व्यक्ति के केवल ध्वनि को सुनकर उसे अंधेरे में भी पहचान लेते हैं।
अपभाषा (Slang): जिस भाषा में व्याकरण के नियमों की उपेक्षा, अमान्य वाक्य रचना, अशिष्ट शब्द-प्रयोग, अमान्य मुहावरों का प्रयोग आदि प्रयोग मिलते हैं, उसे अशिष्ट, असभ्य या अपरिष्कृत भाषा को अपभाषा का नाम दिया गया है।
विशिष्ट भाषा (Professional Language): विभिन्न व्यवसायों के आधार पर भाषा के अनेक रूप समाज में मिलते हैं; जैसे- किसान, मजदूर, लोहार, दर्जी आदि की अपने व्यवसाय के अनुसार अलग-अलग शब्दावली होती है। इसी प्रकार विभिन्न विषयों राजनीतिकशास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान आदि की अपनी विशिष्ट शब्दावली होती है। 
कूट भाषा  (Secret Language): इस भाषा में विशिष्ट शब्दों का विशेष अर्थों में होता है, जो उन शब्दों को जानता है वही उसका अर्थ समझ सकता है। इस प्रकार की भाषा का प्रयोग राजनीतिज्ञों, क्रांतिकारियों, चोरों और डाकुओं आदि में प्रचलित होता है। कहीं इसका उद्देश्य मनोरंजन और कहीं बात को छिपाना होता है। जैसे- इसको अमर कर दो(मार डालो), प्रसाद देना(जहर देना), खोखा ( बहुत ज्यादा पैसा की बात) आदि।
कृत्रिम भाषा (Artificial Language): डॉ. जमेन हाफ की बनाई एस्परेंतो भाषा विश्व में सबसे अधिक प्रसिद्ध है। कृत्रिम भाषा परंपरागत नहीं होती है। इसके प्रयोग करने वालों की संख्या 80 लाख से अधिक बताई जाती है। इसका प्रचलन विस्तृत जनसमाज में संभव नहीं है जिसके कुछ निम्न कारण हैं-
1. इसमें उच्च साहित्य का निर्माण संभव नहीं है। 2. इसमें हार्दिक मनोभावों का विवेचन या विश्लेषण संभव नहीं है। 3. इसमें गंभीर विषयों का विवेचन संभव नहीं है। 4. यह कामचलाऊ भाषा होती है ।


संदर्भ सूची :


Sunday, October 6, 2019

भाषा के प्रकार्य (Functions of Language)


उपादान            प्रकार्य
वक्ता    -  भिव्यक्तिपरक(संवेगात्मक): Emotive(Expressive)
श्रोता    -  निर्देशपरक(निर्देशात्मक): Cognitive(Receiver)
संदर्भ    - संकेतपरक(संदर्भपरक): Referential(Context)
संदेश   - काव्यपरक(काव्यात्मक):  Poetic(Message)
कोड    - र्कपरक(अधिभाषात्मक): Metalingual(Metalinguistic & Reflexive)
सरणि   - संपर्कपरक(संबंधात्मक): Phatic(Contact/Channel)- Hello, OK, Bye
  • संप्रेषण प्रक्रिया के अंतर्गत एक ओर वक्ता होता है जो संदेश भेजता है और दूसरी ओर श्रोता रहता है जो इस संदेश को ग्रहण करता है। वक्ता और श्रोता के इस संदेश की पृष्टभूमि में कोड रहता है। वक्ता अपने काव्य को संदेश का रूप देने के लिए इस कोड का सहारा लेता है । काव्य को संदेश रूप में बांधने की प्रक्रिया को कोडीकरण कहा जाता है। संदेश में निहित कथ्य को पाने की प्रक्रिया को विकोडीकरण कहा जाता है। संदेश का एक संदर्भ होता है। संदेश के प्रेषण के लिए वक्ता और श्रोता के बीच एक सरणि होती है। सरणि वस्तुतः वक्ता और श्रोता के बीच संबंध स्थापन हेतु होता है।


भाषा का प्रकार्यात्मक अध्ययन प्राग स्कूल (प्राग संप्रदाय) की देन है, जिसमें कार्य करने वाले भाषावैज्ञानिक ‘रोमन याकोब्सन’ और’ मार्टिने कर’ हैं। उन्हें प्रकार्यवादी भी कहा जाता है ।
इन्होंने भाषा के छः प्रकार्य माने हैं -
(1) वक्ता / अभिव्यक्तिपरक :संवेगात्मक (Emotive)= यह भाषा के उस व्यवहार से संबंधित है जो विषय वस्तु के प्रति वक्ता के अपने दृष्टिकोण या भाव को व्यक्त करता है विस्मयादिबोधक शब्द या भाषिक अभिव्यक्ति इसके अनर्गत आते हैं । 
(2) श्रोता / निर्देशपरक :निर्देशात्मक (Cognitive)= इसका संबंध श्रोता के साथ बंधा होता है व्याकरणिक संरचना की दृष्टि से संबोधनवाचक, प्रश्नवाचक, आज्ञासूचक व अनुरोध अभिव्यक्तियाँ इसके अंतर्गत आती हैं।
(3) संदर्भ / संकेतपरक :संदर्भपरक (Referential)= इसका संबंध विषय वस्तु के साथ रहता है। इस भाषिक प्रकार्य के आधार पर प्राप्त सूचना वाह्य ज्ञान के संदर्भ में सच या झूठ हो सकती है; उदाहरण के लिए उपन्यास या महाकाव्य आदि।
(4) संदेश / काव्यपरक :काव्यात्मक (Poetic)= इसका संबंध स्वयं संदेश की ओर मुड़ा हुआ होने के कारण अभिव्यक्ति की शैलीगत विशेषताओं से जुड़ा होता है। साहित्यिक रचना की दृष्टि से छंद, तुक, लय अथवा लाक्षणिक और व्यंजनापरक प्रयोग इसके उदाहरण हैं।
(5) सरणि / संपर्कपरक :संबंधात्मक (Phatic)= इसका संबंध वक्ता और श्रोता के बीच भौतिक या मांसिक संबंधों की वह सरणि बनाता है जिसका सहारा लेकर वे संप्रेषण व्यापार में बनें रहते हैं; जैसे- हेलो, हूँ, हाँ
(6) कोड / तर्कपरक :अधिभाषात्मक  (Metalinguistic)= इसे वैज्ञानिक या तर्कशास्त्री किसी विषय वस्तु विवेचना के समय उपकरण के रूप में अपनाता है। इस प्रकार का प्रयोग हम सामान्य भाषा में भी करते हैं- जब हम पूछते हैं इसका क्या अर्थ है? जो मैं कहना चाहता हूँ क्या तुम समझ गए?

संदर्भ सूची :